आपको सुनकर के आश्चर्य भी होगा और हैरानी भी कि क्या यह भी संभव है पर जिस तरह से अब नए नए प्रयोग हो रहे हैं बीएचयू में एक नए तरीके का प्रयोग शुरु हुआ है इनको सुन कर के आप हैरान हो जाएंगे गर्भवती महिलाओं के गर्भ में ही अब उन्हें पुराने संस्कार,आचरण ,मन्त्र ,उचारण की विद्या से महिला के अंदर पल रहे गर्भ को ज्ञान दिया जाएगा। ये बात आप को महाभारत की याद दिला सकता है । हमने यह कहानी कुछ महाभारत में सुनी थी अभिमन्यु को किस तरह से गर्भ के अंदर ही चक्रव्यूह तोड़ने का पूरा ज्ञान मिल गया ।अर्जुन अपनी गर्भवती पत्नी सुभद्रा को युद्ध में इस्तेमाल होने वाले व्यूह रचनाओं के बारे में बता रहे थे। उस वक्त अभिमन्यु सुभद्रा की गर्भ में पल रहे थे । जब अर्जुन ने सुभद्रा को चक्रव्यूह के भेदने की रणनीति सुनाना शुरु किया तो सुभद्रा बड़े ध्यान से इसे सुनने लगी । गर्भ में पल रहे अभिमन्यु ने भी इस रणनीति को सुनना शुरु किया । सुभद्रा ने चक्रव्यूह के अंदर जाने की कथा तो ध्यान से सुनी लेकिन चक्रव्यूह से बाहर निकलने की रणनीति जब अर्जुन सुना रहे थे तब उन्हें नींद आ गई । अर्जुन ने सुभद्रा को सोए देखा तो उन्होंने चक्रव्यूह से बाहर निकलने की रणनीति बतानी बंद कर दी और चले गए, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि ऐसे ही गर्भ संस्कार की अनोखी शुरुआत किया है काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विज्ञान विभाग ने ।
अब यहाँ पेट में पलने वाले शिशु को गर्भ संस्कार थेरेपी देने की शुरुआत की गयी है । जिसके माध्यम से गर्भ में आये शिशु को जन्म से पहले ही अच्छे संस्कार दिया जा रहा हैं, इन्ही प्रमाणों को देखते हुए और वेदों पुराणों और शास्त्रों में वर्णित सुसन्तति के लिए ये पहल की गई है ।
इसी बात पर आधारित पूरा संस्कार थेरेपी है इसको लेकर के पूरे वैज्ञानिक दृष्टि से इसे सही और सटीक मानते हुए इस थेरेपी को शुरुआत कर दी गई है परंपरागत भारतीय चिकित्सा पद्धति से ये प्रयास है।
आधुनिक चिकित्सा पदत्ति बहुत से मायने में भले ही अच्छी हो लेकिन परंपरागत भारतीय चिकित्सा पद्धति आज भी काफ़ी उन्नत है और अपनी पुरानी परम्पराओं को फिर अस्तित्व में ला रही है, क्योंकि यही बता सकती है की गर्भ में पलने वाले शिशु को संस्कार कैसे दिया जाए और अच्छा इंसान बनाया जाए, बीएचयू के आयुर्वेद विभाग की इस अनोखी थेरेपी से शिशु गर्भ में ही संस्कार सीख रहे हैं । इस अनोखी थेरेपी के अंतर्गत यहां आने वाली गर्भवती महिलाओं को आध्यात्मिक संगीत थेरेपी, वेद थेरेपी, ध्यान थेरेपी और पूजापाठ थेरेपी के जरिये गर्भ में पलने वाले शिशु का पालन पोषण किया जाएगा ।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुंदर लाल अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट एस.के.माथुर ने बताया कि आयुर्वेद विज्ञान में ये क्रिया बहुत पहले से चली आ रही है, लेकिन आधुनिक अस्पतालों ने इसे बन्द कर दिया । अब इसे एक बार फिर से हम शुरू कर रहे हैं । मेडिकल उपचार में गर्भवती महिलाओं के लिए ये जरूरी होता है । विज्ञान के अनुसार गर्भ में पल रहा बच्चा 3 महीने बाद हलचल करना शुरू कर देता है।
आयुर्वेद के प्रसूति तंत्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ सुनीता सुमन बताती हैं कि इन थेरेपियों के अंतर्गत यहाँ आने वाली महिलाओं को वेद की किताबें पढ़ने के लिए दी जा रही हैं, इसके साथ ही उन्हें पूजापाठ करने की सलाह दी जा रही है । इसके अलावा एडमिट महिलाओं के लिए भजन संगीत सुनाया जाएगा । गर्भवती महिलाओं को महापुरुषों के आचरण के विषय में किताबें पढ़ कर सुनाई जाती है । ऐसे में माँ को आचार–विचार, स्वभाव, खान-पान, आचरण, धार्मिक ग्रंथो का पठन-पाठन, महापुरूषो की कथाओं के साथ-साथ मंत्रोच्चारण, योग–निद्रा, योगा का भी अभ्यास कराया जाता है । ऐसे सभी संस्कार शिशु माँ से ही ग्रहण करते हैं । डॉक्टरों का कहना है कि पेट में पलने वाले शिशु जो माहौल पाते हैं, उसी आचरण के अनुरूप जन्म लेते हैं । ऐसे में गर्भवती महिलाओं को ये माहौल देना जन्म लेने वाले बच्चों के लिए वरदान साबित होगा।
गैलोनिक स्किनबायो फीड बैक मशीन से मरीज के हाव–भाव के बारे में पता चलता है, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे के हाव-भाव के बारे में भी पता चल जाता है, सोनोग्राफिक, कार्डिओ–टोकोग्राफिक मशीन से धड़कन का पता चलता है, हाव–भाव डरा हुआ है, या बच्चा खुश है, इन सभी चीजों के साथ बच्चो का पांच साल तक फालो किया जायेगा, जिससे उनके मानसिक और शारीरिक विकास का अध्ययन किया जा सके ।
आयुर्वेद विभाग के इस गर्भ संस्कार थेरेपी की शुरुआत यहाँ आने वाली महिलाओं को सुकून दे रहा है।
इस मंत्रोच्चारण के बीच अल्ट्रासाउंड, भर्ती होने के दौरान पूजापाठ और वेद की किताबें अब ये महिलाएं अपने शिशु के लिए ध्यानपूर्वक धारण कर रही हैं । उनका कहना है कि इस थेरेपी के जरिये आने वाले शिशु को एक अच्छा संस्कार मिलेगा।
वैसे तो आयुर्वेद में गर्भ थेरेपी कोई नई बात नही है । महाभारत के अभिमन्यु इस बात का प्रमाण है कि गर्भ में ही शिशु सीखना शुरू कर देते हैं, लेकिन आधुनिकता ने इस थेरेपी को काफी दूर कर दिया । एक बार फिर से बीएचयू द्वारा शुरू किया गया ये थेरेपी आने वाले समाज के लिए उदाहरण बन सकता है क्योंकि आज के इस काल में बच्चों को अच्छा संस्कार देना, नैतिक पतन को रोकना और महापुरुषों जैसे आचरण का बीज रोपने के साथ एक स्वास्थ्य समाज के निर्माण में सहायक होगा। ऐसा संस्कार थरेपी का मन्त्र है ।