अदालत ने इसके समाजवादी पार्टी सरकार को इसलिए फटकार भी लगाई कि उसने ईमानदारी और पात्रता के बारे में उचित जांच किए बगैर ही यादव को नियुक्त कर अपने संवैधानिक कर्तव्यों का उल्लंघन किया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पीठ ने यादव की यूपीपीएससी अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को दरकिनार करते हुए कहा कि यह मनमानी, अवैध, संविधान के अनुच्छेद 316 के अधिकार से बाहर है जो सोच विचार के बगैर, अन्य उम्मीदवारों की योग्यता और उपलब्धता को नजरंदाज करते हुए की गई थी। यादव ने अपना पदभार अप्रैल 2013 में संभाला था और उनका चयन उन 83 उम्मीदवारों में से किया गया था जिन्होंने इस पद के लिए राज्य सरकार के समक्ष अपने बायोडाटा जमा किए थे।
हाईकोर्ट ने यह आदेश अधिवक्ता सतीश कुमार सिंह और कई अन्य की ओर से इस वर्ष के शुरू में दायर याचिकाओं का निस्तारण करते हुए दिया है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि यादव की नियुक्ति इन तथ्यों को नजरंदाज करते हुए की गई कि वह अपने गृह जिला आगरा में भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और गुंडा कानून के तहत दर्ज मामलों में नामजद हैं। मिली जानकारी के अनुसार, हाईकोर्ट ने अनिल यादव का चरित्र सत्यापन करने वाले डीएम के खिलाफ भी जांच के आदेश दिए हैं।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के तौर पर अनिल यादव का कार्यकाल काफ़ी विवादित रहा है। उनके कार्यकाल में यूपी पीसीएस का पेपर लीक हुआ था और भर्तियों में भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे हैं।
- एजेंसी इनपुट