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राजधानी दिल्ली में हवा हुई और जहरीली, वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज

राजधानी दिल्ली की वायु गुणवत्ता गुरूवार को भी ‘गंभीर’ श्रेणी में बनी रही। केंद्रीय प्रदूषण...
राजधानी दिल्ली में हवा हुई और जहरीली, वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज

राजधानी दिल्ली की वायु गुणवत्ता गुरूवार को भी ‘गंभीर’ श्रेणी में बनी रही। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों में यह जानकारी दी गई।

मौसम वैज्ञानिकों ने अपेक्षाकृत तेज हवाओं के कारण वायु गुणवत्ता में सुधार होने का बुधवार को पूर्वानुमान जताया था, लेकिन दिल्ली का समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) सुबह नौ बजकर 10 मिनट पर 426 रहा।

एक्यूआई यदि 400 से अधिक हो, तो उसे ‘‘गंभीर’’ माना जाता है और यह स्वस्थ लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल सकता है और पहले से बीमार व्यक्तियों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
आनंद विहार और जहांगीरपुरी राजधानी में सबसे अधिक प्रदूषित स्थान रहे, जहां एक्यूआई 460 रहा।

जिन इलाकों में एक्यूआई ‘‘गंभीर’’ श्रेणी में रहा, उनमें अलीपुर (439), अशोक विहार (444), बवाना (456), बुराड़ी (443), मथुरा रोड (412), डीटीयू (436), द्वारका (408), आईटीओ (435), मुंडका (438), नरेला (447), नेहरू नगर (433), पटपड़गंज (441), रोहिणी (453), सोनिया विहार (444), विवेक विहार (444) और वजीरपुर (444) शामिल रहे।

सीपीसीबी के आंकड़ों के अनुसार, गाजियाबाद (391), नोएडा (388), ग्रेटर नोएडा (390), गुरुग्राम (391) और फरीदाबाद (347) में एक्यूआई ‘बहुत खराब’ श्रेणी में बना रहा।

शून्य और 50 के बीच एक्यूआई को ‘अच्छा’, 51 और 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 और 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 और 300 के बीच ‘खराब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत खराब’, और 401 और 500 के बीच ‘गंभीर’ श्रेणी में माना जाता है।

इससे एक दिन पहले पंजाब में पराली जलाए जाने के सर्वाधिक मामले सामने आए। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के अनुसार, पंजाब में बुधवार को पराली जलाने के 3,634 मामले सामने आए, जो इस साल अब तक के सबसे अधिक मामले हैं।

केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत आने वाली पूर्वानुमान एजेंसी ‘सफर’ ने कहा कि परिवहन स्तर की हवाओं के कारण दिल्ली के पीएम 2.5 प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी बढ़कर 32 प्रतिशत हो गई।

परिवहन-स्तर की हवाएं वातावरण की सबसे निचली दो परतों - क्षोभमंडल और समताप मंडल- में चलती हैं और खेतों में पराली जलाने से निकलने वाले धुएं को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लाती हैं।

पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5 फेफड़े को नुकसान पहुंचाने वाले महीन कण होते हैं, जो 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास के होते हैं और श्वसन मार्ग के जरिए फेफड़ों तक पहुंच कर रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं।

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