लिवइन रिलेशनशिप महानगरों और बड़े शहरों के प्रगतिशील नई पीढ़ी का सगल है। बड़े शहर अचानक बड़े नहीं हुए। दशकों लगे लिवइन रिलेशनशिप के मुकाम तक पहुंचने में। मगर झारखण्ड और उसमें भी उसके अत्यंत पिछले गुमला जिले में इस तरह का लिवइन रिलेशनशिप का सिलसिला बड़ा पुराना है। एक दिन पहले ही कोई पचपन जोड़ियों की शादी कराई गई जो बिना शादी लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे थे। एक जोड़ा तो चालीस सालों से बिना शादी के साथ रह रहा था। उससे भी दिलचस्प यह भी कि एक ही मंडप में बाप और बेटे की, ससुर और दामाद की और भाई-बहन और मौसी की भी शादी हुई। जिनकी शादी हुई वे ईसाई,सरना और हिंदू धर्म को मानने वाले थे। पाहन, पंडित, पुरोहित ने उनके धर्म, आस्था के हिसाब से वैवाहिक बंधन यानी शादी की औपचारिकता पूरी करायी।
आप सिर्फ एहसास कर सकते हैं उस व्यक्ति की जो बिना शादी के चालीस सालों से पति-पत्नी की तरह रह रहे थे। इसी मंडप में 62 साल के पाको झोरा और उनकी पत्नी सोमारी की भी शादी हुई। उसी मंडप में उनके पुत्र जितेंद्र और पूजा की शादी हुई जो पति-पत्नी की तरह 12 साल से बिना शादी के साथ रह रहे थे। पाको झोरा की यह पहली औपचारिक समारोह पूर्वक शादी हुई। और शादी समारोह में उनका पोता भी शामिल हुआ। जेम्स आइंद, उनकी बहन शिवानी और मौसी अनिमा की भी इसी मंडप में शादी हुई। आठ बच्चों के पिता कर्मा खड़िया 49 साल के हैं वे रोपनी के साथ 25 साल से पति-पत्नी की तरह रह रहे थे। उनकी बेटी किरण भी मनीष के लिवइन रिलेशनशिप में थे। उसी मंडप में वे भी वैवाहिक बंधन में बंध गये। गुमला के बसिया में सरना मैदान में ये शदियां हुईं। आयोजन रांची की निमित नामक एक स्वसंसेवी संस्था ने कराई।
औपचारिक शादी और सात फेरे न होने की बड़ी वजह परंपरा और गरीबी रही। आदिवासी समाज में जब तक भोज नहीं देते शादी की सामाजिक मान्यता नहीं मिलती। गरीबी के कारण ऐसे लोग समाज को भोज नहीं दे पाये, वैवाहिक बंधन में नहीं बंध पाये थे। घुस्सू या ढुकनी विवाह की भी परंपरा है। जब किसी लड़की को कोई लड़का पसंद आ जाता है तो वह जबरन उसके घर में जाकर साथ रहने लगती है। जनजातीय समाज में उस विवाह को सामाजिक स्वीकृति है। बाद में सात फेरे और औपचारिक शादी होती है। झारखण्ड में इस तरह की सामूहिक शादियां बीच-बीच में होती रहती हैं। कई सामाजिक स्वयंसेवी संगठन अंतराल के बाद इस तरह के आयोजन करते रहते हैं। दो साल पहले रांची में भी एक समारोह में कोई एक सौ से अधिक जोड़े वैवाहिक बंधन में बंधे थे।
छोटी-छोटी घटनाओं पर सांप्रदायिक तनाव और आदिवासी-गैर आदिवासी के बीच के फासले को महसूस करने वाले रांची में अभी दो दिन पहले की ही बात है। एक ही मंडल में 193 जोड़े शादी के बंधन में बंधे जिसमें 139 हंदू, 30 मुस्लिम और 24 ईसाई जोड़े थे। अलग-अलग धर्म गुरुओं ने विवाह-निकाह करवाया। आयोजन गायत्री परिवार की ओर से किया गया था।
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    