उपचुनाव में मुख्य चुनाव की तुलना में कम वोट पड़ते है, क्योंकि मतदाता उसे लेकर ज्यादा गंभीर नहीं होता है। मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में जिस बड़ी संख्या में वोट पड़े उससे अलग ही तस्वीर सामने आती है। उपचुनाव में वर्ष 2018 के विधान सभा चुनावों के करीब बराबर ही वोट पड़े, जबकि चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों को यह आशंका थी कि कोरोना के कारण मतदान काफी कम हो सकता है। मध्य प्रदेश के मतदाताओं ने सारी आशंकाओं को गलत साबित कर दिया।
उपचुनाव में जिन 28 सीटों पर मतदान हुआ उनमें करीब 70 फीसदी मतदान हुआ है। इन्हीं सीटों पर वर्ष 2018 में करीब 71 फीसदी मतदान हुआ था। इस तरह से मतदाताओं ने कोरोना के भय को दूर रखते हुए बढ़-चढ़कर वोट किया। मालवा अंचल में भी पिछले अवसरों की भांति 80 फीसदी से ऊपर मतदान हुआ। इतने मतदान की उम्मीद किसी को भी नहीं थी इसलिए दोनों ही पार्टियों ने अपने समर्पित वोटरों को बूथ तक लाने के विशेष प्रबंध भी किये थे। यही वजह है कि सुबह के कुछ घंटों में मतदान काफी तेजी से हुआ, उसके बाद उसकी गति धीरे-धीरे कम होती गई। वोटरों के बड़ी संख्या में बाहर आने को दोनों ही पार्टियां अपने लिए फायदा मान रही है।
कांग्रेस प्रवक्ता भूपेन्द्र गुप्ता का कहना है कि वोटरों का भाजपा के प्रति आक्रोश है जो कोरोना संकट के समय में भी वे लोग मतदान करने के लिए आगे आये। जनता उन गद्दारों को सबक सिखाना चाहती थी जिन्होंने लोकतंत्र की हत्या कर नोटों की सरकार बनाई। दूसरी ओर गृह मंत्री और भाजपा नेता नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस नेताओं के बयानों से स्पष्ट है कि वे हार मान चुके है। जब विपक्षी ईवीएम पर अंगुली उठाये और प्रशासन के दुरुपयोग की बात करे तो समझ लेना चाहिए कि वे हार मान चुके है और उसकी वजह तलाश रहे है।
राजनीतिक दल कुछ भी कहे किन्तु जब भी मतदान ज्यादा होता है तो उसे सत्ता के खिलाफ माना जाता है। वर्ष 2018 में भी जो मतदान हुआ उसके बाद कांग्रेस सत्ता में आई थी। इस बार भी राजनीतिक विशलेषक इसको कांग्रेस के पक्ष में जाने की बात कह रहे है। उनका मानना है कि कांग्रेस ने गद्दारी के मुद्दे को अच्छी तरह से स्थापित कर दिया था। उसको लेकर लोगों में काफी नाराजगी भी थी। भाजपा को इसकी भनक पहले से ही थी । इस नाराजगी को दूर करने के लिए ही शिवराज और सिंधिया ने हर विधान सभा का कम से कम तीन बार दौरा किया। इन दोनों नेताओं की सभाएं कि कमलनाथ की तुलना में तीन गुना अधिक थी। चुनाव के परिणाम तो दस नवंबर को आयेंगे किन्तु मतदाताओं ने जिस तरह निडरता दिखाकर वोट किया है उससे यह लगता है कि उन्होंने अपनी नाराजगी निकाली है।
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    