पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राज्य के किसानों पर प्रवासी मजदूरों से अपने खेत में बंधुआ मजदूरों की तरह काम करवाने के आरोप की केंद्रीय गृह मंत्रालय की आलोचना की है। उन्होंने इसे पंजाब के किसानों को बदनाम करने की एक और साजिश करार दिया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार और सत्ताधारी भाजपा ने किसानों को आतंकवादी, अर्बन नक्सली, गुंडे कहकर उनकी छवि को चोट पहुंचाने की पहले भी लगातार कोशिश की, ताकि कृषि कानूनों के मसले पर चल रहे आंदोलन को पटरी से उतारा जा सके। मुख्यमंत्री ने कहा कि इसका स्पष्ट मकसद किसानों के आंदोलन को कमज़ोर करना और राज्य में कांग्रेस सरकार को बदनाम करना है।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने किसानों पर पंजाब में लोगों को बंधुआ मज़दूर बनाकर बरतने के अनुचित दोष लगाने पर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए इस सम्बन्ध में केंद्रीय गृह मंत्रालय के 17 मार्च के पत्र को झूठ का पुलिंदा बताते हुए रद्द किया।
उन्होंने कहा कि इस समूचे घटनाक्रम का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने पर खुलासा होता है कि बी.एस.एफ. द्वारा भारत -पाकिस्तान सरहद के पास से पकड़े गए कुछ संदिग्ध व्यक्तियों की गिरफ़्तारी के सम्बन्ध में राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ सम्बन्धित बहुत ही संवेदनशील जानकारी को अनावश्यक रूप से तोड़-मरोड़ कर निराधार अनुमानों के साथ जोड़ दिया गया जिससे किसान भाईचारे के माथे पर बदनामी का कलंक लगाया जा सके। उन्होंने कहा कि यह हकीकत इस तथ्य से और भी स्पष्ट हो जाती है जिसमें कहा गया है कि, ’’केंद्रीय गृह मंत्रालय के पत्र की सामग्री के चुनिंदा अंश कुछ मीडिया संस्थानों को राज्य सरकार के उचित जवाब का इन्तज़ार किये बिना ही लीक किये गए हैं।’’
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि उनकी सरकार और पंजाब पुलिस गरीबों और कमज़ोर वर्गों के मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए पूर्ण तौर पर समर्थ और वचनबद्ध है। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि हर मामले में उपयुक्त कार्यवाही पहले ही आरंभ की जा चुकी है और बहुत से व्यक्ति अपने परिवारों के साथ रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि किसी भी स्तर पर कुछ भी ध्यान में आता है तो दोषियों के खि़लाफ़ उपयुक्त कानूनी कार्यवाही अमल में लाई जायेगी।
वह गृह मंत्री के उस पत्र पर प्रतिक्रिया दे रहे थे जिसमें दावा किया गया कि बी.एस.एफ. द्वारा साल 2019 और 2020 में पंजाब के सरहदी जिलों में से 58 भारतीय पकड़े गए थे और बंदी बनाए व्यक्तियों ने खुलासा किया था कि वह पंजाब के किसानों के पास बंधुआ मज़दूर के तौर पर काम कर रहे थे। पत्र में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आगे लिखा था, ’’आगे यह भी बताया गया था कि ग़ैर कानूनी मानव तस्करी सिंडिकेट इन भोले -भाले मज़दूरों का शोषण करते हैं और पंजाबी किसान इनसे अपने खेतों में घंटों काम करवाने के लिए इनको नशा देते हैं।’’
पत्र को ‘अनावश्यक और तथ्यों से गलत’ करार देते हुए इसको रद्द करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पत्र के तथ्यों के अनुसार बी.एस.एफ. अधिकारियों द्वारा न ही यह आंकड़े और न ही यह रिपोर्ट जमा करवाई गई। उन्होंने कहा, ’’गृह मंत्रालय का पत्र अबोहर की बात करता है जबकि वास्तविकता यह है कि अबोहर या फाजिल्का जिलों में कोई भी केस सामने नहीं आया।’’ उन्होंने कहा कि केंद्र का कोई भी निष्कर्ष तथ्यों से नहीं लिया गया। उन्होंने आगे कहा कि यह बी.एस.एफ. का काम नहीं कि वह ऐसे मामलों की जांच करे और उनकी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ सरहद पर संदिग्ध हालात में घूम रहे किसी व्यक्ति को पकड़ कर स्थानीय पुलिस के हवाले करना होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस पत्र को मीडिया के द्वारा सार्वजनिक करने से पहले गृह मंत्रालय को तथ्यों की जांच कर लेनी चाहिए थी और किसानों पर मज़दूर बंधुआ बनाने और उनको नशेड़ी बनाने के दोष लगाने की बजाय इस सूचना की राज्य सरकार से तस्दीक करवानी चाहिए थी। वह गृह मंत्रालय के बयान का हवाला दे रहे थे जिसमें कहा था, ’’ग़ैर कानूनी मानव तस्करी सिंडिकेट इन भोले-भाले मज़दूरों का शोषण करते हैं और पंजाबी किसान मज़दूरों से अपने खेतों में घंटों काम करने के लिए इनको नशेड़ी बनाते हैं।’’
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने गृह मंत्रालय पर ऐसा निराधार और झूठा प्रचार करने के लिए बरसते हुए कहा, ’’केंद्र द्वारा दोष लगाए गए सभी 58 मामलों की गहराई से जांच की गई और ऐसा कुछ भी नहीं पाया गया।’’
आंकड़े देते हुए उन्होंने बताया कि 58 बंदियों में से चार पंजाब के अलग-अलग इलाकों के साथ सम्बन्धित हैं और वह बी.एस.एफ. द्वारा भारत-पाकिस्तान सरहद के नज़दीक घूमते हुए देखे गए थे जबकि तीन मानसिक तौर पर अपाहिज पाए गए। एक परमजीत सिंह निवासी पटियाला जो पठानकोट के पास से पकड़ा गया, पिछले 20 सालों से मानसिक अपाहिज और पकड़े जाने से दो महीने पहले अपना घर छोड़कर गया था। रूड़ सिंह निवासी गुरदासपुर पकड़े जाने वाले दिन से ही इंस्टीट्यूट ऑफ मैंटल हैल्थ, अमृतसर में दाखि़ल करवाया गया था। एस.बी.एस. नगर का रहने वाला एक और व्यक्ति सुखविन्दर सिंह भी मानसिक रोग का सामना कर रहा है। इसके बाद ये तीनों व्यक्ति स्थानीय पुलिस द्वारा तस्दीक करने के उपरांत उसी दिन इनके परिवारों के हवाले कर दिए गए थे।
हिरासत में लिए 58 व्यक्तियों में से 16 दिमाग़ी तौर पर बीमार पाए गए जिनमें से चार बचपन से ही इस बीमारी से पीडित थे। इनमें से एक बाबू सिंह वासी बुलन्द शहर, (उत्तर प्रदेश) का तो आगरा से मानसिक इलाज चल रहा था और उसके डॉक्टरी रिकार्ड के आधार पर उसे पारिवारिक सदस्यों के हवाले कर दिया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि बी.एस.एफ. द्वारा पकड़े गए तीन व्यक्तियों की पहचान उनकी मानसिक स्थिति के कारण नहीं की जा सकी। उन्होंने कहा कि ऐसी मानसिक दशा वाले व्यक्तियों को कृषि के कामों के लिए बंधुआ मज़दूर के तौर पर नहीं रखा जा सकता।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह भी पता लगा है कि 14 व्यक्ति अपनी गिरफ़्तारी से कुछ दिन या हफ्ते पहले ही पंजाब आए थे इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उनके द्वारा लम्बे समय से खेतों में बंधुआ मज़दूरों के तौर पर काम करते होने वाली बात पूरी तरह निराधार है। उन्होंने आगे कहा कि गिरफ़्तार किये गए किसी भी व्यक्ति ने अदालत में भी ज़बरदस्ती खेत मज़दूर के तौर पर काम करने और अमानवीय हालत में रखे जाने का कोई दोष नहीं लगाया।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि किसी भी रिकार्ड से यह संकेत नहीं मिलता कि इन व्यक्तियों को लम्बे समय तक काम पर लगाए रखने के लिए ज़बरदस्ती नशे दिए जाते थे और यह कहना भी गलत है कि इन व्यक्तियों की मानसिक दशा नशों के कारण बिगड़ी है। उन्होंने आगे कहा कि इनमें से अधिकतर का बी.एस.एफ. या पुलिस की सहायता द्वारा डॉक्टरी मुआइना करवाया गया था और कोई भी रिकार्ड यह नहीं बताता कि उनको किसी भी नशे की आदत डालने वाली दवा खाने के लिए मजबूर किया गया था।