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हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद शिअद पर एनडीए से गठबंधन तोड़ने का दबाव

लोकसभा में कृषि अध्यादेश पारित किए जाने के विरोध में केंद्रीय मंत्रीमंडल से शिरोमणी अकाली दल(शिअद)की...
हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद शिअद पर एनडीए से गठबंधन तोड़ने का दबाव

लोकसभा में कृषि अध्यादेश पारित किए जाने के विरोध में केंद्रीय मंत्रीमंडल से शिरोमणी अकाली दल(शिअद)की एक मात्र मंत्री हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद शिअद पर एनडीए से किनारा किए जाने का दबाव बढ़ गया है। पार्टी के भीतर-बाहर अब शिअद के इस अगले कदम का इंतजार है। इस्तीफे के बावजूद पंजाब के किसानों में यह संदेश नहीं जा पाया है कि सच में शिअद उनके साथ खड़ा है या नहीं। विपक्षी दल भी हरसिमरत कौर के इस्तीफे को िसयासी ड्रॉमा बता उछाल रहे हैं। धरने प्रदर्शन पर डटे किसान संगठनों का एक सुर में कहना है कि “'सभी अकाली किसान हैं और सभी किसान अकाली हैं”,का शिअद अध्यक्ष सुखबीर बादल का दावा तभी सच साबित होगा जब वह किसानों के साथ खड़े होने के लिए एनडीए का भी साथ छोड़ दें।

बादल गांव स्थित बादल परिवार के निजी आवास के बाहर धरने पर बैठे किसानों पर हरसिमरत के इस्तीफे का कोई असर नहीं है। इस्तीफे के बाद हरसिमरत ने इन किसानों के धरने में शामिल होने की बात की थी पर उनके इस्तीफे के अगले दिन ही बादल परिवार के आवास के बाहर धरने पर बैठे किसानों में से एक द्वारा जहर निगल कर आत्महत्या किए जाने से साफ है कि शिअद का किसानों के पक्ष में डटने के दावे पर किसानों में संदेह बरकरार है।  

 एनडीए से अलग होने का फैसला कौर कमेटी की चंडीगढ़ में अगले हफ्ते होने वाली बैठक में लिया जा सकता है पर पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि जब तक शिअद एनडीए से पूरी तरह किनार नहीं कर लेगा उनके किसान वोट बैंक का भरोसा नहीं जीता जा सकता। हरसिमरत के इस्तीफे को सियासी ड्रॉमा करार देते हुए विपक्ष के नेता शिअद को यह कहते हुए घेर रहे हैं कि शिअद सच में यदि किसानों की पार्टी है तो क्यों नहीं वह किसानों के साथ पूरी तरह डटने के लिए केंद्र में एनडीए को और राज्य में भाजपा से गठबंधन तोड़ लेती?

आउटलुक से बातचीत में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ का कहना है, “ प्रकाश सिंह बादल की बहु हरसिमरत कौर का इस्तीफा तो सिर्फ दिखावा है,शिअद यदि सच मंे कृषि अध्यादेशों के खिलाफ है तो एनडीए के साथ बने रहने का मतलब साफ है कि अध्यादेशों को भी उसका समर्थन है”। इस बीच पंजाब मंें शिअद के गढ़ मालवा के प्रदर्शनकारी किसानांे ने एलान कर दिया है कि जो भी सियासी नेता कृषि अध्यादेशाें के समर्थन में हैं उन्हें मालवा के गांवों में नहीं घुसने दिया जाएगा।

भारतीय किसान यूनियन(राजेवाल)के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने आउटलुक से कहा,“ देश का अन्नदाता किसान अपनी लड़ाई खुद लड़ने में सक्षम है,उसे किसी सियासी दल या सियासी नेता के समर्थन की जरुरत नहीं है।सियासी दलों के लिए किसान केवल एक वोट बैंक से ज्यादा कुछ नहीं है। हरसिमरत का इस्तीफा उनकी अपने सियासी गुणा भाग के लिए है किसानों के हितांे के लिए नहीं है”। राजेवाल ने कहा कि जब तक कृषि अध्यादेश वापस नहीं लिए जाते किसान सड़कों,रेल लाइनों व नेताओं के घरों के बाहर धरनों पर डटे रहेंगे।

 शिअद के लिए क्यों मुश्किल है एनडीए से गठबंधन तोड़ना: ढेड साल बाद पंजाब में विधानसभा चुनाव हैं। केंद्रीय मंत्रीमंडल से हरसिमरत का इस्तीफा 2022 के विधानसभा चुनाव मंे सियासी फायदे की कड़ी का हिस्सा है। हालांकि भाजपा पंजाब में अकेले अपने दम पर मजबूत नहीं है पर शिअद के लिए भी  एनडीए से 22 साल पुराना गठबंधन तोड़ पंजाब की सियासत में अकेले आगे बढ़ना अासान नहीं है। क्योंकि पिछले दो साल में दो बार दो फाड़ हुए शिअद के बागी नेताओं के थर्ड फ्रंट को भाजपा अपने पाले में ला शिअद की किसानी सियासत को हाशिए पर ला सकती है। शिअद से टूटे नेताओं मंे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींढसा और उनके बेटे पूर्व वित्त मंत्री परमिंदर सिंह ढींढसा के अलावा पूर्व सांसद रणजीत ब्रहमपुरा,पूर्व मंत्री सेवा सिंह सेखवां का मालवा और माझा इलाके मंे खासा प्रभाव है। बागी अकालियों का यह थर्ड फ्रंट पंजाब मंे भाजपा के लिए एक नया मंच हो सकता है। शिअद पंजाब मंे अपनी पुरानी सियासी पकड़ हासिल करने के लिए हाथ पैर मार रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी राज्य की 13 मंे से सिर्फ दो सीटांे पर जीत दर्ज करने वाले शिअद में खुद शिअद अध्यक्ष सुखबीर बादल और उनकी पत्नी हरसिमरत कौर हैं दो सीटों पर भाजपा की जीत रही। एक पर आम आदमी पार्टी तो 8 सीटें जीत कर सत्तारुढ़ कांग्रेस ने यह संदेश दिया कि तीन साल के कार्यकाल में जनता के बीच उसकी पैंठ अभी बरकरार है।

 

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