दिल्ली उच्च न्यायालय के एक अहम फैसले के बाद दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सभी सरकारी, सहायता प्राप्त और निजी मान्यता प्राप्त स्कूलों को स्मार्टफोन नीति तैयार करने का निर्देश दिया है। सरकार ने कहा कि वे छात्रों द्वारा स्कूल में स्मार्टफोन के उपयोग को लेकर स्पष्ट और संतुलित नीति तैयार करें और उसे लागू करें।
शिक्षा निदेशालय ने 17 अप्रैल, 2025 को जारी एक परिपत्र में कहा, “माननीय उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि स्कूलों में स्मार्टफोन के उपयोग से जुड़े लाभ और नुकसान दोनों मौजूद हैं। इसलिए, स्कूल स्तर पर एक समर्पित नीति बनाना जरूरी है जो इन पहलुओं को संतुलित रूप से देख सके।”
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में अपने एक फैसले में स्कूलों में स्मार्टफोन को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी द्वारा पारित इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि तकनीक के युग में स्मार्टफोन का शिक्षा से सकारात्मक संबंध भी हो सकता है। बशर्ते उसका उपयोग नियंत्रित और निगरानी में किया जाए।
यह निर्णय एक नाबालिग छात्र द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। जिसमें स्कूलों में स्मार्टफोन के उपयोग पर दिशानिर्देश तय करने की मांग की गई थी। छात्र की ओर से अधिवक्ता आशु बिधूड़ी ने यह याचिका दाखिल की थी।
याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS), राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) और दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) जैसे निकायों से भी सुझाव आमंत्रित किए गए। विशेष रूप से केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) ने अदालत से स्कूलों में स्मार्टफोन के उपयोग के लिए दिशानिर्देश स्थापित करने का अनुरोध किया।
अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि छात्रों को स्मार्टफोन के उपयोग की अनुमति देने के संभावित लाभ और हानियों के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके। इसके तहत यह अनुशंसा की गई कि स्कूलों को छात्रों के स्मार्टफोन लाने से पूरी तरह रोकने की बजाय, उनके उपयोग को एक तयशुदा ढांचे के तहत सीमित और नियंत्रित किया जाना चाहिए। स्मार्टफोन को स्कूल में जमा करने और घर लौटते समय वापस लेने की व्यवस्था होनी चाहिए। ताकि शिक्षण में कोई व्यवधान न हो।
इसके साथ ही कक्षा में स्मार्टफोन के उपयोग पर पूर्ण रोक की सिफारिश की गई है। कैमरा तथा रिकॉर्डिंग सुविधाओं के उपयोग को भी स्कूल के सामान्य क्षेत्रों और वाहनों में भी प्रतिबंधित करने की बात कही गई है। छात्रों को डिजिटल शिष्टाचार, ऑनलाइन जिम्मेदारी और स्मार्टफोन के नैतिक उपयोग पर शिक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। साथ ही उन्हें स्क्रीन टाइम, सोशल मीडिया की लत, ध्यान केंद्रित करने में कमी और साइबरबुलिंग जैसे विषयों पर भी परामर्श दिया जाना चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा कि नीति में यह प्रावधान हो कि स्मार्टफोन का उपयोग केवल सुरक्षा, समन्वय और आवश्यक संपर्क के लिए किया जा सके। न कि मनोरंजन या सोशल मीडिया के लिए। यह नीति स्कूल प्रबंधन, शिक्षकों, माता-पिता और विशेषज्ञों के सुझावों के आधार पर तैयार की जानी चाहिए। ताकि यह सभी की चिंताओं और आवश्यकताओं को संतुलित कर सके।
स्कूलों को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वे अपनी परिस्थितियों और जरूरतों के अनुसार नीतियों को लागू करें। ये नीतियां सीमित क्षेत्रों में सीमित उपयोग की अनुमति दे सकती हैं या फिर विशिष्ट समय व कार्यक्रमों के दौरान पूर्ण प्रतिबंध भी लागू कर सकती हैं।
इसके अतिरिक्त छात्रों द्वारा नियमों के उल्लंघन पर निष्पक्ष और पारदर्शी दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए। जिसमें स्मार्टफोन को कुछ समय के लिए जब्त करना या छात्र को विशेष दिनों में फोन लाने से रोकने जैसे कदम शामिल हो सकते हैं। हालांकि दंड अत्यधिक कठोर नहीं होने चाहिए। परंतु उन्हें लगातार और निष्पक्ष रूप से लागू किया जाना आवश्यक है।
अदालत ने कहा कि नीतियों की समय-समय पर समीक्षा करनी चाहिए। ताकि तकनीकी परिवर्तनों और नई चुनौतियों के अनुसार आवश्यक बदलाव किए जा सकें।