इस पर्वतीय क्षेत्र में बारिश के सीजन में हर साल होने वाली भूस्खलन की घटनाओं में जान-माल का भारी नुकसान होता है। अभी पहली जुलाई को हुए भूस्खलन में कम से कम 38 लोग जिंदा ही मलबे में दफन हो गए। साल-दर-साल तेज होते भूस्खलन के सिलसिले के बावजूद यहां पेड़ों की अवैध कटाई का सिलसिला जस का तस है। पर्यटकों की साल दर साल बढ़ती तादाद को ध्यान में रखते हुए शहर व आसपास के इलाकों में हर साल कई दर्जन नए होटल व रिसार्ट खड़े हो रहे हैं।
जिस पर्यटन उद्योग को कभी यहां अर्थव्यवस्था का सबसे मजबूत आधार समझा जाता था, उसी के दबाव में हुए अंधाधुंध निर्माण ने शहर का वजूद ही खतरे में डाल दिया है। दार्जिलिंग में पहला बड़ा भूस्खलन 24 सितंबर, 1899 को हुआ था जिसमें 72 लोग मारे गए थे। दार्जिलिंग नगरपालिका ने चार साल पहले छह मंजिल या उससे ऊंची इमारतों के मालिकों को कारण बताओ नोटिस भेजा था। लेकिन इस बारे में अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। इलाके में बड़े पैमाने पर बनने वाली बहुमंजिली इमारतों, जिनमें से ज्यादातर का निर्माण कानूनों को ठेंगा दिखा कर हुआ है, के चलते पर्वतीय इलाके में मिट्टी की संरचना बदल गई है. इसी वजह से यह पूरा इलाका भूस्खलन के लिहाज से काफी संवेदनशील हो गया है। हल्की बारिश होते ही जमीन धंसने लगती है। भूविज्ञानियों का कहना है कि गैरकानूनी इमारतों के निर्माण और उनमें ड्रेनेज की समुचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से भूस्खलन की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं।
एक भूवैज्ञानिक सुबीर सरकार कहते हैं कि बीते पांच-छह दशकों में दार्जिलिंग की आबादी बेतहाशा बढ़ी है। इस बढ़ती आबादी के चलते अवैध निर्माण भी तेज हुआ है। इन इमारतों में ड्रेनेज की कोई समुचित व्यवस्था नहीं होती। जमीन धंसने की घटनाओं में वृद्धि इसी का नतीजा है। भूस्खलन के चलते चट्टानें खिसकने के कारण बरसात के सीजन में अमूमन देश के बाकी हिस्सों से इस पर्यटन केंद्र का संपर्क कटा रहता है। सड़कें व विश्वप्रसिद्ध ट्वाय ट्रेन यानी खिलौना गाड़ी की पटरियां टूट जाती हैं। इस ट्वाय ट्रेन को यूनेस्को ने विश्व धरोहरों की सूची में रखा है। एक वाक्य में कहें तो इलाके के बेतरतीब विकास ने ही विनाश को न्योता दिया है।