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हिमाचल चुनाव में बंदर बना चुनावी मुद्दा

चुनाव के दौरान पशुओं का सुर्खियों में रहना नई बात नहीं है। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान गाय तो...
हिमाचल चुनाव में बंदर बना चुनावी मुद्दा

चुनाव के दौरान पशुओं का सुर्खियों में रहना नई बात नहीं है। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान गाय तो उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान गध्‍ाे की खूब चर्चा हुई। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान शेर चर्चा में रहा था। नौ नवंबर को होने वाले हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बंदर सुर्खियों में हैं।

हिमाचल में चार लाख से अधिक बंदर होने का अनुमान है। राजधानी शिमला में ही 2,400 से ज्यादा बंदर हैं। राज्य के करीब 2,000 गांवों में बंदर का आतंक है। यही कारण्‍ा है ‌क‌ि पहाड़ी प्रदेश्‍ा में बंदरों का आतंक महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार की तरह ही अहम मुद्दा है। लोगों को निशाना बनाने के साथ-साथ बंदर फसलों, बगीचों को भी नष्ट कर देते हैं। यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों चुनाव जीतने पर बंदरों के आतंक से मुक्ति दिलाने का वादा जनता से कर रहे हैं। 

भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल बंदराें के अातंक के लिए निर्वतमान कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार मानते हैं। बंदरों की आबादी नियंत्रित करने के लिए सही तरीके से नसबंदी कार्यक्रम नहीं चलाने का आरोप वे कांग्रेस पर लगा रहे हैं।  भाजपा की सरकार बनने पर वे खेतो की घेराबंदी करवाने और बंदरों की आबादी ‌नियंत्रित करने के लिए जरूरी कदम उठाने की वादा कर रहे हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती कहते हैं नसंबंदी पर कराेड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद बंदरों की संख्या बढ़ रही है। हालांकि कांग्रेस इन आरोपों को खारिज करती है। उद्योग मंत्री मुकेश अग्निहोत्री का कहना है कि इस समस्या को समाप्त करने के लिए नसबंदी के अलावा कई अन्य कदम भी सरकार ने उठाए हैं। सत्ता में वापसी होने पर इसे और गति दी जाएगी।

 

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