सिंह ने बताया कि जब वे तमिलनाडु के राज्यपाल बनाए गए थे तो वहां राष्ट्रपति शासन लागू था। जब राज्य में चुनाव हुए तो जयललिता की पार्टी दो तिहाई बहुमत से जीत कर आई थी। जब वह सरकार बनाने का दावा करने आईं तो मैंने उन्हें अपने सलाहकारों द्वारा विकास और कानून व्यवस्था पर बनाए गए नोट दिया। इसे उन्होंने पूरी तरह से लागू किया। इस मुलाकात के बाद मेरे उनके साथ काफी नजदीकी रिश्ते बन गए जो अंत तक कायम रहे।
भीष्म नारायण सिंह ने कहा कि जयललिता ने सदैव उनकी सलाहों पर अमल किया। वह मुझे पिता की तरह सम्मान करतीं थी। इस बात का जिक्र उन्होंने कई बार किया भी था। 1992 के अगस्त के पहले सप्ताह की एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि जयललिता ने उनसे मिलने के लिए संदेश भेजा। उस वक्त मैं पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमण के साथ था। सूचना मिलने के बाद मैं वापस राजभवन लौट आया। इसके बाद जब जयललिता उनके पास पहुंची तो उन्होंने एक पत्र सौंपा। यह साधारण पत्र नहीं बल्कि उनका त्यागपत्र था। यह फैसला उन्होंने भावुकतावश लिया था। उस दिन वह काफी सीरियस लग रहीं थी। जबकि उनका स्वभाव वैसा नहीं था। इसके बाद मैंने उस पत्र को टेबल पर रख दिया और कहा कि आप मुझे पिता की तरह सम्मान देती हैं। ऐसे में किस पिता को अपनी पुत्री का इस्तीफा स्वीकार करने में खुशी होगी। अतः आप इस फैसले पर पुनर्विचार करें और अगले दिन मुझसे मुलाकात करें। अगर आप इस पर अडिग रहती हैं तो मैं अपने संवैधानिक दायित्व का पालन करुंगा। इसके बाद उन्होंने अपना फैसला बदल लिया। सिंह ने कहा कि इस उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह भावुक महिला होने के साथ ही दूसरों की भावना का सम्मान भी करतीं थी। इस महान नेत्री का निधन मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है।