उत्तराखंड में जारी हाई वोल्टेज ड्रामे के बीच शुक्रवार को कांग्रेस के लिए एक बड़ी राहत की खबर आई। उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने बागी कांग्रेस विधायकों की उस याचिका को सुनवाई के बाद खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने खुद को सदन की सदस्यता के अयोज्ञ ठहराए जाने के संबंध में विधानसभा अध्यक्ष के कारण बताओ नोटिस को चुनौती दी थी। सुनवाई के बाद प्रदेश की कांग्रेस सरकार की तरफ से पैरवी करने पहुंचे वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने बताया कि उच्च न्यायालय द्वारा इस याचिका को खारिज करने के आधार के बारे में जानकारी निर्णय की प्रति देखने के बाद मिलेगी। सिब्बल ने बताया, अगर विधानसभा अध्यक्ष सदस्यों को कोई नोटिस देते हैं तो उस पर निर्णय केवल वही ले सकते हैं। संविधान के अनुच्छेद 226 की सहायता आप इसमें नहीं ले सकते, क्योंकि जब तक अध्यक्ष अपना फैसला नहीं लेते तब तक यह मामला उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का नहीं है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में उच्चतम न्यायालय के पूर्व के कुछ निर्णय हैं, जिन्हें अदालत के सामने रख गया।
उच्च न्यायालय के इस निर्णय को 28 मार्च को राज्य विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने की चुनौती से पहले प्रदेश की हरीश रावत सरकार के लिए एक बडी राहत माना जा रहा है। आगामी सोमवार को होने वाले शक्तिपरीक्षण की चुनौती से निपटने के लिए कांग्रेस की सारी आशाएं अध्यक्ष कुंजवाल के नौ बागी विधायकों को अयोज्ञ घोषित करने के कदम पर टिकी हुई हैं जिससे सदन की प्रभावी क्षमता घटकर 61 रह जाए और बहुमत का आंकड़ा भी कम हो कर 31 पर आ जाए। 70 सदस्यीय उत्तराखंड विधानसभा में सत्ताधारी कांग्रेस के नौ विधायकों के बागी होकर भाजपा के साथ खडे हो जाने के बाद अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के अलावा उसके पास अपने 26 विधायक हैं, जबकि हरीश रावत सरकार में शामिल प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा पीडीएफ के 6 सदस्यों के समर्थन को मिलाकर उसके पक्ष में कुल 32 विधायक हैं।
दूसरी तरफ भाजपा के पास 28 विधायक हैं जिनमें से उसके घनसाली से विधायक भीमलाल आर्य की वफादारी पर फिलहाल यकीन नहीं किया जा सकता। कमल के निशान पर जीतने के बावजूद, आर्य अपनी पार्टी के विरोध में और रावत सरकार की तारीफ करने में कभी पीछे नहीं रहे जिसके चलते वह भाजपा से निलंबन झेल रहे हैं। भाजपा अब तक अपने पक्ष में अपने 27 और नौ बागी विधायकों सहित कुल 35 विधायकों के समर्थन का दावा कर रही थी। लेकिन उत्तराखंड उच्च न्यायालय के ताजा फैसले के मद्देनजर उसके संख्या बल के खेल में कांग्रेस से पीछे रहने की संभावनाएं बनती नजर आ रही हैं।