गुजरात के उना में तथाकथित गौरक्षकों द्वारा दलित युवकों की बेरहमी से पिटाई की घटना को एक साल पूरा होने के मौके पर राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के संयोजक जिग्नेश मेवाणी ने मेहसाणा से बनासकांठा तक 'आजादी कूच' करने का ऐलान किया है।
आउटलुक से बातचीत में जिग्नेश मेवाणी ने बताया कि दलित उत्पीड़न और तथाकथित गौरक्षकओं की गुंडागर्दी की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। लेकिन जिस तरह गुजरात के दलितों ने मुस्लिम और प्रगतिशील साथियों के साथ मिलकर एक नए मुहिम को जन्म दिया, वह दलित आंदोलन के इतिहास में महत्वपूर्ण घटना है।
पिछले साल के सुरेंद्रनगर जिले के डीएम ऑफिस के सामने मरे हुए जानवर छोड़कर प्रतिरोध का जो तरीका अपनाया वह भी बेमिसाल था। इसके बाद 31 जुलाई को अहमदाबाद में हुए दलित महासम्मेलन में हजारों दलितों ने बाबा साहब अम्बेडकर के नाम पर शपथ ली थी कि मृत पशु की खाल निकालने का काम नहीं करेंगे। साथ ही यह मांग भी उठाई थी कि सरकार जाति आधारित परंपरागत पेशा छुड़वाकर कम से कम पांच एकड़ जमींन का आवंटन करे।
जिग्नेश का दावा है कि इस आंदोलन ने गुजरात की सत्ता को हिला कर रख दिया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को इस्तीफा देना पड़ा। कुछ गांवों में दलितों ने मृत पशुओं की खाल निकालने का काम छोड़ दिया और अहमदाबाद जिले के जिन गांवों में 26 साल पहले आवंटित की गई जमीन का कब्जा नहीं मिल रहा था, वैसी 300 एकड़ जमीन का कब्जा भी मिला। इसलिए जरूरी है कि आत्म-सम्मान और अस्तित्व की यह लड़ाई आगे बढती रहे। इसी मकसद से दलितों के साथ-साथ मुस्लिम, किसान, मजदूर और बेरोजगार युवा वर्ग के सवालों को जोड़कर उत्तरी गुजरात के मेहसाना जिले से बनासकांठा तक एक आजादी कूच निकालेंगे।
मेवाणी का कहना है कि जातिवाद और तथाकथित गौरक्षकों के आतंक के साथ-साथ मंहगाई , किसानों की आत्महत्या, मजदूरों के शोषण और बेरोजगारी से भी आजादी चाहिए, इसलिए हम इस यात्रा को आजादी कूच का नाम दे रहे हैं। इस आज़ादी कूच का अंतिम पड़ाव होंगे बनासकांठा या रापर तहसील के वह गांव जहां दलित समाज के भूमिहीन मजदूरों को जमीन का आवंटन केवल कागज पर हुआ। 32 साल से दलितों को आवंटित की गई जमीनों पर तथाकथित दबंग जातियों का गैरकानूनी कब्जा है।