पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम के असर उत्तर प्रदेश में भी पड़ रहे हैं। इसका असर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी दिखाई देगा। जिस प्रकार से सपा और बसपा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पर सीटों के बंटवारों को लेकर दबाव बनाने की रणनीति अपना रही थीं, अब वही दबाव कांग्रेस लोकसभा चुनाव में होने वाले महागठबंधन में यूपी में सपा और बसपा पर बनाएगी। हालांकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की बजाय यूपी में कांग्रेस उतनी मजबूत नहीं है, लेकिन तीन राज्यों में सरकार बनाकर कांग्रेस ने बढ़त बना ली है।
लोकसभा चुनाव से पूर्व बनने वाले महागठबंधन को लेकर अभी प्रदेश में स्थिति साफ नहीं है। हालांकि सपा, बसपा, रालोद, निषाद पार्टी और पीस पार्टी के बीच गठबंधन तय माना जा रहा है, लेकिन इसमें अभी कांग्रेस शामिल नहीं है। इसके पीछे एक वजह यह भी है कि सोमवार को मोदी सरकार को घेरने के लिए बैठक में यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी और 'आप' संयोजक अरविंद केजरीवाल समेत 21 दलों के नेता पहुंचे, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव गैरहाजिर रहे।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि सपा-बसपा अगर वास्तव में यूपी में भाजपा को हराने के लिए गठबंधन कर रही हैं तो उन्हें कांग्रेस को साथ में लेना ही पड़ेगा, नहीं तो कांग्रेस उनके राह में रोड़ा बनेगी। इसके अलावा अगर सपा-बसपा यूपी में गठबंधन में कांग्रेस को लेती हैं तो उन्हें भी कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें देनी पड़ेंगीं और अगर ऐसा नहीं होता है तो कांग्रेस के विकल्प खुले रहेंगे।
यूपी में कांग्रेस को कई बूथों पर नहीं मिल रहे कार्यकर्ता
यूपी में कांग्रेस को संगठनात्मक स्तर पर बहुत काम करने की जरूरत है। पार्टी को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कई बूथों पर कार्यकर्ता ही नहीं मिल रहे हैं। इसके लिए पार्टी के जिले स्तर के पदाधिकारियों को पत्र भेजकर जानकारी मांगी गई थी। जिलों से जवाब नहीं मिलने पर रिमाइंडर भी भेजा गया। इसके अलावा पार्टी से तमाम ऐसे नए-पुराने नेता जुड़े हैं, जो बस नाम के हैं। ना उनके पास कोई जिम्मेदारी है और ना ही पार्टी उनको पूछती है।
भाजपा को रणनीति में करना पड़ेगा फेरबदल
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है, उसी प्रकार यूपी में लोकसभा चुनाव में भी झटका लग सकता है। इसका प्रमुख कारण जनप्रतिनिधि-पदाधिकारियों और लोगों की सुनवाई न होना है। आम कार्यकर्ता और लोगों की बात ही अलग है। इसके अलावा और भी कई ऐसे कारण हैं, जिस पर भाजपा को कार्य करना चाहिए था, लेकिन वह नहीं कर पाई है। जिस प्रकार विपक्ष एकजुट हो रहा है और भाजपा के सहयोगी संगठन विरोधी तेवर अपना रहे हैं, उन्हें भी भाजपा को सहेजना पड़ेगा।
तीसरे मोर्चे को भी मिल सकता है बल
प्रदेश में बसपा के समर्थन से चार उप चुनाव गोरखपुर, फूलपुर, कैराना और नूरपुर जीत चुकी बसपा-सपा उत्साह से लबरेज हैं। प्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा मुखिया अखिलेश यादव के कांग्रेस से गठबंधन नहीं होने पर तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट भी तेज हो सकती है।