पिछले दिनों सुकमा में नक्सलियों के हमले में 25 जवान शहीद हुए। जिसके बाद घटनास्थल पर पहुंचे गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने पाया कि बस्तर के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में तैनात जवानों में थकान के लक्षण दिखाई दिए हैं। बताया गया कि अर्धसैनिक बल के 45 हजार जवानों में से अधिकतर जवान वहां पांच वर्षों से तैनात हैं। जबकि समान्यतया उन्हें वहां तीन वर्ष तक ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि क्षेत्रों में लंबे समय से तैनात रहने के कारण उनके उत्साह में कमी आई है।
कश्मीर जाना पसंद पर बस्तर नहीं
बताया जा रहा है कि लगातार बस्तर में तैनात रहना बेहद तनावपूर्ण है और यही कारण है कि जवान अन्य कहीं भी नक्सल विरोधी अभियान में जाने को तरजीह देते है। जवान कश्मीर तक जाना पसंद कर रहे हैं जहां सुरक्षाबलों को लगातार आतंकवादी हमलों और पथराव की घटना का सामना करना पड़ता है।
मनोबल बढ़ाने का प्रयास
गृह मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि सोमवार को नक्सलियों ने जिन सौ जवानों पर हमला किया था वह पर्याप्त रूप से सतर्क नहीं थे जिसके कारण इतना बड़ा हादसा हुआ।उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार नक्सल विरोधी अभियानों के लिए जरूरी साजो सामान और आधारभूत ढ़ांचा मुहैया करा कर जवानों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास कर रही है। जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ में जवानों के पास 58 बारूदी सुरंग रक्षक वाहन हैं। इसके अलावा 30 वाहनों की खरीद की जानी है। बस्तर क्षेत्र में केन्द्रीय अर्धसैनिक बलों के कम से कम 45 हजार और राज्य पुलिस के 20 हजार जवान तैनात किए गए हैं।