यह देश में बदलती सियासत और सत्ता के खेल का ही नतीजा है कि आजाद भारत के इतिहास में पहली बार उपचुनाव भी इतिहास बना रहे हैं। जरा सोचिए कितना कुछ दांव पर लगा है। इन 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में नौ सीटें भाजपा के खाते में आ गईं तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस से टूट कर गए ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया की ही लाज नहीं बचेगी, बल्कि भाजपा की अलंबरदार जोड़ी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भी रणनीति कामयाब हो जाएगी। लेकिन भाजपा नौ सीटें भी जीतने में भी कामयाब न हो पाई तो कांग्रेस के कमलनाथ की सरकार की वापसी हो जाएगी और ज्योतिरादित्य सिंधिया सियासी बियावान में पहुंच सकते हैं। इसलिए महाराज के लिए तो यह करो या मरो की स्थिति है। इसलिए वे भावनात्मक अपील का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते।
हाल में कांग्रेस की सभाओं में उमड़ती भारी भीड़ से उत्साहित कमलनाथ डबरा की सभा में भाजपा उम्मीदवार इमरती देवी को "क्या आइटम है" कह बैठे तो जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज को मुंह मांगी मुराद मिल गई। शिवराज पूरे मंत्रिमंडल के साथ मौन सभा में बैठ गए। सिंधिया डबरा और बाकी जगहों पर सहानुभूति बटोरने के लिए इमरती देवी को मंच पर खड़ा रखते हैं और कई बार उन्हें आंसू पोछते भी देखा गया। दरअसल सिंधिया और भाजपा की चिंता कांग्रेस की सभाओं में उमड़ती भीड़ और लोगों में 'गद्दारों' या खरीद-फरोख्त के प्रति गुस्से के इजहार से भी बढ़ गई है। दोनों तरफ स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को एक-दूसरे के पाले से तोड़कर लाने की कसरत भी चालू है, लेकिन भाजपा से कांग्रेस की ओर जाने वालों की तादाद ज्यादा है।
भाजपा और सिंधिया की बेचैनी मतदाताओं की मोटे तौर पर खामोशी भी बढ़ा रही है। ऐसी ही खामोशी 2018 के विधानसभा चुनाव के वक्त भी दिखी थी और भाजपा को बाजी गंवानी पड़ी थी। उसी बाजी को पलटकर सत्ता हासिल करने के लिए इस साल मार्च में 'ऑपरेशन कमल' हुआ और सिंधिया के साथ 22 विधायक भाजपा में आ गए, जिनमें आधे मंत्री बने। लेकिन अब वोटरों का मूड किसी सर्वे एजेंसी या आइबी रिपोर्ट में साफ जाहिर नहीं हो पा रहा है। राज्य सरकार की खुफिया रिपोर्ट और भाजपा के आंतरिक सर्वे में नाराजगी के संकेत बताए जाते हैं।
इस वजह से सत्तारूढ़ भाजपा ने सत्ता बनाए रखने के सभी मोर्चे खोल दिये हैं। वह निर्दलीयों का समर्थन जुटा रही है और कांग्रेस विधायकों को अपनी ओर ला रही है। हाल में दमोह से कांग्रेस विधायक राहुल लोधी भी भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद कांग्रेस विधायकों की संख्या घटकर 87 हो गई और भाजपा के 107 विधायक हैं। भाजपा कुछ और कांग्रेस विधायकों पर डोरे डाल रही है, ताकि कांग्रेस उपचुनाव में सभी 28 सीटें जीत जाती है तो भी बहुमत भाजपा के साथ रहे। इस पर कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि भाजपा को पता चल गया है कि मतदाता उनसे किस कदर नाराज है। हालांकि मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि कांग्रेस डूबती जहाज है इसलिए लोग उसे छोड़कर खुद ही निकल रहे हैं। हालांकि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र का होने के बावाजूद प्रचार में कम सक्रियता के सवाल पर वे कहते हैं, "संगठन ने सभी लोगों की भूमिका तय कर रखी है। उसी के अनुसार सब काम करते हैं।"
शिवराज और ज्योतिरादित्य दोनों ही उपचुनाव वाली सीटों का दोबारा दौरा शुरू कर चुके हैं। पार्टी ने दशहरे के बाद से बूथ तक जनसंपर्क अभियान शुरू किया, जो एक नवंबर तक चलना है। इसमें पार्टी के सभी विधायक, मंत्री, सांसद और वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी रहेगी। दूसरी ओर, कांग्रेस मुख्यरूप से कमलनाथ के भरोसे है। सचिन पायलट और दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को जरूर प्रचार के लिए बुलाया गया है लेकिन उनकी सभाएं सीमित हैं।
साध्वी के खिलाफ साध्वी
ग्वालियर से बाहर उमा भारती की भी परीक्षा होनी है। उनके गढ़ बड़ा मलेहरा में कांग्रेस ने मुकाबले में एक साध्वी को ही उम्मीदवार बना दिया है। कांग्रेस के प्रद्युम्न लोधी के इस्तीफे के बाद यहां उपचुनाव हो रहा है और कांग्रेस ने साध्वी रामसिया भारती को उतारा है। प्रचार के दौरान कमजोर दिख रही भाजपा दशहरे के बाद उमा भारती को लेकर आई। रामसिया मूल रूप से कथा वाचक हैं और छह वर्ष की उम्र में ही दीक्षा ले ली थी। वे छोटी सभाएं कर रही हैं और कथा वाचक अंदाज में ही बोल रही हैं। वे बुंदेलखंड की बदहाली का ठीकरा यहां के बड़े नेताओं पर फोड़ती हैं। उनके निशाने पर उमा भारती ही रहती हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि यहां पर उनका प्रभाव काफी है।
उपचुनाव में किसकी जीत होगी और किसकी हार, यह तो दस नवंबर को परिणाम आने पर ही पता लगेगा, लेकिन एक बात तय है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से ज्यादा बड़ा दांव सिंधिया का लगा है। उनके राजनीतिक जीवन की यह नई शुरुआत हो रही है। ऐसे में सीटें कम रहती हैं तो सरकार तो बच जा सकती है, लेकिन उनकी साख कमजोर होना तय है।
“हमें लोगों का फैसला मंजूर होगा”
भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख इन उपचुनावों में सबसे ज्यादा दांव पर है। प्रीता नायर से बातचीत में उन्होंने जीत की संभावनाओं से लेकर कांग्रेस के आरोपों तक, हर मुद्दे पर बात की। रोचक यह कि हर सवाल के जवाब में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का नाम लिया। बातचीत के मुख्य अंशः
सचिन पायलट कांग्रेस का प्रचार कर रहे हैं। पूर्व सहयोगी के खिलाफ लड़ाई में आपको कैसा लग रहा है?
लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का हक है। प्रचार लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है और मध्य प्रदेश में प्रचार के लिए आने वाले हर नेता का मैं स्वागत करता हूं। सिर्फ इसलिए आप लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नहीं भूल सकते कि कोई दूसरी पार्टी में है।
आपके लिए यह चुनाव कितना महत्वपूर्ण है? क्या लड़ाई आपके और कमलनाथ के बीच है?
यह चुनाव सिर्फ मेरे, शिवराज सिंह चौहान या भाजपा के लिए नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के लिए भी महत्वपूर्ण है। लड़ाई मेरे और कमलनाथ या शिवराज और कमलनाथ के बीच नहीं, मध्य प्रदेश की जनता और कमलनाथ के बीच है। उनकी सवा साल की सरकार भ्रष्टाचार से भरी थी और लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। लोगों से किए वादे दरकिनार कर दिए गए।
उपचुनाव वाली ज्यादातर सीटें ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में हैं, जो आपका गढ़ है। क्या पहले की तरह जीत हासिल कर सकेंगे?
छह महीने में हमने कमलनाथ की सवा साल की सरकार से बेहतर काम किया है। आश्चर्य की बात है कि उनकी सरकार के एक पूर्व कैबिनेट मंत्री ने अवैध रेत खनन रोकने में नाकाम रहने के लिए लोगों से माफी मांगी। एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के शासनकाल के खिलाफ सोनिया गांधी को पत्र लिखा है।
कांग्रेस कह रही है कि आप भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची में नहीं हैं। पार्टी ने आपको किनारे कर दिया है।
मुझे आश्चर्य है कि कमलनाथ मेरे लिए इतने चिंतित हैं। मेरा पोस्टर रथ पर है या नहीं, इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता। मेरा मिशन प्रदेशवासियों के दिलों में जगह बनाना है। कमलनाथ की राजनीति के तरीके और मेरे तरीके में यही फर्क है।
कांग्रेस का प्रचार मुख्य रूप से आपके और 22 विधायकों के ‘धोखा’ देने पर केंद्रित है।
सबसे बड़े धोखेबाज तो दिग्विजय और कमलनाथ हैं, जिन्होंने 15 महीने तक भ्रष्ट सरकार चलाई। सवा साल सचिवालय से बाहर नहीं निकले। अब वे वोट के लिए वे बाहर निकले हैं।
कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा उसके विधायक खरीद रही है।
कमलनाथ ने सवा साल में अपने विधायकों का भरोसा खो दिया था। अपमानित होने के कारण 22 विधायक अलग हो गए थे। उनके इलाकों में विकास कार्य नहीं किए जा रहे थे। इसलिए उन्होंने दोबारा लोगों के बीच जाना बेहतर समझा। इन 22 में से छह तो कैबिनेट मंत्री थे। कमलनाथ के 28 फीसदी विधायक उनका साथ छोड़ चुके हैं।
विधानसभा में बहुमत के लिए भाजपा को सिर्फ आठ सीटें चाहिए। आंकड़ों को लेकर कितने आश्वस्त हैं?
मुझे भरोसा है कि भाजपा सभी सीटें जीतेगी। हम विकास के एजेंडे के साथ लोगों के बीच हैं। कमलनाथ पैसे की कमी का रोना रो रहे थे, अब पैसे कहां से आ रहे हैं? शिवराज सरकार ने कई ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। हम लोकसेवक हैं। लोगों को निर्णय लेने दीजिए, हम उनका निर्णय स्वीकार करेंगे।