व्यवस्थित और अनुशासित आंदोलन ही नहीं बल्कि पंजाब ये बड़े किसान नेता अपने गांव राजेवाल में एक ऐसा स्कूल भी संचालित करते हैं जहां बच्चे व्यावहारिक रुप से इमानदारी का सबक भी सीखते हैं। भारतीय किसान यूनियन(राजेवाल) के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल के लुधियाना के निकट समराला के गांव राजेवाल में संभवत पंजाब का ही नहीं बल्कि देश का एक ऐसा पहला स्कूल चलाते हैं जहां बच्चों को पाठ्यक्रम में ईमानदारी का पाठ पढ़ाया ही नहीं जाता बल्कि बच्चे इसे रोजाना जिंदगी में भी उतारते हैं।
राजेवाल गांव में स्थित इस स्कूल में एक ‘ऑनेस्टी शॉप’ है जिसमें स्टेशनरी का हर सामान सस्ती दरों पर मिलता है और वह भी एक महीने की उधार पर है। खास बात यह है कि इस शॉप में कोई सेल्समैन नहीं है। सेल्समैन की भूमिका में दो डिब्बे रखे हैं, जिन पर काेई ताला नहीं हैं। कोई पहरेदार नहीं हैं। एक डिब्बा पैसे रखने के लिए और दूसरा उधार लेने वाले बच्चों की नाम की पर्ची डालने के लिए। जिन बच्चों को कॉपी, किताब, पेंसिल, पेन और रजिस्टर आदि लेना होता है वह खुद ही आकर ले लेता है पैसे डिब्बे में डाल देता। यदि किसी बच्चे के पास पैसे नहीं हैं तो एक महीने के उधार पर स्टेशनरी लेने के लिए वह अपने नाम, क्लास, रोल नंबर और कितने रुपए की स्टेशनरी ली है इसकी यह एक पर्ची में लिखकर दूसरे डिब्बे में रख देता है। जब उसके पास पैसे होते हैं वह पैसे रखकर अपनी पर्ची निकाल लेता है।
स्कूल की प्रिंसिपल अल्पना महाजन बताती हैं, आठ साल हो गए हैं लेकिन आज तक एक भी पैसे का हेरफेर नहीं हुआ है। उन्होंने बताया कि यहां जीवन में नैतिक मूल्य बच्चे जीवन में कैसे उतारेंगे, इसकी परीक्षा ली जाती है। मसलन, ईमानदारी का जीवन में क्या महत्व है और बच्चों में ईमानदारी है या नहीं? इसी को परखने के लिए यह शॉप खोली गई है।
जैसा स्कूल का नाम, वैसा ही काम:
इस स्कूल का नाम उस शख्सियत के नाम पर है, जिसने जो कहा, उस रास्ते पर चलकर दिखाया? जी, हां ये शख्सियत हैं भगत पूर्ण सिंह, जिन्होंने अपना तमाम जीवन बेसहारों की सेवा में गुजारा। उनके अपने पैतृक गांव के वासियों ने उनकी इसी फिलाॅसफी को अपने स्कूल बाबा पूर्ण सिंह मेमोरियल स्कूल के जरिए जिंदा रखा हुआ है। कहानी भी रोचक है- तब भगत पूर्ण सिंह जिंदा थे। सभी की राय थी कि उनके नाम पर स्कूल का नाम रखा जाए। मेरी ड्यूटी लगाई गई। भगत जी ने मना कर दिया। उन्होंने कहा, मेरे नाम पर शिक्षा की दुकान नहीं चलेगी। मैंने कहा, नहीं हम इसे दुकान नहीं बनाएंगे तो वह मान गए।
स्कूल के सरंक्षक किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल बताते हैं कि पड़ोस के गांव में पढ़ने के लिए जाने वाली लड़की के साथ जब छेड़छाड़ मामला हुआ तो गांव वालों ने अपनी लड़कियों काे स्कूल भेजना बंद कर दिया। यह बात मुझे काफी बुरी लगी। इसके बाद गांव ने ही फैसला किया कि वे अपने दम पर स्कूल बनाएंगे। 7 एकड़ जमीन पर लोगों से पैसे जुटाकर, कारसेवा करते हुए यह स्कूल बनाया।