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आंख से न टपके वो लहू क्या है

आंध्र प्रदेश की धरती एक बार फिर बेगुनाहों के खून से नहा गई है। आंध्र प्रदेश में 20 गरीब मजदूरों जिन्हें पुलिस ने तस्कर कहा और तेलंगाना में हिरासत में सिमी के पांच आरोपियों की हत्या की गूंज राष्ट्रीय स्तर पर हुई और पुलिसिया हत्या पर बवाल मचा।
आंख से न टपके वो लहू क्या है

 दोनों राज्यों में तकरीबन एक ही तरह अलग-अलग मामलों में फर्जी एनकाउंटर हुए जिसमें गरीबों और अल्पसंख्यकों को इस तरह मारा गया और उसके इर्द-गिर्द जो कहानी बुनी उसमें इतने झोल थे कि तुरंत ही सच्चाई साक्ष्य के साथ सामने आने लगी।

आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि तिरुपति के पास जंगल में कथित मुठभेड़ में मारे गए 20 लोगों के मामले में हत्या का मुकदमा क्यों नहीं दर्ज किया जाना चाहिए। यह मामला आने वाले दिनों में गरम रहेगा और तेलुगु देशम की चंद्रबाबू नायडू सरकार के लिए मुसीबत बनेगा। इसकी वजह यह भी है कि वह लंबे समय से दुर्लभ लाल चंदन वाले इस इलाके को तस्करों से मुक्त कराने की बात कह रहे थे। इस इलाके के 'विकास’ को लेकर उनकी कई महत्वाकांक्षी योजनाएं थीं, इसलिए यह माना जा रहा है कि रेड सेंडर्स एंटी स्मगलिंग टास्क फोर्स (आरएसएएसटीएफ) द्वारा 7 अप्रैल की रात को 20 लकड़हारों को मारने की घटना को राजनीतिक वरदस्त प्राप्त था। इस फर्जी मुठभेड़ का मामला खुलने के बाद वन मंत्री बोज्जाला गोपालकृष्णा रेड्डी का यह कहना, अगर ये लोग तस्कर नहीं थे तो ये चंदन के जंगलों में क्या कर रहे थे। क्या ये वहां घास उगा रहे थे। आंध्र प्रदेश सरकार अपराध को कड़ाई से निपटाती है। टीडीपी में कई नेताओं का भी मानना है कि 20 लोगों को मारने के फैसले की जानकारी चंद्रबाबू नायडू को न हो, ऐसा संभव नहीं है। इसके पीछे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दखल के अलावा कक्वमा जाति की लॉबी की चिंता की भी अहम भूमिका मानी जा रही है। इस कार्रवाई को इलाके में रेड्डी लॉबी के बढ़ते दबदबे को कम करने से जोडक़र देखा जा रहा है। फिलहाल ये हत्याएं और इनके जिंदा साक्ष्य छिपाने आसान नहीं होंगे।  

इस मामले में सिविल लिबर्टीज़ कमिटी ने इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिस पर सुनवाई चल रही है। अदालत ने जिस तरह मारे गए लोगों के शवों के अंतिम संस्कार को रोका, उससे ये आभास मिलता है कि अदालत को दाल काली लग रही है।

इसी दौरान इस फर्जी मुठभेड़ की कलई खुलने लगी है। इस घटना में जिंदा बच निकले तमिलनाडु के तिरुवनमल्लाई जिले के निकट अरनी इलाके के वेटागिरिपलायम गांव के चश्मदीद गवाह शेखर ने इस मुठभेड़ को फर्जी करार दिया है। शेखर ने बताया कि तिरुपति में आंध्र प्रदेश की पुलिस ने चंदन तस्करों को मारने के नाम पर फर्जी मुठभेड़ की थी। शेखर का दावा है कि सात लोगों को पुलिस ने पहले गिरफ्तार किया और फिर बस से उतार कर गोली मार दी। वह भी इसी बस में था और उसे पुलिस ने शायद इसलिए छोड़ दिया कि वह एक महिला की बगल में बैठा था और पुलिसवालों ने सोचा कि वह उसका पति है। मारे गए लोगों में 12 तमिलनाडु के मजदूर बताए जा रहे हैं। चश्मदीद का दावा पुलिस के उस दावे से एकदम अलग है, जिसमें कहा गया था कि चंदन की लकड़ी काट रहे तस्करों ने पुलिस पर हमला कर दिया था और आत्मरक्षा में पुलिस ने फायरिंग की थी।

पुलिस के इस दावे को मारे गए लोगों की लाशें भी झुठला रही हैं। अधिकांश के शरीर पर बहुत पास से गोली मारने के निशान है-सात के चेहरे पर गोली मारी गई है और बाकी के पेट, चेहरे, छाती तथा गर्दन पर गोली के निशान हैं। यहां तक कि इन लाशों का पोस्टमार्टम करने वाली डॉक्टरों की टीम ने भी माना कि बहुत करीब से गोली मारी गई थी। आंध्र प्रदेश सिविल लिबर्टीज कमेटी (एपीसीएलसी) के क्रांति चैतन्य का कहना है कि यह ठंडे दिमाग से की गई हत्याएं हैं।

ये हत्याएं आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु सरकारों के बीच तनाव को बढ़ा रही हैं। राजनीतिक दलों और मानवाधिकार संगठनों ने खुलकर कहा कि मारे गए सभी लोग तमिलनाडु के गरीब लकड़हारे थे जो रोजगार की तलाश में जा रहे थे। इस घटना की स्वतंत्र रूप से जांच कराने की मांग की गई है। इस बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ.पन्नीरसेल्वम ने आंध्र प्रदेश के सीएम को पत्र लिखा है। उन्होंने तमिलनाडु के लकड़हारों के मारे जाने की निंदा की है। इसके साथ ही, तमिलनाडु ने चिंगूर में मारे गए 12 लोगों के परिवार को तीन-तीन लाख रुपए के मुआवजे का एलान किया है। माकपा की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य बालाकृष्णन ने कहा कि घटना की सीबीआई जांच होनी चाहिए। पीएमके चीफ डॉ. एस रामदास ने आरोप लगाया कि गरीब लोगों को मारना पूर्व नियोजित था। आंध्र प्रदेश की जांच निष्पक्ष नहीं होगी। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के जज से इसकी जांच कराई जानी चाहिए।

इन दोनों ही वारदातों में खुलकर तमाम नियमों का उल्लंघन हुआ और जो ताजा फोटो सामने आए हैं, वे अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि ये हत्याएं सुनियोजित थी। तेलंगाना पुलिस ने पांच विचाराधीन कैदियों, जिनपर सिमी कार्यकर्ता होने का आरोप था, को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया। आंध्र प्रदेश से अलग होकर बनाए गए राज्य तेलंगाना में भी यह घटना 7 अप्रैल को ही हुई। पुलिस इन पांच विचाराधीन कैदियों को एक वैन में ले जा रही थी जिसमें 17 पुलिसवाले थे। पुलिस का कहना था कि इन कैदियों ने उन पर हमला बोला और खुद को बचाने के लिए इन्हें मार डाला। पुलिस की कहानी की पोल खोलने वाली फोटो सामने आई, जिसमें मारे गए आरोपियों के हाथ हथकड़ी में बंद दिखाई दिए। इन फोटो के सामने आने के बाद पुलिस के लिए सफाई देना मुश्किल होता जा रहा है। मारे गए आरोपियों के नाम थे-वकार अहमद, मोहम्मद जहीर, सईद अजमल, इजहार खान और मोहम्मद हनीफ। पिछले कुछ दिनों से तेलंगाना सरकार ने सिमी को एक बड़ा खतरा बताते हुए उसके खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है। इसी के तहत कुछ दिनों पहले हुई एक कार्रवाई में पुलिसवालों को जान गंवानी पड़ी। इसके बाद से ही राज्य में पुलिस प्रशासन में तनाव बढ़ा हुआ था। ये खबरें भी सामने लाई गईं कि आरोपी वैन पुलिस के साथ बदसलूकी कर रहे थे। हालांकि पांच आरोपी किस तरह 17 पुलिसकर्मियों पर भारी पड़ सकते हैं, इसका जवाब अभी तक कई अधिकारी ठोस रूप में नहीं दे पाए हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ता पांचों की मौत को पुलिस द्वारा की गई बदले की कार्रवाई ही बता रहे हैं।

एक सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि जिन आरोपियों की मौत हुई, उनका मुकदमा लगभग अंतिम चरण में था और खबर थी कि एकाध महीने में फैसला आ जाता। इसके बाद ही पता चलता कि वे 'दहशतगर्द’ थे या नहीं या उन्होंने आतंकवादी हमले किए थे या नहीं! पुलिस की इस कार्रवाई का मुस्लिम समुदाय के तेज-तर्रार नेता मोहम्मद ओवैसी ने भी कड़ा विरोध करते हुए इसे बदले की कार्रवाई बताया है। मारे गए आरोपियों के परिजनों ने भी हत्याकांड की उच्चस्तरीय जांच कराने की  मांग की है।

ऐसे में तेलंगाना की राजनीति में भी उबाल आया है। आंध्र और तेलंगाना की इस पट्टी में खलबली है। इन हत्याओं ने एक बार फिर इस क्षेत्र में कानून के रक्षकों द्वारा ठंडे दिमाग से हत्याएं करने की पुराने तरीके को जिंदा किया है। इस पूरे क्षेत्र में नक्सल आंदोलन के दमन के लिए विशेष प्रशिक्षित कुख्यात दस्ते ग्रे हाउंड द्वारा इस तरह की हत्याओं का लंबा दौर चला है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना पुलिस ने जिस तरह सुनियोजित ढंग से ये हत्याएं की हैं, उससे ये आशंका जताई जा रही हैं कि आने वाले दिनों में राज्य की हिंसा और बढऩे जा रही है।

आंध्र प्रदेश की धरती एक बार फिर बेगुनाहों के खून से नहा गई है। आंध्र प्रदेश में 20 गरीब मजदूरों जिन्हें पुलिस ने तस्कर कहा और तेलंगाना में हिरासत में सिमी के पांच आरोपियों की हत्या की गूंज राष्ट्रीय स्तर पर हुई और पुलिसिया हत्या पर बवाल मचा। दोनों राज्यों में तकरीबन एक ही तरह अलग-अलग मामलों में फर्जी एनकाउंटर हुए जिसमें गरीबों और अल्पसंख्यकों को इस तरह मारा गया और उसके इर्द-गिर्द जो कहानी बुनी उसमें इतने झोल थे कि तुरंत ही सच्चाई साक्ष्य के साथ सामने आने लगी।

आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि तिरुपति के पास जंगल में कथित मुठभेड़ में मारे गए 20 लोगों के मामले में हत्या का मुकदमा क्यों नहीं दर्ज किया जाना चाहिए। यह मामला आने वाले दिनों में गरम रहेगा और तेलुगु देशम की चंद्रबाबू नायडू सरकार के लिए मुसीबत बनेगा। इसकी वजह यह भी है कि वह लंबे समय से दुर्लभ लाल चंदन वाले इस इलाके को तस्करों से मुक्त कराने की बात कह रहे थे। इस इलाके के 'विकास’ को लेकर उनकी कई महत्वाकांक्षी योजनाएं थीं, इसलिए यह माना जा रहा है कि रेड सेंडर्स एंटी स्मगलिंग टास्क फोर्स (आरएसएएसटीएफ) द्वारा 7 अप्रैल की रात को 20 लकड़हारों को मारने की घटना को राजनीतिक वरदस्त प्राप्त था। इस फर्जी मुठभेड़ का मामला खुलने के बाद वन मंत्री बोज्जाला गोपालकृष्णा रेड्डी का यह कहना, अगर ये लोग तस्कर नहीं थे तो ये चंदन के जंगलों में क्या कर रहे थे। क्या ये वहां घास उगा रहे थे। आंध्र प्रदेश सरकार अपराध को कड़ाई से निपटाती है। टीडीपी में कई नेताओं का भी मानना है कि 20 लोगों को मारने के फैसले की जानकारी चंद्रबाबू नायडू को न हो, ऐसा संभव नहीं है। इसके पीछे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दखल के अलावा कक्वमा जाति की लॉबी की चिंता की भी अहम भूमिका मानी जा रही है। इस कार्रवाई को इलाके में रेड्डी लॉबी के बढ़ते दबदबे को कम करने से जोडक़र देखा जा रहा है। फिलहाल ये हत्याएं और इनके जिंदा साक्ष्य छिपाने आसान नहीं होंगे।  

इस मामले में सिविल लिबर्टीज़ कमिटी ने इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिस पर सुनवाई चल रही है। अदालत ने जिस तरह मारे गए लोगों के शवों के अंतिम संस्कार को रोका, उससे ये आभास मिलता है कि अदालत को दाल काली लग रही है।

इसी दौरान इस फर्जी मुठभेड़ की कलई खुलने लगी है। इस घटना में जिंदा बच निकले तमिलनाडु के तिरुवनमल्लाई जिले के निकट अरनी इलाके के वेटागिरिपलायम गांव के चश्मदीद गवाह शेखर ने इस मुठभेड़ को फर्जी करार दिया है। शेखर ने बताया कि तिरुपति में आंध्र प्रदेश की पुलिस ने चंदन तस्करों को मारने के नाम पर फर्जी मुठभेड़ की थी। शेखर का दावा है कि सात लोगों को पुलिस ने पहले गिरफ्तार किया और फिर बस से उतार कर गोली मार दी। वह भी इसी बस में था और उसे पुलिस ने शायद इसलिए छोड़ दिया कि वह एक महिला की बगल में बैठा था और पुलिसवालों ने सोचा कि वह उसका पति है। मारे गए लोगों में 12 तमिलनाडु के मजदूर बताए जा रहे हैं। चश्मदीद का दावा पुलिस के उस दावे से एकदम अलग है, जिसमें कहा गया था कि चंदन की लकड़ी काट रहे तस्करों ने पुलिस पर हमला कर दिया था और आत्मरक्षा में पुलिस ने फायरिंग की थी।

पुलिस के इस दावे को मारे गए लोगों की लाशें भी झुठला रही हैं। अधिकांश के शरीर पर बहुत पास से गोली मारने के निशान है-सात के चेहरे पर गोली मारी गई है और बाकी के पेट, चेहरे, छाती तथा गर्दन पर गोली के निशान हैं। यहां तक कि इन लाशों का पोस्टमार्टम करने वाली डॉक्टरों की टीम ने भी माना कि बहुत करीब से गोली मारी गई थी। आंध्र प्रदेश सिविल लिबर्टीज कमेटी (एपीसीएलसी) के क्रांति चैतन्य का कहना है कि यह ठंडे दिमाग से की गई हत्याएं हैं।

ये हत्याएं आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु सरकारों के बीच तनाव को बढ़ा रही हैं। राजनीतिक दलों और मानवाधिकार संगठनों ने खुलकर कहा कि मारे गए सभी लोग तमिलनाडु के गरीब लकड़हारे थे जो रोजगार की तलाश में जा रहे थे। इस घटना की स्वतंत्र रूप से जांच कराने की मांग की गई है। इस बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ.पन्नीरसेल्वम ने आंध्र प्रदेश के सीएम को पत्र लिखा है। उन्होंने तमिलनाडु के लकड़हारों के मारे जाने की निंदा की है। इसके साथ ही, तमिलनाडु ने चिंगूर में मारे गए 12 लोगों के परिवार को तीन-तीन लाख रुपए के मुआवजे का एलान किया है। माकपा की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य बालाकृष्णन ने कहा कि घटना की सीबीआई जांच होनी चाहिए। पीएमके चीफ डॉ. एस रामदास ने आरोप लगाया कि गरीब लोगों को मारना पूर्व नियोजित था। आंध्र प्रदेश की जांच निष्पक्ष नहीं होगी। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के जज से इसकी जांच कराई जानी चाहिए।

इन दोनों ही वारदातों में खुलकर तमाम नियमों का उल्लंघन हुआ और जो ताजा फोटो सामने आए हैं, वे अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि ये हत्याएं सुनियोजित थी। तेलंगाना पुलिस ने पांच विचाराधीन कैदियों, जिनपर सिमी कार्यकर्ता होने का आरोप था, को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया। आंध्र प्रदेश से अलग होकर बनाए गए राज्य तेलंगाना में भी यह घटना 7 अप्रैल को ही हुई। पुलिस इन पांच विचाराधीन कैदियों को एक वैन में ले जा रही थी जिसमें 17 पुलिसवाले थे। पुलिस का कहना था कि इन कैदियों ने उन पर हमला बोला और खुद को बचाने के लिए इन्हें मार डाला। पुलिस की कहानी की पोल खोलने वाली फोटो सामने आई, जिसमें मारे गए आरोपियों के हाथ हथकड़ी में बंद दिखाई दिए। इन फोटो के सामने आने के बाद पुलिस के लिए सफाई देना मुश्किल होता जा रहा है। मारे गए आरोपियों के नाम थे-वकार अहमद, मोहम्मद जहीर, सईद अजमल, इजहार खान और मोहम्मद हनीफ। पिछले कुछ दिनों से तेलंगाना सरकार ने सिमी को एक बड़ा खतरा बताते हुए उसके खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है। इसी के तहत कुछ दिनों पहले हुई एक कार्रवाई में पुलिसवालों को जान गंवानी पड़ी। इसके बाद से ही राज्य में पुलिस प्रशासन में तनाव बढ़ा हुआ था। ये खबरें भी सामने लाई गईं कि आरोपी वैन पुलिस के साथ बदसलूकी कर रहे थे। हालांकि पांच आरोपी किस तरह 17 पुलिसकर्मियों पर भारी पड़ सकते हैं, इसका जवाब अभी तक कई अधिकारी ठोस रूप में नहीं दे पाए हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ता पांचों की मौत को पुलिस द्वारा की गई बदले की कार्रवाई ही बता रहे हैं।

एक सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि जिन आरोपियों की मौत हुई, उनका मुकदमा लगभग अंतिम चरण में था और खबर थी कि एकाध महीने में फैसला आ जाता। इसके बाद ही पता चलता कि वे 'दहशतगर्द’ थे या नहीं या उन्होंने आतंकवादी हमले किए थे या नहीं! पुलिस की इस कार्रवाई का मुस्लिम समुदाय के तेज-तर्रार नेता मोहम्मद ओवैसी ने भी कड़ा विरोध करते हुए इसे बदले की कार्रवाई बताया है। मारे गए आरोपियों के परिजनों ने भी हत्याकांड की उच्चस्तरीय जांच कराने की  मांग की है।

ऐसे में तेलंगाना की राजनीति में भी उबाल आया है। आंध्र और तेलंगाना की इस पट्टी में खलबली है। इन हत्याओं ने एक बार फिर इस क्षेत्र में कानून के रक्षकों द्वारा ठंडे दिमाग से हत्याएं करने की पुराने तरीके को जिंदा किया है। इस पूरे क्षेत्र में नक्सल आंदोलन के दमन के लिए विशेष प्रशिक्षित कुख्यात दस्ते ग्रे हाउंड द्वारा इस तरह की हत्याओं का लंबा दौर चला है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना पुलिस ने जिस तरह सुनियोजित ढंग से ये हत्याएं की हैं, उससे ये आशंका जताई जा रही हैं कि आने वाले दिनों में राज्य की हिंसा और बढऩे जा रही है।

  आंध्रप्रदेश में लाल चंदन की तस्करी के आरोप में मारे गए बीस लकड़हारों के मामले में घिर सकती है चंद्रबाबू नायडू की सरकार। केंद्र सरकार ने मांगी सफाई। अदालत का रुख कड़ा।

तेलंगाना में पांच विचाराधीन कैदियों की हिरासत में मौत से घिरी केसीआर सरकार। राज्य में सिमी के नाम सांप्रदायिक धु्रवीकरण करने का आरोप।

आंध्र प्रदेश लाल चंदन के तस्करों से निपटने के लिए रेड सेंडर्स एंटी स्मगलिंग टास्क फोर्स का गठन पिछले साल 25 नवंबर को किया गया था।

आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी की सरकार आने के बाद से 831 लाल चंदन तस्करी के मामले दर्ज किए गए। 5237 गिरफ्तारियां हुईं और 15,520ट्ठे बरामद किए गए।

तस्कर जंगल से लकड़ी काटने के लिए लकड़हारों और माल ढोने केलिए तमिलनाडु से मजदूर रखते हैं। सामान्य तौर पर ये गरीब और बेरोजगार मजदूर होते हैं जिन्हें 700 से1000 रुपये की दिहाड़ी पर रखा जाता है।

लाल चंदन का कुख्यात तस्कर कोलम गैंगिरेड्डी है, जो इन दिनों मॉरीशस की जेल में है। दूसरा कुख्यात तस्कर है टीवी भास्कर नायडू, जो इन दिनों राजमुदंरी में जेल काट रहा है।

आंध्र प्रदेश दुनिया के सबसे अधिक लाल चंदन पैदा करता है। कडप्पा और चित्तूर जिलों में है यह जंगल। यह चंदन चीन और जापान जाता है या तस्करी होती है। 

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