केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंगलवार को दिल्ली में तीन नगर निगमों के विलय के विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी। सरकार के सूत्रों ने कहा कि दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक संसद के चालू बजट सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद तीनों नगर निगमों को एक करने के साथ ही 272 वार्ड ही रखे जाएंगे। इस बीच, आम आदमी पार्टी (आप) ने सरकार के इस कदम को एमसीडी की चुनावों में देर करने की चाल बताया है।
आप ने कहा है, 'तीनों एमसीडी का बहुत पहले ही एकीकरण किया जा सकता था और कभी भी किया जा सकता है। यह एमसीडी के चुनावों को टालने की चाल है। बीजेपी को दिल्ली में एमसीडी चुनाव हारने का डर सता रहा है।
सूत्रों के अनुसार, एकीकृत नगर निगम पूरी तरह से सम्पन्न निकाय होगा और इसमें वित्तीय संसाधनों का सम विभाजन होगा जिससे तीन नगर निगमों के कामकाज को लेकर व्यय एवं खर्च की देनदारियां कम होंगी तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में नगर निकाय की सेवाएं बेहतर होंगी। इसके तहत 1957 के मूल अधिनियम में भी कुछ और संशोधनों को मंजूरी दी गई है ताकि वृहद पारदर्शिता, बेहतर प्रशासन और दिल्ली के लोगों के लिये प्रभावी सेवाओं को लेकर ठोस आपूर्ति ढांचा सुनिश्चित किया जा सके। संशोधन के माध्यम से वर्तमान तीन नगर निगमों को एक एकीकृत नगर निगम में समाहित किया जाएगा।
गौरतलब है कि करीब 9 साल पहले तक दिल्ली में एक ही नगर निगम था, लेकिन 2012 के निगम चुनाव से पहले वर्ष 2011 में पूर्ववर्ती दिल्ली नगर निगम को तीन भागों-दक्षिण दिल्ली नगर निगम, उत्तरी दिल्ली नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में विभाजित किया गया था, ऐसा करने से नगर निगम के कामकाज में सुधार लाया जा सकेगा और ये प्रभावी तरीके से जनता को सेवाएं दे सकेंगी। लेकिन नगर निगम को विभाजित करने के बाद से ही नगर निगमों के कामकाज में कोई खास सुधार तो नहीं हुआ, बल्कि निगम वित्तीय संकट में इस कदर फंस गए कि कर्मचारियों को वेतन देना मुश्किल हो गया। जिसकी वजह से निगम कर्मचारियों को कई बार हड़ताल पर जाना पड़ा।