सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने मंगलवार को भारत की जातिगत आरक्षण प्रणाली को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने इसे "रेलगाड़ी के डिब्बे" से तुलना की। उन्होंने कहा कि इस डिब्बे में पहले से अपनी सीट सुरक्षित कर चुके लोग दूसरों को प्रवेश करने से रोकते हैं। यह बयान महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान आया है।
जस्टिस सूर्यकांत इस वर्ष के अंत में मुख्य न्यायाधीश का पद संभाल सकते है। उन्होंने ने कहा, "इस देश में आरक्षण का कारोबार रेलवे की तरह हो गया है। जो लोग बोगी में घुस गए हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और घुसे। यही पूरा खेल है।" यह टिप्पणी वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल संकरनारायणन के उस तर्क के जवाब में आई, जिसमें उन्होंने कहा था कि महाराष्ट्र की बंठिया आयोग ने ओबीसी को आरक्षण देते समय उनकी राजनीतिक पिछड़ेपन की जांच नहीं की।
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव 2016-17 के बाद से रुके हुए हैं, जिसका मुख्य कारण ओबीसी कोटा को लेकर कानूनी विवाद है। 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के 27 प्रतिशत ओबीसी कोटा अध्यादेश को रद्द कर दिया था और तीन शर्तें तय की थीं: (1) पिछड़ेपन की समकालीन जांच के लिए एक समर्पित आयोग, (2) आयोग की सिफारिशों के आधार पर आरक्षण का अनुपात, और (3) एससी/एसटी/ओबीसी के लिए कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
जस्टिस सूर्यकांत की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब केंद्र सरकार ने अगली जनगणना में जाति आधारित डेटा शामिल करने का फैसला किया है। बीजेपी और उसके सहयोगियों का कहना है कि यह कदम पिछड़े वर्गों की पहचान और सकारात्मक कार्रवाई में मदद करेगा, जबकि विपक्षी दल लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं। यह बयान आरक्षण नीति की समावेशिता और इसकी वर्तमान प्रासंगिकता पर बहस को तेज कर सकता है।