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सरकारी अनदेखी और गांधीवादी गुरुशरण छाबड़ा की मौत

राजस्थान की वसुंधराराजे सरकार ने बुजुर्ग गांधीवादी को दिए वादे को पूरा करने से किया इनकार। शराबबंदी और लोकपाल के लिए गुरुशरण छाबड़ा ने दी जान
सरकारी अनदेखी और गांधीवादी गुरुशरण छाबड़ा की मौत

 राजस्थान में संपूर्ण शराबबंदी और मजबूत लोकायुक्त की मांग को लेकर पिछले 31 दिन से अनशन कर रहे बुजुर्ग गांधीवादी नेता गुरुशरण छाबड़ा की मौत से राजस्थान सरकार पर संवेदनहीन होने के आरोप लगाए जा रहे हैं।  मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इस्तीफे की मांग जोर पकड़ती जा रही है।

2 अक्टूबर 2015 से अनशन कर रहे 72 वर्षीय गुरुशरण छाबड़ा की कल हालत बेहद नाजुक हो गई थी। उन्हें गहन चिकित्सा इकाई में वेंटिलेटर पर रखा गया, उपचार के दौरान वह कोमा में चले गए और अंततः तीन नवंबर सवेरे 4 बजे उनकी मौत हो गई। प्रदेश में संपूर्ण शराबबंदी की मांग को लेकर पूर्व विधायक गुरुशरण छाबड़ा काफी लंबे समय से आंदोलनरत थे, उन्होंने प्रसिद्ध सर्वोदयी नेता गोकुलभाई भट्ट के साथ मिलकर  शराबबंदी के लिए चलाए गए अभियान में प्रमुख भूमिका निभाई। वर्ष 1977 में वह सूरतगढ़ से जनता पार्टी से विधायक चुने गए थे। प्रदेश के सर्वोदयी तथा गांधीवादी आंदोलन से उनका नजदीकी रिश्ता था।

वर्ष 2014 के अप्रैल - मई में भी उन्होंने 45 दिन का अनशन किया था, जिसके फलस्वरूप वसुंधराराजे सरकार ने उनके साथ एक लिखित समझौता किया था कि शीघ्र ही एक सशक्त लोकायुक्त कानून तथा शराबबंदी के लिए कमेटी गठित की जाएगी और उस कमेटी की सिफारिशों को माना जाएगा, मगर लिखित वादे पर एक साल बाद भी क्रियान्वयन नहीं होने पर गुरुशरण छाबड़ा इस साल गांधी जयंती पर फिर से अनशन पर बैठ गए। इस बार प्रदेश के कई संगठनों तथा सक्रिय लोगों ने उनके आंदोलन का समर्थन किया। अनशन के 17वें दिन पुलिस ने उन्हें अनशन स्थल से उठा लिया तथा जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में जबरन भर्ती करा दिया, वहां पर भी छाबड़ा ने अपना अनशन जारी रखा तथा राज्य में संपूर्ण शराबबंदी और मज़बूत लोकायुक्त कानून बनाने की मांग को बलवती किया।

उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती सरकारों में भी गुरुशरण छाबड़ा गांधीवादी तरीकों से अपनी मांग के समर्थन में आंदोलन करते रहे है। वर्ष 2003 में गहलोत के शासन में भी उन्होंने अनशन किया था, तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनकी कईं मांगों को मानकर अपने हाथ से जूस पिला कर उनका अनशन तुड़वाया था। मगर इस बार राजस्थान सरकार ने छाबड़ा के आंदोलन के प्रति उपेक्षा का रवैया अख्तियार कर लिया तथा उन्हें अपनी मौत मरने के लिए छोड़ दिया गया। एक माह से अनशन कर रहे बुजुर्ग गांधीवादी नेता गुरुशरण से संवाद तक करना भी सरकार ने उचित नहीं समझा। कल 2 नवंबर को जब अनशनकारी छाबड़ा की स्थिति बहुत ज्यादा बिगड गई तब लोक दिखावे के लिए सुबह चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्रसिंह अस्पताल पंहुचे तथा डॉक्टर्स को दिशा निर्देश दे कर चले आए, बाद में जब और भी हालात नाजुक हुए तो सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी एस एम एस पंहुचे, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

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