केजरीवाल सरकार ने सत्ता में आने के बाद स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, जनसंपर्क विभागों के अलावा दिल्ली सरकार के वित्तीय सहयोग पर निर्भर कुछ अन्य संस्थानों में सलाहकारों की नियुक्ति की थी। आरोप है कि इन्हें बिना एलजी की मंजूरी के नियुक्त किया गया था। इनमें से कुछ की सैलरी 1 लाख रुपये महीने से ज्यादा है, जबकि कई को गाड़ी और आवास की सुविधाएं भी दी गई हैं। साथ ही इनके लिए सहायक स्टाफ की नियुक्त भी की गई है, जिनकी सैलरी 30,000 रुपये से ज्यादा है।
इन सलाहकारों में से ज्यादातर पार्टी के शीर्ष नेता हैं तो कुछ जनलोकपाल आंदोलन के समय से ही अरविंद केजरीवाल के करीबी रहे हैं। आशीष तलवार जहां मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार हैं, वहीं नागेंदर शर्मा मीडिया सलाहकार के तौर पर काम कर रहे हैं। आतिशी मरलेना और अरुणोदय प्रकाश क्रमश: इन्हीं पदों पर डेप्युटी सीएम के ऑफिस से जुड़े हैं। विभव कुमार, अश्वथी मुरलीधरन, रोहित पांडेय जैसे कार्यकर्ता अब सीएम ऑफिस में निजी सचिव या पीए जैसे पदों पर नियुक्त हैं।
स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग में तीन-तीन सलाहकारों को बड़ी जिम्मेदारियां दी गई हैं। इसके अलावा ट्रांसपॉर्ट, पर्यावरण और अन्य विभागों में आईआईटी समेत दूसरे विशेषज्ञों की भी सेवाएं ली जाती रही हैं। जानकारों का कहना है कि चूंकि उपराज्यपाल की राय नहीं ली गई थी, ऐसे में ये सभी नियुक्तियां अवैध हैं। भाजपा और कांग्रेस ने मांग की है कि इन सभी की अब तक की सैलरी और खर्चे वसूले जाएं।
कानून विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि राजभवन ने जानकारी मांगी है कि क्या इनकी सैलरी वापस ली जा सकती है। यह भी पूछा गया है कि क्या केजरीवाल सरकार के पहले कार्यकाल में हुई ऐसी नियुक्तियों पर भी कार्रवाई की जा सकती है। इससे साफ है कि राजभवन ने इन नियुक्तियों को रद्द करने का मन बना लिया है और वह कानूनी तौर पर पूरी खोज कर लेना चाहता है। दिल्ली सरकार के अलावा दिल्ली महिला आयोग,दिल्ली संवाद आयोग और अन्य संस्थानों में भी सलाहकार या निजी कर्मचारी के रुप में नियुक्त किए गए हैं।