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अमेरिकी टैरिफः भारतीय कृषि पर टैरिफ का साया

अब तक अमेरिका में आयात शुल्क 10 प्रतिशत होने की वजह से भारत को अमेरिका में बासमती चावल के निर्यात में...
अमेरिकी टैरिफः भारतीय कृषि पर टैरिफ का साया

अब तक अमेरिका में आयात शुल्क 10 प्रतिशत होने की वजह से भारत को अमेरिका में बासमती चावल के निर्यात में वरीयता मिलती थी

जून-जुलाई की चिलचिलाती गर्मी में पंजाब और हरियाणा के बासमती उत्पादक किसान खेतों में इस उम्मीद से धान की रोपाई में जुटे होते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती चावल की और मांग बढ़ने से उन्हें अच्छे दाम मिलेंगे। हाल ही में भारत से तमाम वस्तु आयात पर अमेरिका के 26 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा ने किसानों की तमाम उम्मीदों पर बासमती की बुआई से पहले ही पानी फेर दिया है।

अब तक अमेरिका में आयात शुल्क 10 प्रतिशत होने की वजह से भारत को अमेरिका में बासमती चावल के निर्यात में वरीयता मिलती थी, लेकिन अब इस शुल्क से भारतीय बासमती की प्रतिस्पर्धात्मकता के मुकाबले प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान अमेरिकी बाजार में कम दरों पर बासमती निर्यात करने को तैयार बैठा है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा बासमती चावल निर्यातक देश है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत से कुल 59.4 लाख टन बासमती निर्यात में पंजाब की हिस्सेदारी 45 प्रतिशत और हरियाणा की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत रही। कुल बासमती निर्यात में अमेरिका को भारत से भले ही करीब 6 प्रतिशत यानी 3.5 लाख टन बासमती निर्यात हुआ, लेकिन अमेरिकी डॉलर के मूल्य के लिहाज से यह हिस्सेदारी ईरान जैसे देशों से भी अधिक बैठती है, जहां से 25 प्रतिशत बासमती का निर्यात होता है। ईरान में बासमती पर टैरिफ भी नहीं लगता, लेकिन अमेरिका में उच्च गुणवत्ता वाले बासमती की कीमत ईरान की तुलना में 20 से 25 प्रतिशत अधिक मिलती है।

भारतीय बासमती चावल निर्यातक संघ के अनुसार, “अमेरिका जैसे प्रीमियम बाजार में भारत की पकड़ ढीली पड़ना पाकिस्तान के लिए बड़ा अवसर है।" आउटलुक से बातचीत में संघ के अध्यक्ष नाथी राम गुप्ता ने कहा, “भारत का बासमती चावल गुणवत्ता में पूरी दुनिया में बेहतर माना जाता है, लेकिन कीमत ज्यादा होगी तो अमेरिकी खरीदार पाकिस्तान की ओर रुख कर सकते हैं। इससे हमारी बाजार हिस्सेदारी घटेगी। दूसरा, अमेरिकी आयातक भारतीय निर्यातकों पर 26 प्रतिशत टैरिफ वहन करने का दबाव बनाए हुए हैं क्योंकि वे इसे वहन करने के लिए तैयार नहीं हैं जिससे भारतीय निर्यातकों पर 300 डॉलर प्रति टन का अतिरिक्त भार पड़ सकता है। नए टैरिफ के कारण निर्यातकों को अनुबंध रद्द होने और 1100 अमेरिका डॉलर प्रति टन पर हुए पुराने सौदों में भी नुकसान उठाने का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में भारत से अमेरिका को बासमती निर्यात लगभग ठप होने की आशंका है।” 

चावल निर्यात

बासमती राइस मिल्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष रणजीत सिंह जोसन ने कहा, “भले ही पाकिस्तान पर अमेरिका ने 30 प्रतिशत टैरिफ लागू किया है पर पाकिस्तान का रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बहुत कमजोर है। पाकिस्तान के 280 रुपये एक अमेरिकी डॉलर के बराबर हैं, जबकि भारत के 85 रुपये के बराबर एक अमेरिकी डॉलर है। इस भारी अंतर के चलते पाकिस्तान के बासमती निर्यातक अमेरिका को भारत से कम दाम पर निर्यात के लिए तैयार होंगे। पहले ही बासमती पर जीआइ टैग की लड़ाई में पाकिस्तान भारत के खिलाफ दुनिया के बासमती बाजार में झूठ फैलाकर बासमती के जीआइ टैग पर अपना हक जता रहा है और अब अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाए जाने का असर सीधा भारतीय बासमती उत्पादक किसानों पर पड़ना तय है।” 

भारतीय किसान यूनियन और अन्य किसानों संगठनों ने सरकार से मांग की है कि अमेरिका के साथ द्विपक्षीय बातचीत के जरिये इस टैरिफ को हटवाने का प्रयास किया जाए। भाकियू (एकता उग्राहां) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उग्राहां ने कहा, “यह किसानों के साथ दोहरा अन्याय है। एक तरफ केंद्र और राज्य सरकार किसानों पर पर्यावरण संरक्षण के नाम पर फसल बदलने का दबाव बना रही है और इस दबाव में बीते तीन साल में पंजाब में बासमती का रकबा 3.2 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 6.8 लाख हेक्टेयर किसानों ने किया है पर अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाए जाने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती के दाम इस सीजन में गिरने की आशंका से किसान बासमती के बजाय साधारण धान की ओर फिर से मुड़ेंगे।” 

हर साल करीब 10 एकड़ में बासमती की बुआई करने वाले जसबीर सिंह धुडिया का कहना है, “पिछले साल बासमती के दाम 3500 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल तक चले गए थे। हमने सोचा था इस साल रकबा बढ़ा देंगे क्योंकि अमेरिका से बासमती की मांग बढ़ने की खबरें आ रही थीं, लेकिन अब टैरिफ बढ़ने की खबर आई तो बुआई का सारा गणित बिगड़ गया। घरेलू बाजार में अगर कीमतें नहीं मिलीं, तो इस बार बासमती की बुआई किसानों के लिए घाटे का सौदा होगी।”

अमेरिका के नए टैरिफ की मार वैकल्पिक फसलों की ओर किसानों को मोड़ने के सरकारी प्रयासों पर पड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर, अगर अमेरिकी कृ‌षि आयात के लिए भारतीय बाजारों को खोलने के दबाव के आगे भारत सरकार ने घुटने टेक दिए, तो भारत के किसानों के ताबूत में वह कदम आखिरी कील साबित होगा। भारी सब्सिडी प्राप्त अमेरिकी किसानों के सामने भारतीय किसान दम तोड़ देंगे।

 

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