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देवी मंदिर की दहलीज पर रोके गए दलित

छुआछूत उन्मूलन के सारे सरकारी वादे खोखले हो जाते हैं जब खबर आती है कि किसी मंदिर में दलितों को जाने से रोका गया। हिमाचल प्रदेश के जोगिंद्रनगर जिले के गांव घटासणी में एक ऐसा ही मामला सामने आया है। यहां दलितों को जालपा मंदिर में प्रवेश से न केवल रोका गया बल्कि फतवे के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले दलितों को धमकाया भी जा रहा है। हालांकि इस घटना को दबाने के लिए प्रशासन और पुलिस ने ठीक से लीपापोती कर दी है।
देवी मंदिर की दहलीज पर रोके गए दलित

आउटलुक से बातचीत में घटासणी गांव में रहने वाली दलित समुदाय की लड़की आशा देवी ने बताया ’20 तारीख को मेरे भाई की शादी थी। हम मंदिर में फेरे लेना चाहते थे। लेकिन मंदिर की चाबी जिनके पास रहती है उन्होंने कहा कि मंदिर के बाहर फेरे ले लो। मेरी मां ने उनकी मिन्नतें भी कीं लेकिन वह नहीं मानी। बड़ी मुश्किल से मेरी भाभी को तैयार होने के लिए सराय में एक कमरा दे दिया गया लेकिन भाई को सड़क पर बारिश में ही तैयार होना पड़ा।’ आशादेवी के अनुसार फेरों के बाद परिवार दुल्हा-दुल्हन को मंदिर में माथा टिकवाना चाहता था लेकिन उन्हें वहां नहीं जाने दिया गया। दूल्हा-दुल्हन को लेकर सभी लोग घर आ गए लेकिन आशा गांव के सवर्ण जाति के लोगों के घर गई। आशा का कहना है कि वहां मंदिर कमेटी के प्रधान और पुजारी मौजूद थे। आशा के अनुसार उनका कहना है कि वे लोग दलितों को मंदिर में नहीं आने देंगे क्योंकि न तो वे भंडारे में पैसे देते हैं और न ही कोई अन्य योगदान। आशा का कहना है कि मंदिर के सालाना भंडारे में भी दलितों को अलग पंगत में बिठाया जाता है।

 

आशा इस मसले को लोकर एसडीएम राहुल चौहान के पास पहुंच गई। आउटलुक ने जब राहुल चौहान से बात कि तो उन्होंने बताया कि दो दिन पहले उनके पास इस गांव की करीब दस लड़कियां आई थीं। उनकी शिकायत थी कि उन्हें गांव के जालपा मंदिर में नहीं जाने दिया जाता। राहुल चौहान ने शनिवार को घटासणी का दौरा भी किया। उनका कहना है कि मामले की जांच थानेदार कर रहे हैं। थानेदार ने हमारा फोन नहीं उठाया। आशा के अनुसार 20 तारीख से लेकर आज तक सवर्ण लोगों से दलितों के बीच जो तनाव चल रहा था उसमें दोनों तरफ से लोगों ने एक दूसरे के साथ गाली-गलौज भी की थी। आशा को धमकियां भी दी गई थीं। इस मामले में एफआईआर के बाद थानेदार ने दोनों तरफ के लोगों की सुलह करवा दी। प्रदेश सीपीएम के सचिवालय सदस्य कुशाल भारद्वाज का कहना है कि प्रशासन ने इस बात का कोई हल नहीं निकाला है जिससे दलितों को मंदिर में प्रवेश मिल सके।  

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