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जिंदगी की जंग हार गये गुमनामी में रह रहे अंतर्राष्‍ट्रीय हॉकी खिलाड़ी गोपाल भेंगरा, पत्‍थर तोड़ चलाते थे घर

टोक्‍यो ओलिंपिक में हिस्‍सा लेने के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम की सदस्‍य निक्‍की प्रधान और सलीमा...
जिंदगी की जंग हार गये गुमनामी में रह रहे अंतर्राष्‍ट्रीय हॉकी खिलाड़ी गोपाल भेंगरा, पत्‍थर तोड़ चलाते थे घर

टोक्‍यो ओलिंपिक में हिस्‍सा लेने के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम की सदस्‍य निक्‍की प्रधान और सलीमा टेटे जब वापस अपने देश को लौट रही थी। इस प्रसन्‍नता के साथ की राज्‍य सरकार ने दोनों के लिए पचास-पचास लाख रुपये और कच्‍चे घर को पक्‍का बनाने की घोषणा की है। उसी समय अंतर्राष्‍ट्रीय हॉकी के खिलाड़ी रहे गोपाल भेंगरा सुविधाओं के अभाव में अस्‍पताल में अंतिम सांसे ले रहे थे। गुमनामी का जीवन जी रहे 73 साल के भेंगरा ने सोमवार को रांची के गुरुनानक अस्‍पताल में अंतिम सांस ली। सरकार या हॉकी संघ उनकी सुध लेने नहीं आया। एक स्‍वयंसेवी संगठन की गायत्री सिंह ने बिल अदायगी में मदद की। एकाद राजनेताओं ने बिल कम कराने में मदद की।

ये वही गोपाल भेंगरा थे जो जीवन यापन के लिए खूंटी जिला के तोरपा (तोरपा में ही निक्‍की प्रधान का भी घर ) में अपने ही गांव के करीब पत्‍थर तोड़ा करते थे। दरअसल 1978 में सेना से अवकाश गृहण के बाद सुरक्षा गार्ड की नौकरी के लिए आवेदन किया मगर चयन नहीं हुआ। तब गांव में ही पत्‍थर तोड़ किसी तरह जीवन यापन करने लगे। अपने समय में क्रिकेट के बादशाह रहे सुनील गावस्‍कर को इसकी जानकारी मिली तो कुछ हजार रुपये मासिक का इंतजाम कर दिया था। 2017 की बात है रांची में हो रहे क्रिकेट टेस्‍ट मैच में कमेंटेटर के रूप में गावस्‍कर रांची आये थे तब उन्‍होंने भेंगरा से मुलाकात की थी। भारतीय टीम की जर्सी भी दी थी। भेंगरा चार अगस्‍त को अचानक बीमार गंभीर रूप से बीमार पड़े, तो साधन के संकट का सामना करना पड़ा। उनके दो बेटे हैं मगर दोनों बेरोजगार। पेंशन के पैसे से ही किसी तरह घर चलाते थे। भेंगरा सेना में थे मगर आवश्‍यक कागजात नहीं रहने के कारण सेना के अस्‍पताल में उनका इलाज नहीं करा सके।

भेंगरा मूलत: सेना में थे। 1978 में अर्जेंटीना विश्‍व कप में भारतीय हॉकी टीम के सदस्‍य थे, मॉस्‍को में भी भारत की ओर से प्रतिनिधित्‍व किया था। बताते हैं कि उनका चयन ओलिंपिक के लिए भी भारतीय हॉकी टीम में हुआ था मगर किसी कारण वह नहीं जा सके थे। गोपाल भेंगरा के छोटे भाई लालचंद भेंगरा जो खुद हॉकी के बड़े खिलाड़ी हैं कहते हैं कि ओलिंपिक में दोनों भाइयों का चयन हुआ था मगर स्‍टैंड बाई में रखा गया था। राष्‍ट्रीय, अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर के खिलाड़‍ियों को जो सम्‍मान मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है। जो कुछ ये खेल के मैदान में अपना हुनर दिखा पाते हैं वह भी अपने बूते। अभाव में जीकर अनेक ऐसे खिलाड़‍ियों ने अपनी पहचान बनाई है। खुद सलीमा और निक्‍की ने भी। पौष्टिक भोजन तक उपलब्‍ध नहीं है। अब देखिये सिमडेगा के जिस ट्रेनिंग सेंटर से निकलकर सलीमा और निक्‍की ओलिंपिक तक पहुंचीं वहां की खिलाड़ी गरीबी में माड-भात खाकर हॉकी का अभ्‍यास कर रही हैं। सिमडेगा हॉकी के अध्‍यक्ष मनोज कोनबेगी कहते हैं कि इनके लिए 175 रुपये प्रति खिलाड़ी डायट के लिए मिलते थे। मगर कोरोना के दौरान इन्‍हें घर भेज दिया गया। राशि नहीं मिली। तो किसी तरह मजदूरी कर, माड़-भात खाकर अभ्‍यास करती हैं। इसमें ऐसी खिलाड़ी भी हैं जिन्‍होंने हॉकी में राज्‍य को गोल्‍ड और सिलवर दिलवाया है।

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