11 अगस्त 2025 को नई दिल्ली में एक जोरदार विरोध प्रदर्शन के दौरान, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और लगभग 300 विपक्षी सांसदों ने चुनाव आयोग के कार्यालय की ओर मार्च किया। यह प्रदर्शन 2024 के लोकसभा चुनावों में कथित मत चोरी और बिहार में विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) के मुद्दे को लेकर था। राहुल गांधी ने आयोग के डेटा का हवाला देते हुए गंभीर आरोप लगाए, जिसमें कर्नाटक के बैंगलोर सेंट्रल में 1,00,250 फर्जी वोटों का दावा शामिल था।
उन्होंने आयोग से इस डेटा को सार्वजनिक करने की मांग की और कहा, “यह आपका डेटा है, मेरा नहीं। मुझे शपथ-पत्र क्यों देना पड़े? इसे अपनी वेबसाइट पर डालें, सच सामने आ जाएगा।” राहुल ने इस आंदोलन को संविधान बचाने की लड़ाई बताया और स्वच्छ मतदाता सूची की मांग की। उन्होंने पहले भी कर्नाटक, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मत चोरी के आरोप लगाए थे, दावा करते हुए कि उनकी पार्टी के पास ठोस सबूत हैं। उनका कहना था कि आयोग सबूतों को नष्ट कर रहा है, जैसे कि सीसीटीवी फुटेज को 45 दिनों बाद हटाने का निर्देश।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को “निराधार” और “गैर-जिम्मेदाराना” करार देते हुए खारिज किया और राहुल से अपने दावों को शपथ-पत्र के माध्यम से साबित करने को कहा। आयोग ने बताया कि राहुल ने 12 जून 2025 को भेजे गए पत्र और ईमेल का जवाब नहीं दिया। इस बीच, दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शन के लिए अनुमति न होने का हवाला देते हुए कई सांसदों को हिरासत में लिया, जिनमें शिवसेना (यूबीटी) के संजय राउत और टीएमसी की सागरिका घोष शामिल थे।
पुलिस के अनुसार, केवल 30 सांसदों को आयोग के कार्यालय में प्रवेश की अनुमति थी, लेकिन प्रदर्शनकारी भारी संख्या में थे। बीजेपी ने इन आरोपों को कांग्रेस की हार का बहाना बताते हुए खारिज किया। यह विवाद भारत की चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गहरे सवाल खड़े करता है, जिसने राजनीतिक माहौल को और गर्म कर दिया है।