इस साल के अंत में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए जनता दल यूनाइटेड के विधायकों पर डोरे डाल रही है। कई विधायक भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के संपर्क में हैं तो कई संपर्क साधने में लगे हुए हैं। बिहार विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, नीरज कुमार बबलू, रवींद्र राय और राहुल शर्मा की विधायकी खत्म करने के बारे में जो फैसला सुनाया था उस पर पटना हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। इन विधायकों के भाजपा में जाने की संभावना है। सूत्र बता रहे हैं कि ज्ञानेंद्र सिंह ने कई और विधायकों के साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात भी की है। वहीं मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के समर्थन में भी ज्ञानेंद्र सिंह ने बयान दे डाला कि अगर मुख्यमंत्री पर कोई आंच आयी तो वह भाजपा से हाथ मिला सकते हैं। मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने की खबरों ने भाजपा को एक बड़ा मुद्दा दे दिया है। हालांकि जद (यू) नेताओं ने इस बात का खंडन किया है कि मुख्यमंत्री को नहीं बदला जाएगा। जीतनराम मांझी ने हाल ही में दलित अधिकारियों के साथ बैठक कर इस बात का संकेत दे दिया कि आने वाले दिनों में प्रदेश के सियासी समीकरण कुछ अलग हो सकते हैं। क्योंकि प्रदेश की सियासत में दलित मतदाताओं का बड़ा योगदान है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ को बिहार में रोकने के नाम पर पुराने जनता परिवार की एकता की पहली परीक्षा इस साल होने वाले बिहार विधानसभा के चुनावों में होगी। लोकसभा चुनाव के बाद कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में मिली सफलता से उत्साहित भाजपा कार्यकर्ता मानकर चल रहे हैं कि इस साल बिहार में भगवा झंडा लहराने से कोई नहीं रोक सकता। वहीं राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) के प्रस्तावित विलय की खबरों से इनके कार्यकर्ताओं में भी जोश भर गया है। भले ही विधानसभा चुनाव इस साल के अंत में हों लेकिन पटना स्थित भाजपा कार्यालय में गहमा-गहमी से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है। इसलिए भाजपा ने भी मिशन 185 का लक्ष्य तय किया है। पार्टी के रणनीतिकारों की मानें तो पहले यह लक्ष्य 175 का था लेकिन अब तीन चौथाई सीटें जीतने का इरादा है क्योंकि जनता प्रदेश में बड़ा बदलाव चाहती है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मंगल पांडे आउटलुक से कहते हैं कि राज्य की सत्ता का संचालन राजद से गठजोड़ के बाद अपराधियों के हाथ में चला जाएगा। इसलिए प्रदेश की जनता बड़े बदलाव का संकेत दे रही है। लेकिन राजद और जदयू के नेता यह मानकर चल रहे हैं कि अगर वे एकजुट हो जाएंगे तो गत वर्ष बिहार विधानसभा उपचुनावों की तरह भाजपा का विजय रथ रुक जाएगा। वैसे भी लोकसभा चुनाव के बाद राज्य की दस विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में राजद, जदयू और कांग्रेस गठबंधन को छह सीटें मिली थी। अभी यह तय नहीं है कि जद यू और राजद के विलय के बाद कांग्रेस गठबंधन में शामिल होगी लेकिन इतना तय है कि अगर जदयू और राजद एकजुट हुए तो सियासी समीकरण अलग होगा क्योंकि बिहार का राजनीतिक गणित अन्य राज्यों की तुलना में बिल्कुल ही अलग है। जाति की सियासत राज्य में अब भी प्रमुखता से है। इसलिए भाजपा दबे स्वर में जीतनराम मांझी का समर्थन कर रही है कि ताकि इस वर्ग का वोट हासिल हो जाए। अगर जीतनराम मांझी को हटाया गया तो निश्चित तौर पर इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। भाजपा नेताओं को मालूम है कि भले ही लोकसभा चुनाव में पार्टी और उसके सहयोगी दलों को 40 में से 31 सीटेंं मिली हो लेकिन विधानसभा चुनावों में यह प्रदर्शन नहीं दुहराया जा सकता। क्योंकि राज्य में दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक मतदाता ही तय करेंगे कि किसकी जीत होगी। भाजपा के पर्यावरण प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव चंद्राशु मिश्रा कहते हैं कि भाजपा के बिना प्रदेश का विकास संभव नहीं है, इसलिए राज्य की जनता चाहती है कि भाजपा की सरकार बने। भाजपा सत्ता पाने के लिए पूरे जी-जान से जुटी हुई है। हर वर्ग के बीच पकड़ हो ऐसी रणनीति बनाई जा रही है। विधानसभा चुनाव तक पार्टी के कार्यक्रमों की रूपरेखा तय कर ली गई है। वहीं राजद और जदयू विलय के बाद राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए मुहिम शुरू करेंगे। राजद प्रमुख लालू यादव आउटलुक से कहते हैं कि जनता मोदी के विकास के छलावे से ऊब गई है, बिहार की जनता राज्य में भगवा सरकार नहीं बनाने देगी। लालू कहते हैं कि बिहार की ताकत दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों की है जो कि उनके साथ हैं। उत्साह दोनों ही ओर बना हुआ है। विश्लेषक मानते हैं कि अगर राजद और जदयू का वोट एक हो गया तो प्रदेश का सियासी समीकरण अलग होगा। दूसरी तरफ भाजपा के साथ लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठबंधन है। अगर सीटों का बंटवारा सही नहीं हुआ तो गठबंधन में दरार भी पड़ सकती है। भाजपा अकेले दम पर अब सरकार बनाने का सपना संजोए हुए है। जैसा कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में देखने को मिला।
जद (यू) में फूट डालने की कोशिश
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