अफसरों के अनुसार आत्मकथा अभी तक किसी ने नहीं पढ़ी है, क्योंकि बंडल खोलने का समय भी नहीं है। बारिश में सड़ रही 500 से अधिक किताबों को आपत्ति के बाद भी विभाग ने वापस नहीं लिया। इसमें आडवाणी के आपातकाल के समय लोकतंत्र के लिए किए संघर्ष, अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम रथयात्रा का विवेचन किया गया है। 1998 से 2004 तक सरकार में गृहमंत्री फिर उपप्रधानमंत्री पद पर आडवाणी के दायित्व का उल्लेख है।
कचरे में फेंकी गई किताबों का स्टॉक मेंटेन करने विभाग ने भी खासी तैयारी की है। कागजों में ही योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर चर्चित रहे विभाग के अफसर कहते हैं कि रिकार्ड में कुछ किताबों को साबुत रखा गया है। जिन किताबों को फेंका गया है, उन्हें दीमक लगने से खराब होना और रखने योग्य नहीं होना बताया गया है। अफसरों का कहना है कि उन्होंने किताबों को रखने और रखरखाव के लिए व्यवस्था दिए जाने की बात लिखकर भेज दी है।
संजय पांडेय, उपसंचालक, पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग, महासमुंद ने कहा कि आडवाणी की आत्मकथा मेरा देश मेरा जीवन को पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग ने थोक में खरीदा था। जिला कार्यालयों से ग्रंथालय मद की राशि भुगतान की गई है। किताबों को रखने की जगह नहीं है, इसलिए दीमक खा रहे थे। वैसे भी अब यह किताब अनुपयोगी हो गई है, इसलिए फिंकवा दिया है। ऐसी अनुपयोगी किताबें मंगाने का औचित्य ही क्या है।