अरुणाचल प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए केंद्र सरकार ने रविवार को राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की थी। मिली जानकारी के अनुसार राष्ट्रपति ने कैबिनेट की सिफारिश के दो दिनों बाद इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। कैबिनेट ने रविवार को हुई विशेष बैठक में पूर्वोत्तर सीमावर्ती राज्य में केंद्रीय शासन लागू किए जाने की सिफारिश की थी। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि कैबिनेट यह फैसला लेने को बाध्य था क्योंकि वहां संवैधानिक संकट पैदा हो गया था और राज्य विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने की अवधि पूरी हो चुकी थी।
राष्ट्रपति ने कल गृह मंत्री राजनाथ सिंह को बुलाया था और राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की आवश्यकता के बारे में उनसे कुछ सवाल किए थे। राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने भी उनसे मुलाकात की थी और कैबिनेट के फैसले का विरोध किया था। कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रपति से कैबिनेट के फैसले को मंजूरी नहीं देने का अनुरोध किया था। पार्टी ने कहा था कि यह मामला उच्चतम न्यायालय में है। केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। न्यायालय ने कांग्रेस की याचिका पर 27 जनवरी को सुनवाई करने का फैसला किया है। अन्य प्रमुख विपक्षी दलों ने भी केंद्र के फैसले की आलोचना की थी और कहा कि यह लोकतंत्र की हत्या के समान है वहीं भाजपा ने कहा कि यह संकट कांग्रेस का बनाया हुआ है क्योंकि विधानसभा में उसका बहुमत समाप्त हो गया था।
अरूणाचल प्रदेश में पिछले साल 16 दिसंबर से राजनीतिक संकट है जब कांग्रेस के 21 विद्रोही विधायकों ने विधानसभाध्यक्ष नबाम रेबिया के महाभियोग के लिए एक अस्थायी स्थल पर भाजपा के 11 और दो निर्दलीय विधायकों के साथ हाथ मिला लिया था। विधानसभाध्यक्ष ने इस कदम को अवैध और असंवैधानिक करार दिया था। इस बीच उच्चतम न्यायालय ने कैबिनेट के फैसले को चुनौती देने वाली कांग्रेस की याचिका पर 27 जनवरी को सुनवाई करने का फैसला किया है।