73 वर्षीय नूरसबा बीते 36 सालों से न्याय के गलियारों में धक्के खा रही हैं। उनकी फाइलें भारत की सरकारी व्यवस्था का शिकार हो धूल फांक रही हैं। वजह है कि नूरसबा ने उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग को अपनी फाइलें आगे बढ़ाने के लिए 30 फीसदी कमीशन देने से साफ इनकार कर दिया। वह अपनी मांगों के समर्थन में इन दिनों जंतर-मंतर पर बैठी हैं।
वह बताती हैं ‘मैं 32 साल की थी जब मेरे पति की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी। वह एक सरकारी स्कूल में प्रिंसीपल थे। अपनी पेंशन, फंड और तमाम अधिकार लेने के लिए जब मैंने कागजी कार्रवाई शुरू की तो शिक्षा विभाग ने मुझसे फाइलें आगे बढ़ाने के लिए घूस मांगी। मेरे पास न तो घूस देने के लिए पैसे थे न मैं देना चाहती थी।’ 36 साल से अपने मरहूम पति की पेंशन और फंड पाने के लिए नूरसबा अदालतों, नेताओं और शिक्षा विभाग में चप्पलें चटकाकर अब थक गई हैं। इनके पांच बेटे हैं और तीन बेटियां। पति की मौत के बाद किसी प्रकार बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर बड़ा किया।
लेकिन अब वह कहती हैं ‘मेरी माली हालत इतनी खराब हो चुकी है कि मैं अपनी दवा-दारू भी नहीं कर पा रही हूं।’ नूरसबा के अनुसार वह 32 सालों से रात को सोई नहीं हैं। ब्लड प्रेशर और शूगर की मरीज भी हैं। नूरसबा के पति को उत्कृष्ट सेवा पदक, पदमश्री, दक्षता पुरस्कार और राष्ट्रपति से पांच प्रशस्ति पत्र मिल चुके हैं।
वह कहती हैं कि न्याय के लिए पहली दफा वह वर्ष 1997 में हाईकोर्ट गईं। उसके बाद वर्ष 2007 में सुप्रीम कोर्ट गईं। हालांकि 30 अप्रैल 2015 को संसद में सांसद अली अनवर ने मामले को उठाया, जिसके बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र भेज यह सुनिश्चत करने के लिए कहा कि नूरसबा को बीते वर्षों से लेकर अब तक का सारा भुगतान किया जाए। लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया है। बेबस नूरसबा अब अपनी खराब तबीयत के बावजूद जंतर-मंतर पर बैठी हैं और इनका कहना है कि वह न्याय लिए बगैर यहां से नहीं जाएंगी।