भारत विविध कलाओं से संपन्न देश है। हमारी सांस्कृतिक विरासत में कलाओं ने जितने सुंदर प्रयोग किए, उतने कहीं नहीं। हथकरघा वस्त्र और बुनकर हमारी सांस्कृतिक संपन्नता के साक्षी हैं। इस धरती का कोना-कोना कितना सुंदर और विविधता से भरा रहा है अगर आप ये जानना चाहते हैं, तो हैंडलूम के बारे में जानिए। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कई राज्यों में बंटा ये देश अलग-अलग कलाओं से बंधा और सजा नजर आएगा। तमिलनाडु का कांजीवरम हो या आंध्रप्रदेश की कलमकारी, गुजरात की बांधनी से लेकर महाराष्ट्र की पैठनी तक आपको अपने मोहपाश में समेट लेंगे। बनारसी, इकत, तांत, संबलपुरी इन साड़ियों पर आप दिल हार बैठेंगे। इन सबके बीच मध्यप्रदेश की चंदेरी और महेश्वरी साड़ियां नहीं पहनी तो क्या पहना। लेकिन आज इस उद्योग को प्रमोट और सपोर्ट करने की बहुत जरूरत है, जिससे आने वाले दशकों में हमें अपनी अगली पीढ़ी को ये न बताना पड़े कि आखिर हथकरघा क्या है। वे बुनकरों के हाथों के जादू से अनजान न रह सकें।
स्वदेशी से आत्म-निर्भर भारत तक का सफर
हथकरघा उद्योग के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए, समाजिक और आर्थिक योगदान को रेखांखित करने के लिए, लघु और मध्यम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार साल 2015 से हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाती है। हथकरघा दिवस मनाने के लिए 7 अगस्त का ही दिन इसलिए चुना गया क्योंकि वर्ष 1905 में इसी दिन घरेलू उत्पादों और उत्पादन इकाइयों को नया जीवन प्रदान करने के लिए देश में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ था। आज भी हम अपनी कलाओं को सहेजने, अपने बुनकरों, शिल्पकारों और कलाकारों की प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने के लिए आत्म-निर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल की बात करते हैं तो हमें अपने हथकरघा उद्योग और बुनकरों को सबसे पहले रखना चाहिए क्योंकि ये वो लोग हैं, जो हमारी विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी जिंदा रखे हुए हैं। ये वो लोग हैं, जिनके अंदर हमारा असली भारत बसता है।
हमारे नजरिए में बदलाव जरूरी
2014 में केंद्र में जब मोदी सरकार आई तो बुनकरों की समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया गया और राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का निर्णय किया गया। प्रधानमंत्री ने 2015 में हथकरघा दिवस की शुरुआत करते हुए कहा था कि सभी परिवार, घर में कम से कम एक खादी और एक हथकरघा का उत्पाद जरूर रखें। हमारे अंदर भी हथकरघा को लेकर नजरिया बदलाव आना चाहिए। प्रमोशन के साथ-साथ हमारे बुनकरों को सपोर्ट की जरूरत है। जमीनी स्तर पर उनकी आय बढ़ाने और क्राफ्ट बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा काम किया जाना चाहिए। युवाओं की रुचि इस उद्योग में खत्म हो गई है, उनमें कोर्सेस के जरिए, नए फैशन सेंस के माध्यम से हथकरघा के प्रति जुड़ाव बढ़ाने की कोशिश की जानी चाहिए नहीं तो आने वाले 15-20 सालों में हमारे बुनकर खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएंगे।
केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर हथकरघा को प्रमोट करने के लिए कार्य कर रही हैं लेकिन कुछ और कदम उठाने की जरूरत है। जैसे-
1-सरकार सबसे पहले बुनकरों और उनकी कला का संरक्षण करे। बुनकरों की तकनीक को बचाकर रखने के लिए उनकी फाइलिंग की जाए, जिससे आने वाले समय में उस क्षेत्र में हथकरघे के जानकारों की कमी न हो।
2- देखा जाता है कि हैंडलूम का क्रेडिट कई बार पावरलूम को चला जाता है। सरकार हैंडलूम और पावरलूम को अलग-अलग करे और इसके लिए एक समिति बनाई जा सकती है। हैंडलूम प्रोडक्ट्स को जीएसटी फ्री किया जाए।
3- बुनकरों को उनकी मेहनत का सही दाम दिलाने लिए एक गेटवे तैयार किया जाए। बुनकरों को टेक्निकल सपोर्ट मुहैया कराया जाए।
4- हमारा देश युवाओं का देश है, यहां बड़ी संख्या में युवा निवास करते हैं। दो प्रयास किए जा सकते हैं। पहला- हमारी फैशन इंडस्ट्री बहुत बड़ी है। इतने फैशन शो होते हैं। हथकरघा पर आधारित फैशन शो कराए जाएं। जिससे अलग-अलग क्षेत्रों के हथकरघा को प्रमोट किया जाए। बड़े-बड़े सेलिब्रिटी इससे जुड़ें। दूसरा- युवाओं की पसंद के हिसाब से हथकरघा उत्पाद बनाए जाएं, जिससे वे बड़ी से बड़ी संख्या में इसे खरीद सकें। इसके अलावा कोर्स में भी हथकरघा को स्थान दिया जाए। इससे ब्रांडिंग और सपोर्ट दोनों बुनकरों को मिलेगा।
मध्यप्रदेश के हथकरघा वस्त्रों का गौरवपूर्ण इतिहास है। ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोकल फॉर लोकल अभियान का भी यह महत्वपूर्ण अंग भी है। मध्यप्रदेश की चंदेरी, महेश्वर की बुनाई कला विश्व प्रसिद्ध है। सौंसर, सारंगपुर, वारासिवनी के बुनकरों की भी देशभर में प्रतिष्ठा है। मध्यप्रदेश शासन बुनकरों के उत्थान के लिए कृत संकल्पित है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर लोगों से अपील की थी कि वे हथकरघा वस्त्रों को अधिक से अधिक अपनाएं। इससे हमारी इस प्राचीन कला को बढ़ावा मिलेगा। मध्यप्रदेश में हथकरघा को बढ़ावा देने के लिए सरकारी एम्पोरियम है, जहां बुनकरों की जादूगरी से लोग न सिर्फ रू-ब-रू होते हैं बल्कि खरीदारी भी करते हैं। समय-समय पर यहां महोत्सव का भी आयोजन होता है, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग हैंडलूम से जुड़ सकें।
इसके साथ ही इस साल 29 अप्रैल को "वोकल फॉर लोकल" की पहल पर मध्यप्रदेश के हथकरघा शिल्पियों की कला को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का अभिनव नवाचार कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग द्वारा किया गया। मुम्बई में ऐसे फैशन-शो किया गया, जहां मध्यप्रदेश की समृद्ध और विविध हाथकरघा धरोहर को प्रदर्शित करने का मंच मिला। चंदेरी और महेश्वरी वस्त्र, समकालीन खादी डिजाइंस, पारंपरिक सिल्क साड़ियां और बाघ, बाटिक तथा नांदना की देशज प्रिंट्स वाले मनमोहक परिधान के साथ-साथ होम फर्निशिंग की बड़ी रेंज इस फैशन शो के दौरान दिखाई गई। इस फैशन-शो से मध्यप्रदेश की बुनाई की पारंपरिक धरोहर सामने आई।
मध्यप्रदेश में हथकरघा उद्योग के लिए अपार संभावनाएं हैं। प्रदेश सरकार की नीतियां बुनकरों के लिए सहायक हैं। कुछ नवाचारों और सपोर्ट के जरिए एमपी की कला और यहां के बुनकरों के सितारे बुलंदी पर होंगे।
(पूनम कौर दक्षिण भारतीय फिल्मों की अभिनेत्री और मॉडल हैं।)