गौरतलब है की महबूबा ने कहा था कि दुर्दांत अलगाववादी मसर्रत आलम की रिहाई में कुछ भी गलत नहीं है, उसने कभी बंदूक नहीं उठायी और वह वर्ष 2010 की पथराव वाली अशांति की उपज है जिसकी उसने अगुवाई की थी। उन्होंने कहा कि उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की अगुवाई वाली जम्मू कश्मीर सरकार इस अलगाववादी को रिहा कर बस उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन कर रही थी।
पिछले सप्ताह आलम की रिहाई होने से संसद में काफी हंगामा हुआ था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कहना पड़ा था कि यह अस्वीकार्य है। उसकी रिहाई से पीडीपी का अपने गठबंधन सहयोगी भाजपा के साथ संबंधों में तनाव आ गया था। महबूबा ने आश्चर्य के साथ कहा, यदि उच्चतम न्यायालय का निर्देश का पालन करना गलत है तब हम क्या करें। जब कश्मीर की बात आती है तो आप खुद अपने उच्चतम न्यायालय के आदेश को उलट देने की कोशिश कर रहे हैं। आप एेसा कैसे कर सकते हैं।
पीडीपी-भाजपा गठबंधन को जनादेश पर आधारित बताने वालीं महबूबा ने कहा कि अदालत के फैसलों को लेकर दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कहा, आप सूची में 28 वां नंबर उठा लेते हैं और अफजल गुरू को फांसी पर चढ़ा देते हैं और कहते हैं कि यह उच्चतम न्यायालय का फैसला है। लेकिन जब वही उच्चतम न्यायालय कहता है कि आलम को रिहा करो जो बिना आरोप के हिरासत में रखा गया है तो आप उस पर सवाल खड़ा करते हैं।
जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने की मांग पर महबूबा ने कहा कि घाटी पहले ही भारत से भौतिक रूप से जुड़ी हुई है और भाजपा के साथ साभुोदारी में पीडीपी चाहती है कि वह देश के बाकी हिस्सों से भावनात्मक रूप से भी जुड़ जाए।
पीडीपी प्रमुख ने चेतावनी दी कि 2010 की हिंसा दोहरायी गयी तो कई और मसर्रत आलम होंगे।