कोर्ट ने कहा कि डांस बार एक सम्मानित पेशा है। हालांकि अदालत ने स्पष्ट तौर पर कहा कि किसी भी किस्म की अश्लीलता न हो इसके लिए राज्य सरकार कानून बनाने के लिए स्वतंत्र है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति पी सी पंत की पीठ ने इस बात पर अप्रसन्नता जताई कि राज्य ने उसका पूर्व का आदेश लागू नहीं किया। महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि अदालत के किसी भी निर्देश का सम्मान किया जाएगा और वह लागू होगा। इस बीच, पीठ ने आर आर पाटिल फाउंडेशन के अध्यक्ष विनोद पाटिल को मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति दे दी। पाटिल ने अपनी अर्जी में दावा किया है कि डांस बारों को फिर से खोलने की अनुमति देने से अपराध बढ़ेंगे।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने 2014 में कानून बनाकर डांस बार पर रोक लगा दी थी। सरकार के उस प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट ने पलटते हुए कुछ दिनों पहले ही डांस बारों पर से रोक हदा दी थी। हालांकि अदालत ने हिदायत दी है कि डांस बार के जरिए किसी तरह की अश्लीलता नहीं परोसी जानी चाहिए। महाराष्ट्र में डांस बारों पर पहली बार 2005 में रोक लगाई गई थी। बैन लगने के बाद इस पेशे से जुड़े करीब 1.5 लाख लोग बेरोजगार हो गए थे इनमें करीब 70 हजार बार बालाएं थीं। इस साल जून में सरकार ने सभी होटलों पर बैन लगा दिया था.
महाराष्ट्र सरकार ने बंबई पुलिस कानून 2005 का संशोधन किया है। इसको इंडियन होटल एंड रेस्तरां एसोसिएशन ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। बंबई उच्च न्यायालय ने 12 अप्रैल 2006 को सरकार के निर्णय को खारिज करते हुए प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। उसने कहा था कि यह संविधान के अनुच्छेद 19 (।)(जी) (कोई भी व्यवसाय, नौकरी या व्यापार करने का अधिकार) के विरूद्ध है। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के आदेश को निरस्त करने के बंबई उच्च न्यायालय के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा था कि प्रतिबंध से जीवन यापन के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है।
महाराष्ट्र विधानसभा ने पिछले साल 13 जून को महाराष्ट्र पुलिस (दूसरा संशोधन) विधेयक पारित किया था। इसके तहत तीन सितारा एवं पांच सितारा होटलों में डांस बार के लाइसेंस पर रोक लगाई गई है। इस प्रतिबंध के दायरे में रंगमंच, सिनेमा हाल, सभागार, खेल क्लब एवं जिमखाना शामिल हैं जिसमें केवल सदस्यों के लिए ही प्रवेश सीमित होता है।