- रवि भोई
वैसे तो राजिम कुम्भ छत्तीसगढ़ की एक पहचान बन चुका है, लेकिन 2018 का कुम्भ कई मायनों में यादगार रहा। तीन लाख 61 हजार दीये एक साथ जलाकर रिकॉर्ड बनाया गया। इसे 'गोल्डन बुक ऑफ रिकार्ड' में दर्ज भी किया गया है।
वहींं, 2100 लोगों के सामूहिक शंखनाद भी किया। जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी ने राजिम कुम्भ को कुम्भ के रूप में मान्यता भी प्रदान कर दी। राजधानी रायपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर महानदी के तट पर बसे राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है। यहां महानदी में पैरी और सोंढुर नदी के संगम के साथ भगवान विष्णु की प्रतिमा वाले राजीव लोचन मंदिर और कुलेश्वर महादेव के विशाल मंदिर से यहां का धार्मिक महत्व काफी बढ़ जाता है।
राजीव लोचन मंदिर आठवीं शताब्दी का कहा जाता है। धार्मिक महत्ता के चलते यहां वर्षों पहले से माघ पूर्णिमा से लेकर शिवरात्रि तक मेले का आयोजन किया जाता रहा।
छत्तीसगढ़ सरकार ने 2001 में ऐसे राजीव लोचन महोत्सव का नाम दिया, फिर 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाने लगा।
इसमें शरीक होने के लिए शंकराचार्यों,देशभर के साधु संतों के अलावा देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी आते है। स्थानीय लोग भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है।
राज्य के धार्मिक- धर्मस्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कहते है राजिम कुम्भ देश के पांचवें कुम्भ के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है। एक पखवाड़े तक चलने वाले राजिम कुम्भ में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की भागीदारी देखते बनती है। हर आयोजन और संत समागम में शामिल होने के साथ वे हर अखाड़े में जाकर शाही स्नान में भी भाग लेते है। महानदी की गंगा जैसी आरती कर इसे गंगा जैसे मानने का प्रयास भी किया गया।