राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भोपाल जेल में विचारधीन कैदियों के टॉर्चर की शिकायतों को सही पाया है। अपनी जांच में आयोग ने जेल स्टाफ के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की अनुशंसा भी की है।
भोपाल सेंट्रल जेल में बंद 21 विचारधीन कैदियों के परिजनों ने 24 मई, 2017 राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से मुलाकात कर आरोप लगाया था कि चूंकि सभी कैदी सिमी से सम्बंधित मामलों में आरोपी हैं, इस कारण जेल स्टाफ उन पर लगातार तरह-तरह के अत्याचार करता है। परिवार के सदस्यों का आरोप था कि जेल स्टाफ विचारधीन कैदियों के साथ समय-समय पर मारपीट करती है। गैर कानूनी होते हुए भी उन्हें एकांत कारावास में मजबूरन रखा जाता है। जबरन रात भर जगाये रखना, गंभीर बीमारियों का इलाज करने में आनाकानी करना, बुनियादी जरूरतों से वंचित रखना जैसे अत्याचार करती है। परिवार के सदस्यों के आरोपो को गंभीरता से लेते हुए आयोग ने एक टीम जून 2017 में जांच के लिए भेजी थी।
इस दौरान जांच दल ने कैदियों, जेल स्टाफ, परिवार के सदस्यों, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से मुलाकात की थी। अपनी जांच के आधार पर आयोग ने एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर मध्य प्रदेशख सरकार को 10 अक्टूबर 2017 को भेजी थी।
सामाजिक कार्यकर्ता और पीयूसीएल मध्य प्रदेश की एक्टविस्ट माधुरी कहती हैं, "आयोग ने अपनी रिपोर्ट में टार्चर, मारपीट और प्रताड़ना की ज्यादातर शिकायतें सही पाई हैं। आयोग ने कैदियों के साथ टॉर्चर, मारपीट, धमकी और बुनियादी मानव अधिकारों के हनन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल जेल कर्मचारियों, अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की है।''
विचाराधीन कैदी मोहम्मद जावेद की पत्नी शमा ने भोपाल में पत्रकारवार्ता में यह आरोप लगाया, "मैं जेल में 15 मार्च को शौहर से मिलने पहुंची थी और मेरे शौहर से उनकी मां ने 26 मार्च को मुलाकात की है। मेरे शौहर ने मुझे बताया कि जेल के अन्य कैदी- अमित, धर्मेंद्र और विजय वर्मा उनसे गाली गलौच करते हैं और जेल स्टाफ की मदद से प्रताड़ित करते रहते हैं। शिकायत के बावजूद जेल स्टाफ उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करता है।"
पत्रकारवार्ता में विचारधीन कैदियों के परिवार के सदस्यों के अलावा, शिक्षाविद अनिल सदगोपाल, गैस पीड़ितों के बीच काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल जब्बार, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील सादिक अली भी मौजूद थे।