सरकारें अपनी जिद पर अड़ी रहती हैं। फैसलों में परिवर्तन को उसकी हार के रूप में देखा जाता है। खासकर तब जब मांग विपक्ष की हो। झारखंड की हेमंत सरकार ने भी कई मौकों पर यू टर्न लिया। विपक्ष की मांग भी रही मगर हेमंत के यू टर्न को उनकी उदारवादी समझ, उदारवादी रवैये के रूप में देखा गया। ताजा मामला छठ के मौके पर नदी, तालाबों के किनारे पूजा और दुर्गा पूजा के मौके पर पंडालों में ज्यादा श्रद्धालुओं के प्रवेश और लाउडस्पीकर बजाने का रहा। मौके और भी आये हैं जब हेमंत सरकार ने अपने फैसले में परिवर्तन किया है। कोरोना महामारी के कारण प्रशासनिक नजरिये से प्रतिबंध का सरकार ने आदेश जारी किया। जब लोगों की मांग तेज होने लगी तो जन भावना का सम्मान करते हुए मुख्यमंत्री ने समीक्षा की और प्रावधानों में ढील का फरमान जारी हुआ। हालांकि ढील के साथ सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, सेनिटाइजेशन की शर्तें बरकरार रहीं।
छठ को लेकर तो सोशल मीडिया ने हंगामा से खड़ा कर दिया था। बाद में विपक्षी भाजपा के साथ सत्ताधारी जेएमएम और कांग्रेस ने भी छठ में छूट की वकालत की, आपत्ति की, आदेश में संशोधन की मांग की। दुर्गा पूजा के साथ ही छठ भी यहां भव्य तरीके से मनाया जाता है। छठ पर भाजपा का आक्रमण ज्यादा ही तीखा था। छूट की मांग को लेकर भाजपा के रांची के सांसद संजय सेठ व कई स्थानीय भाजपा विधायकों ने तालाबों में उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। कोरोना को देखते हुए दुर्गा पूजा में पंडालों को सीमाओं में बांधा जा सकता है मगर छह में पूजा की पवित्रता के साथ एक ही समय सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अर्घ्य देने वालों की जुटान के बीच सोशल डिस्टेंसिंग का पालन असंभव जैसा है। राहत की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी कह दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं, मगर भाजपा ढील चाहती है। ढील को भाजपा अपने विजय के रूप में प्रचाारित करती रही। उसके प्रदेश अध्यक्ष सहित अन्य प्रमुख नेताओं के बयान भी आये। सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इसका काउंटर भी किया। पार्टी के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि छठ घाटों पर पूजा को लेकर भाजपा का विरोध एक विशेष वर्ग के वोट के लिए है। ऐसा नहीं करना चाहिए। सरकार के निर्देशों पर धर्म की राजनीति ठीक नहीं। भाजपा शासित राज्यों में ही सार्वजनिक स्थलों पर छठ पूजा पर रोक है। उन्होंने चेतावनी भी दे डाली कि छठ के दौरान संक्रमण बढ़ा तो भाजपा नेताओं पर मुकदमा दर्ज होगा।
इसी तरह लैंड म्यूटेशन बिल पर भी हेमंत सरकार ने यू टर्न लिया था। उस समय विपक्षी भाजपा के साथ हेमंत सरकार की सहयोगी कांग्रेस ने भी इसका विरोध किया था। उस बिल में जमीन संबंधी मामले के निष्पादन के दौरान किये गये काम के खिलाफ किसी अधिकारी पर अदालत में किसी तरह का आपराधिक या सिविल मुकदमा नहीं किया जा सकेगा। ऐसा प्रावधान किया गया था। मुख्यमंत्री ने इसकी समीक्षा की, अड़चन को समझा और विधानसभा में विधेयक पेश नहीं हुआ। इसके पहले सरकार ने प्रदेश में बालू ढुलाई पर फैसले में परिवर्तन किया। सरकार ने 24 जून को एक आदेश जारी कर भंडारण वाले स्थल से सिर्फ टैक्टर से बालू की ढुलाई का आदेश जारी किया था। हाइवा, डंपर जैसे बड़े वाहनों से नहीं। बालू की कालाबाजारी, कीमत में बेतहाशा वृद्धि और लोगों की परेशानी को देखते हुए ठीक एक माह बाद इस आदेश को रद करते हुए दूसरे बड़े वाहनों से भी बालू ढुलाई की अनुमति दी गई। इस तरह के फैसलों से जाहिर होता है कि हेमंत सोरेन का रवैया अनेक मामलों में उदारवादी है। जनता की समस्या को देखते हुए यू टर्न लेने में हर्ज नहीं समझते।