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उत्तर प्रदेश में स्कूली पोशाक पर करोडों की लूट-खसोट

उत्तर प्रदेश में शिक्षा से जुड़ा एक और घोटाला सामने आया है। भ्रष्ट तंत्र ने स्कूली बच्चों की पोशाक का हक भी छीन लिया है।
उत्तर प्रदेश में स्कूली पोशाक पर करोडों की लूट-खसोट

कोबरापोस्ट की एक साल तक चली तहकीकात में पता चला है कि प्रदेश के स्कूली बच्चों की पोशाकों के लिए सरकार द्वारा आवंटित कई सौ करोड़ रुपये जिला शिक्षा अधिकारियों, प्रखंड शिक्षा अधिकारियों, ग्राम एवं नगर पंचायत अधिकारियों ने ही हजम कर लिए हैं। इनमें कुछ स्कूलों के प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों को भी उनका हिस्सा दिया गया है।

प्रदेश के छह जिलों के करीब एक दर्जन प्रखंडों में चली जांच से पता चला है कि जिला शिक्षा अधिकारियों से लेकर ग्राम नगर पंचायतों तक के अधिकारियों और कई अन्य सरकारी मुलाजिमों की मिलीभगत से करोडों रुपये का घोटाला हुआ है। गौतम बुद्धनगर, मेरठ, हापुड़, बागपत, गाजियाबाद और कानपुर में कोबरापोस्ट के छिपे कैमरों के समक्ष स्कूली पोशाक सप्लाई करने वाले एक कारोबारी और कई अन्य अधिकारियों की बातचीत से इस घोटाले का सच उजागर हुआ है।

भारतीय संविधान के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 14 साल तक के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया है। बच्चों को निःशुल्क पोशाकें बांटने का मुख्य मकसद उन्हें अनिवार्य उम्र तक स्कूलों से जोड़े रखना और सभी बच्चों की स्थिति में सुधार लाना है। लेकिन प्रदेश के अधिकारी इस बात से बेपरवाह हैं कि संविधान क्या कहता है और कई अधिकारी निःशुल्क पोशाक वितरण व्यवस्‍था को भी अपने हित में भुनाने और आमदनी का जरिया बनाने में संलिप्त हैं।

हापुड़ जिले के धौलाना में जब कोबरापोस्ट के संवाददाता ने प्रखंड शिक्षा अधिकारी एम. के. पटेल से पहली मुलाकात की तो उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘ये बताओ आप… टीचरों की डिमांड तो ज्यादा है… कैसे होगा? 50-60 तो वही मांग रहे हैं.. पिछले साल भी (सप्लाई) किया था उसने  वो 100 में दे रहा था।’ पटेल को पोशाक की गुणवत्ता की जरा भी चिंता नहीं थी। इस बातचीत के दौरान पिछले साल की लेनदेन का भी जिक्र हुआ। एक बच्चे की पोशाक 120 रुपये में सप्लाई की गई जबकि प्रत्येक पोशाक के लिए 80 रुपये का कमीशन दिया गया था। पटेल इस संवाददाता को इसी कीमत पर पोशाक देने की बात कर रहे थे।

इसके बाद संवाददाता की मुलाकात गौतम बुद्धनगर के जेवर प्रखंड की प्रखंड शिक्षा अधिकारी ममता भारती से हुई। भारती ने उनसे कहा कि पिछले साल एक पोशाक 150 रुपये में खरीदी गई थी। संवाददाता ने भारती के साथ 140 रुपये का सौदा तय किया। भारती ने इसमें प्रत्येक पोशाक के लिए 50 रुपये का कमीशन मांगा। उन्होंने कमीशन की पेशगी राशि भी मांगी और कहा कि पोशाक की क्वालिटी अच्छी होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि दो या तीन कंपनियों से कारोबार की बातचीत कर लें ताकि आगे किसी तरह की जांच के दौरान कोई सवाल नहीं उठाया जा सके।

अग्रिम राशि के बारे में भारती कहती हैं, ‘आप जितना भी टोटल हो रहा है… 75 परसेंट में ही करवा दो बाकी 25 परसेंट बाद में आ जाएगा… उसमें 2-3 फर्म लगानी होगी… बेसिकली 31 के आसपास का है… वो 10-10 लाख का वर्क इस तरह डिवाइड करना है हमें… 10-10 लाख का काम तीनों फर्म को चला जाए।’

पड़ताल के दौरान संवाददाता ने बागपत के बडौत प्रखंड में प्रखंड शिक्षा अधिकारी एम. सी. शर्मा से भी मुलाकात की। शर्मा ने मुलाकात के शुरुआती दौर में साफ कहा कि यहां प्रत्येक पोशाक के लिए 60 रुपये का कमीशन निर्धारित है। रिपोर्टर ने जब उनसे अपनी मुलाकात का उद‍्देश्य बताया तो शर्मा का कहना था, ‘यहां एक चीज मैं बता दूं आपको.. मेरे यहां पूरी पारदर्शिता रहती है.. नीचे किसी को नहीं बताता हूं… लेकिन जो उनको मिलना है… वो निश्चित है… बिल्कुल नीचे से ऊपर… टॉप टु बॉटम… हमारा पहले कर देंगे तय टोकन मनी के रूप में… ‌िफर अपना नीचे करते हुए चले जाइए.. फिर जो होगा हिसाब… आपके और हमारे बीच में हो जाएगा।’

शर्मा आगे बताने लगे, ‘देखिए मैं बताऊं… हेडमास्टर को अपने आप देने हैं… उसको 30 रुपये देने हैं… 10 देने हैं 5 एनबीआरसी को और 5 रुपये बीआरसी को… शेष हमको करना है… 80 रुपये मेरे… लेकिन वो मेरे और आपके बीच की बातें हैं।’

इस संवाददाता ने ऐसे न जाने कितने अधिकारियों और शिक्षकों से पोशाक सप्लाई करने का सौदा करने पर बातचीत की। हालांकि सभी अधिकारी भ्रष्ट नहीं निकले लेकिन ज्यादातर अधिकारियों को अपने कमीशन की ही चिंता थी और उन्हें बच्चों की पोशाक की क्वालिटी से कोई लेना-देना नहीं था।

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