सरकार ने पिछले लॉकडाउन से सीख नहीं ली। तरबूज और हरी सब्जियां उपजाने वाले किसानों की कमर फिर टूट रही है। पिछले कोरोना काल में जब केरल ने सब्जियों के समर्थन मूल्य का एलान किया तो झारखण्ड सरकार की वाहवाही लूटने में लग गई। यहां भी समर्थन मूल्य तय करने की घोषणा हुई। प्रस्ताव मंत्री के पास गया मगर मंजूरी नहीं मिली। नतीजा है कि इस साल भी किसान खून के आंसू रो रहे हैं। घर चलाने और बच्चों की पढ़ाई से पहले उन्हें चिंता किसान क्रेडिट कार्ड और दूसरे साहुकारों से लिये गये कर्ज की अदायगी की चिंता सताने लगी है। स्थानीय अखबारों में तरबूज और सब्जी उत्पादक किसानों की बदहाली की खबरें छप रही हैं।
लॉकडाउन के कारण खेतों में तरबूज और सब्जियां हैं। खरीदार नहीं हैं। थोक मंडी में दो-तीन रुपये किलो तरबूज और एक से तीन रुपये किलो खीरा, टमाटर, कद्दू के भाव लग रहे हैं। रांची के मांडर, ओरमांझी, बेड़ो, कांके, पिठोरिया, बुढ़मू, चान्हो, नगड़ी आदि ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर तरबूत और हरी सब्जियों की खेती होती है। शहर के बाजार तक ले जाने का मतलब भाड़े के कारण कीमत पर भी आफत। लॉकडाउन के कारण व्यापारी गायब हैं, बाजार खुलने की समय सीमा और संक्रमण के डर से खरीदारों के भी गायब रहने के कारण ये हालात हैं। टमाटर की हालत तो यह है कि किसान खेतों में ही छोड़ देना बेहतर समझ रहे हैं।
मैनेजमेंट करने के बाद पिठोरिया के कोनकी गांव में ( रांची) पॉली हाउस में गुलाब की खेती के साथ तरबूज उपजाने वाले गुणाकर का पिछले साल अनुभव ठीक नहीं रहा। ग्रामीण बाजार में एक तरबूज की कीमत पांच रुपये थी। टमाटर का भी वही हाल था। गांव में और अपने परिचितों को ही बांटकर उम्मीदों पर पानी फेरना पड़ा। इस साल गुणाकर ने खेती से हाथ खींच ली।
बेड़ो ( रांची) के सुधाकर महतो कहते हैं कि शहरी बाजार में दस रुपये में सवा-डेढ़ किलो टमाटर का भाव है। पूंजी, खाद-बीज, मजदूरी, परिश्रम, सब मिलाकर तरबूज हो या दूसरी हरी सब्जियां पूरी तरह घाटे का सौदा। खेत से थोक कारोबारी पानी के मोल मांगते हैं। टमाटर को रख भी नहीं सकते। बेड़ो के ही किसान मित्र ब्रजेश कहते हैं कि कई किसानों ने खेत में ही टमाटर छोड़ दिया। व्यापारी लॉकडाउन में औने-पौने कीमत पर खरीद कर रहे हैं और मजबूरी में किसान बेच रहे हैं। लागत निकालने पर आफत है। खीरा हो, मूली हो या कद्दू एक से तीन रुपये थोक मंडी में है। बैगन और बंधा दो से चार रुपये। हरी मिर्च की कीमत भी 40 रुपये से गिरकर दस रुपये हो गई है। बेड़ो के कोई हजारों किसानों ने किसान क्रेडिट कार्ड और महिला स्वयं सहायता ग्रुप से कर्ज लिया है। घर नहीं अब कर्ज वापसी की चिंता किसानों को सता रही है। गढ़वा के किसानों ने ऑनलाइन ई-नेम के माध्यम से 17 मई को 270 रुपये क्विंटल की दर से तरबूज बेचा था। सूबे के दूसरे जिलों की हालत भी यही है। माल बाहर भेजने पर भाड़ा भी निकलेगा या नहीं कहना कठिन है। झारखण्ड जनाधिकार सभा ने तरबूज उत्पादकों की आवाज उठाई है। उसके अनुसार धनबाद, खूंटी, गुमला, बोकारो और लोहरदगा, में गंभीर स्थिति है। कीमत नहीं मिलने से खेतों में ही सड़ रहे हैं। कुछ किसान आत्महत्या की बात कर रहे हैं। प्रभुसाय मुंडा के अनुसार लॉकडाउन में व्यापारी एक से दो रुपये किलो कीमद दे रहे हैं। गुमला जिला के घाघरा प्रखंड के तेलागड़ा पंचायत के बुरहू गांव की सनियारो उरांव ने दो एकड़ में तरबूज लगाया है, इलाके में 15 किसानों ने 15 एकड़ में लगाया है, कोरोना के कारण कोई तरबूत नहीं उठा रहा है। खेत में तरबूज बरबाद हो रहा है। लोहरदगा के ईश्वर महली ने डेढ़ लाख रुपये लगाकर तरबूज की खेती की है। 70 हजार रुपये कर्ज के अतिरिक्त महिला मंडल से भी कर्ज उठाया है। बीज, खाद, दवा, पटवन, मजदूरी पर खर्च किया। फसल तैयार है, लॉकडाउन के कारण बाजार नहीं है। महली का कहना है कि जितने देर बाजार खुलता है उतने में क्या कर लेंगे। उसकी सिर्फ इतनी इच्छा है कि सरकार तरबूज खरीद ले ताकि कम से कम लागत तो निकल जाये।
सरकार ने कोरोना के पिछले अनुभव से फायदा नहीं उठाया। जब खेतों में तरबूज सड़ रहे हैं, किसान औने-पौने बेच रहे हैं तब कृषि मंत्री बादल पत्रलेख की नींद टूटी है। कह रहे हैं कि बाजार दिलाने के लिए सरकार गंभीर है। उन्होंने कृषि सचिव को निर्देश दिया है कि जिला कृषि अधिकारी और मार्केटिंग सेक्रेटरी से समन्वय कायम कर किसानों को राहत दिलायें। विशेष सचिव कृषि को निर्देश दिया गया है तरबूज का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के लिए जल्द बैठ कर रिपोर्ट दें। ऐसा न हो कि सरकार का फैसला अमल में आने तक देर हो जाये।