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वीआरएस चाहते हैं केजरीवाल के पूर्व प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार

द‌िल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पूर्व प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार ने भ्रष्टाचार के एक कथित मामले में सीबीआई की ओर से उनके खिलाफ आरोपपत्र दायर किए जाने के एक महीने बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) मांगी है। उन्होंने आरोप लगाया कि जांचकर्ताओं ने उन्हें बार-बार मुख्यमंत्री को फंसाने के लिए कहा।
वीआरएस चाहते हैं केजरीवाल के पूर्व प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार

दिल्ली के मुख्य सचिव को लिखे अपने पत्र में 1989 बैच के आईएएस अधिकारी ने कहा कि जांच प्रणाली, प्रक्रिया, प्रोटोकॉल, पारदर्शिता, शिष्टता के मामले में उन्होंने कभी भी इस तरह से उपेक्षा का सामना नहीं किया और ऐसा उन्होंने पहली बार अपने मामले में महसूस किया।

 

उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में चल रही सीबीआई जांच का हवाला देते हुए कुमार ने आरोप लगाया कि मुझे बार-बार कहा गया कि अगर मैं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इसमें फंसाता हूं तो मुझे छोड़ दिया जाएगा। यही वह वजह हो सकती है जिसके कारण जांच के दौरान जांच एजेंसी इतनी तह तक गई।

कुमार ने आरोप लगाया कि सीबीआई ने ना केवल लोगों को मुझे और मुख्यमंत्री को फंसाने के लिए कहा, बल्कि उन्होंने कई लोगों की पिटाई भी की जिनमें कुछ को स्थायी गंभीर चोटें आईं। पिछले साल जुलाई में गिरफ्तार किए जाने के वक्त अधिकारी मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव थे और बाद में उन्हें निलंबित कर दिया गया। उन्होंने दावा किया कि दिसंबर 2013 में केजरीवाल ने जब उन्हें अपने साथ काम करने के लिए आमंत्रित किया, तभी से उनकी मुश्किलें शुरू हो गईं।

घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला किया और कहा कि  आखिर प्रधानमंत्री हमसे इतने भयभीत क्यों हैं। केजरीवाल ने एक ट्वीट में आरोप लगाया कि  सीबीआई ने मेरे दफ्तर पर छापे मारे, मुझे फंसाने के लिए अधिकारियों पर दबाव डाला गया। सीबीआई ने सत्येंद्र जैन के कार्यालय पर छापा मारा। आखिर आप हमसे इतने भयभीत क्यों हैं मोदीजी?

सीबीआई ने पिछले महीने कुमार सहित आठ अन्य और इंडीवर सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ  कथित आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी एवं फर्जीवाड़े के मामले में भारतीय दंड संहिता तथा भ्रष्टाचार रोकथाम कानून के प्रावधानों के तहत आरोपपत्र दायर किया था। सीबीआई ने प्राथमिकी में आरोप लगाया था कि आरोपी व्यक्तियों ने आपराधिक साजिश की और 2007 एवं 2015 के बीच दिए गए ठेकों कारण दिल्ली सरकार को 12 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। प्राथमिकी में यह भी आरोप लगाया कि ठेके प्रदान करने के लिए अधिकारियों ने तीन करोड़ रुपये से अधिक का अनुचित लाभ भी लिया था। (एजेंसी)

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