उच्चतम न्यायालय ने माना है कि किसी मामले में भगोड़ा घोषित किये जाने के बाद भी पेश नहीं होना ‘अलग अपराध’ है और भगोड़ा घोषित के निर्देश को रद्द किये जाने के बाद भी इस अपराध की सुनवाई जारी रह सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के जून 2023 के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर दो जनवरी को अपना फैसला सुनाया।
पीठ ने कानूनी प्रश्नों पर विचार किया, जिसमें यह भी शामिल था कि क्या भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों के तहत किसी अभियुक्त को अपराधी घोषित करने का दर्जा तब भी बना रह सकता है, जब उसे उसी अपराध के संबंध में मुकदमे के दौरान बरी कर दिया जाता है।
न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने कहा, ‘‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 174ए एक अलग, मूल अपराध है, जो सीआरपीसी की धारा 82 के तहत भगोड़ा घोषित किये जाने का आदेश वापस लिये जाने के बाद भी जारी रह सकता है। यह एक अलग अपराध है।’’
पूर्ववर्ती दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 82 किसी व्यक्ति के भगोड़ा घोषित करने से संबंधित है। पूर्ववर्ती भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 174ए, सीआरपीसी की धारा 82 के तहत भगोड़ा घोषित किये जाने के बाद भी गैर-हाजिर रहने से संबंधित है।
पीठ ने कहा, ‘‘सीआरपीसी की धारा 82 का उद्देश्य, जैसा कि वैधानिक पाठ को पढ़ने से समझा जा सकता है, यह सुनिश्चित करना है कि जिस व्यक्ति को अदालत के समक्ष पेश होने के लिए बुलाया जाता है, वह ऐसा करे।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 174ए का उद्देश्य और प्रयोजन किसी व्यक्ति की उपस्थिति के लिए आवश्यक अदालती आदेश की अवहेलना के लिए दंडात्मक परिणाम सुनिश्चित करना है।