प्रख्यात पक्षी विज्ञानी अनवारूद्दीन चौधरी ने एजेंसी को बताया जतिंगा में इन दिनों पक्षियों का आना बहुत कम हो चुका है। ग्रामीण पक्षियों का शिकार करते हैं जिसकी वजह से पक्षियों की संख्या कम हुई है।
असम के बर्डमैन कहलाने वाले चौधरी ने हाफलोंग के समीप उत्तरी कछार हिल्स में पक्षियों की प्रजातियों के रहस्यमय व्यवहार को उनके इस नन्हे आवास में समझने के लिए वहां जाकर सर्वेक्षण किए। दीमा हसाओ के वनों के प्रधान मुख्य संरक्षक बिकाश ब्रमा ने चौधरी से सहमति जताते हुए कहा कि पिछले कुछ सालों में गांव में आने वाले पक्षियों की संख्या भी कम हुई है।
उन्होंने कहा पहले पक्षियों को मारा जाता था लेकिन वन विभाग के जागरूकता अभियान चलाने के बाद ऐसी घटनाओं में कमी आई है। सितंबर-अक्टूबर के महीने में अंधेरी रात में कोहरे, धुंध और बादलों के कारण निकलने वाली रोशनी की ओर पक्षी आकर्षित होते हैं। गांव पहुंचने के बाद वे दिशाभ्रमित हो जाते हैं और उड़ नहीं पाते। वे दीवार से टकराते हैं और बांस के डंडे से हमला करने वाले शिकारियों का शिकार बन जाते हैं।
शिकारियों द्वारा पक्षियों की हत्या को पक्षियों द्वारा आत्महत्या कह दिया जाता है। पक्षियों की संख्या में कमी का कारण बताते हुए चौधरी ने कहा कि बोरेल रेंज के आसपास के इलाकों में पक्षियों की रिहायश खत्म होना इसकी वजह है।
उन्होंने कहा खेती का क्षेत्र बढ़ने के कारण जंगल घट रहे हैं। विकासात्मक गतिविधियां और पर्यावरण क्षरण के कारण भी पक्षियों की संख्या में कमी आई है। पक्षी विज्ञानी हालांकि पक्षियों के आचरण को वैज्ञानिक तरीके से समझाते हैं लेकिन अब भी कई लोगों का मानना है कि पक्षी आत्महत्या करने के लिए जतिंगा आते हैं।
चौधरी ने कहा इसे पक्षियों का आत्महत्या स्थल कहना सही नहीं है। बड़ी संख्या में पर्यटक यही देखने आते हैं कि पक्षी आत्महत्या कैसे करते हैं। इस बारे में लोगों को वास्तविकता की पूरी जानकारी नहीं है।
उन्होंने बताया जतिंगा एक गहरी खाई है जो फनल जैसा प्रभाव पैदा करती है। हवाओं की गति कम होने पर अगर पक्षी दीवारों से टकरा कर घायल न हुए या मारे नहीं गए तो वे सुरक्षित लौट जाते हैं।