रांची। 2021 की जनगणना में जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन रविवार को नौ सदस्यीय सर्वदलीय शिष्टमंडल के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित साह से मिले। प्रधानमंत्री के नाम पत्र गृह मंत्री को सौंपा और जातीय जनगणना के पक्ष में दलील पेश की। नाउम्मीद मसले पर सर्वदलीय शिष्टमंडल के साथ दिल्ली जा हेमन्त ने एक साथ कई चाल चले।
बिहार में भाजपा के साथ सरकार चलाने वाले नीतीश कुमार भी जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव आदि के साथ प्रधानमंत्री से मिले थे। उस समय ही जाति आधारित जनगणना पर केंद्र का रवैया स्पष्ट हो गया था। महाराष्ट्र के एक मामले में तीन दिन पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट एक हलफनामा दायर कर कह दिया कि जनगणना में ओबीसी की गिनती एक लंबा और कठिन काम है। एक प्रकार से केंद्र ने हाथ खड़े कर दिये। इसके बावजूद हेमन्त सोरेन दिल्ली दरबार में मिलने पहुंचे। इसी सात सितंबर को हेमन्त सोरेन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जाति आधारित जनगणना कराने के लिए सर्वदलीय शिष्टमंडल मिलकर ज्ञापन सौंपने के लिए समय मांगा था। प्रधानमंत्री कार्यालय ने गृह मंत्री का रास्ता दिखा दिया।
दरअसल झारखंड में करीब 55 प्रतिशत ओबीसी की आबादी है। ओबीसी को आरक्षण को लेकर राजनीति तेज हो गई है। केंद्र ने इनके पक्ष में निर्णय कर लिया है। राज्यों में भी वोट की राजनीति को देखते हुए ओबीसी का हिमायती बताने की कवायद राजनीतिक दलों ने तेज कर दी है। प्रधानमंत्री से मिलकर लौटे बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, राजद के तेजस्वी यादव ने नौ राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर गोलबंदी तेज की। दूसरी तरफ झारखंड में राज्यपाल रमेश बैस के साथ अन्नपूर्णा देवी को केंद्र में मंत्री बना और अन्नपूर्णा का जिलों में दौरा करा भाजपा पहले से दांव चल चुकी है।
भाजपा कहती रही है कि केंद्र ने पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण और आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया है। केंद्र की तरह झारखंड सरकार भी इसे लागू करे। हेमन्त सरकार में सहयोगी कांग्रेस पहले से दबाव बनाये हुए हैं, बैठकों, सभाओं में लगातार यह कह रही है कि 14 प्रतिशत से बढ़ाकर ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जायेगा। इसे लेकर कांग्रेस ने पूरे प्रदेश में अपनी ही सरकार पर दबाव बनाने के लिए राजधानी सहित जिला मुख्यालयों पर विशाल प्रदर्शन भी किया। इस मोर्चे पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का ही पलड़ा कुछ हलका दिख रहा था।
सर्वदलीय शिष्टमंडल के लिए हेमन्त सोरेन ने प्रधानमंत्री को 7 सितंबर को ही पत्र लिखा था जो सार्वजनिक था। विधानसभा के मॉनसून सत्र में झामुमो विधायक सुदिव्य सोनू ने इस पर सवाल उठाया तो मुख्यमंत्री ने जातिय जनगणना के लिए सर्वदलीय शिष्टमंडल के प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपने की घोषणा की थी। प्रदेश भाजपा केंद्र के रवैये को समझ रही थी। इसलिए भाजपा ने अंतिम समय तक अपना पत्ता नहीं खोला। ऐसी समझ बन रही थी कि भाजपा शिष्टमंडल में शामिल नहीं होगी। एक दिन पहले भी प्रदेश अध्यक्ष सांसद दीपक प्रकाश ने मीडिया से कहा कि पार्टी नेतृत्व मिल बैठकर निर्णय करेगी।
दरअसल ओबीसी वोट का सवाल था। दीपक प्रकाश शिष्टमंडल में शामिल हुए। हेमन्त उन्हें सहमत करने में सफल रहे। ठीक उसी तरह जिस तरह जनगणना में सरना आदिवासी धर्म कोड के सवाल पर विधानसभा में भाजपा को आम सहमति जाहिर करनी पड़ी। हालांकि आरएसएस लगातार आदिवासियों को हिंदू मानती और बताती रही। संघ से अलग भाजपा के कदम चलेंगे यह सपने में भी कोई नहीं सोच सकता। बहरहाल ओबीसी के ना उम्मीद मुद्दे पर भी सर्वदलीय शिष्टमंडल ले जाकर हेमन्त ने अपनी जगह बना ली है। जानकार मानते हैं कि तत्काल न चाहते हुए भी भाजपा को दूसरी बार हेमन्त के दांव के आगे झुकना पड़ा।
प्रधानमंत्री के नाम गृह मंत्री को सर्वदलीय शिष्टमंडल द्वारा सौंपे गये ज्ञापन में दलील दी गई है कि जाति आधारित जनगणना नहीं नहीं करायी जायेगी तो पिछड़ी, अति पिछड़ी जातियों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीति व आर्थिक स्थिति का न तो सही आकलन हो सकेगा न ही उनकी बेहतरी व उत्थान संबंधित समुचित नीति का निर्धारण हो पायेगा। और न ही उनकी संख्या के अनुपात में बजट आवंटन हो पायेगा। जनगणना से पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध करने में ये आंकड़े सहायक सिद्ध होंगे। 1931 की जनगणना के आधार पर ही मंडल कमीशन ने पिछड़ों के लिए आरक्षण की सिफारिश की थी।