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खालिस्तानी उग्रवाद की सुगबुगाहट फिर?

खालिस्तानी उग्रवाद फिर से सुगबुगा तो नहीं रहा। जम्मू में ताजा सिख अशांति और इससे पहले पंजाब से एक साल से मिल रही खबरों से यह आशंका बलवती हो रही है।
खालिस्तानी उग्रवाद की सुगबुगाहट फिर?

 

 

इसलिए यदि हाल ही में जम्मू में हुए घटनाक्रम को केंद्र सरकार ढंग से निपटा नहीं सकी तो चिंगारियां लपटें बन सकती हैं। तीन जून को जम्मू में हुई हिंसा के बाद जिले के कुछ इलाके हिंसा की चपेट में हैं। सिख युवक की पुलिस गोली से हुई मौत के बाद तनाव और बढ़ गया। कठुआ में प्रदर्शनकारियों ने नेशनल हाईवे जाम किया तो पठानकोट हाईवे भी जाम रखा गया। सिख प्रदर्शन के चलते जम्मू में अनिश्तिकालीन कर्फ्यू (धारा-144)  लगा दिया गया है। महज ब्लू स्टार ऑपरेशन के जिम्मेदार जरनैल सिंह भिंडरावाले के पोस्टर उतारने और पुलिसिया हिंसा में एक सिख युवक की मौत का मसला इतना बड़ा हो गया कि जम्मू-कश्मीर में फैली हिंसा अभी तक शांत नहीं हुई। यह लपटें अगर पंजाब तक पहुंचीं तो वहां तो आग लगने के लिए पहले से बारूद तैयार है। बेरोजगारी, नशे, किसानी की मंदी हालत, कर्ज, गरीबी सब ऐसे सूखे फूस हैं जो धू-धू कर पंजाब को खाक करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

 

बीते सालों में पंजाब में कई ऐसी घटनाएं हुईं जो इंगित करती हैं कि हालात सामान्य नहीं हैं। यूपीए सरकार के समय खुफिया एजेंसियों की इस बारे में रिपोर्ट के बाद राज्य के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को दिल्ली तलब किया गया था। नॉर्थ ब्लॉक स्थित गृह मंत्रालय में इस बाबत हुई उच्चस्तरीय बैठक में बादल को पूरी स्थिति से अवगत करवा दिया गया था।  

 

अब बात यहां तक आ पहुंची है कि राजनीतिक स्तर पर बातचीत और पहल जरूरी हो गई है। खुफिया विभाग के सूत्रों के मुताबिक विदेशों में बैठे खालिस्तान समर्थक लोगों द्वारा कट्टरपंथियों को उकसाने के कई मामले संज्ञान में आए हैं। बीते वर्ष शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की ओर से ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गए आतंकवादियों के मेमोरियल को हरी झंडी देना इनमें से एक है।

 

असल मसला तो यह है कि अगर आतंकवाद की पौध फिर से आबाद हुई तो पंजाब का क्या होगा। इस दफा तो हालात ज्यादा खराब होंगे। आतंकवाद जिस समय पनपा और अपने चरम पर रहा उस वक्त आस-पड़ोस अच्छे हुआ करते थे। ग्रामीण इलाकों में बाजारवाद नहीं पसरा था। मंहगाई और भुखमरी-बेरोजगारी नहीं थी। सांप्रदायिक माहौल आज जैसा नहीं था। लेकिन आज के दौर में ऐसा नहीं है। सांप्रदायिक माहौल और सरकारों ने तो बरसों पुरानी गंगी-जमुनी तहजीब जला कर रख दी है। इसलिए पुलिस को बजाय पोस्टर जैसी छिटपुट घटनाओं पर ध्यान देने के पर्दे के पीछे हो रही बड़ी हलचल की निगाहबानी करनी चाहिए। जो कहीं सारे प्रदेश को जला न डाले। सरकारों को मेमोरियल बनवाने या आतंकवाद से जुड़े परिवारों को सम्मानित करने की राजनीति के बजाय बेरोजगारी और नशों से पंजाब मुक्ति पर योजना बनानी चाहिए। बहरहाल जम्मू में पुलिस अगर भिंडरावाले के पोस्टर मामले में जरा सी संवेदनशीलता दिखाती तो शायद मामला यहां तक नहीं बढ़ता।  

 

कौन थे भिंडरावाले

खालिस्तान समर्थक जरनैल सिंह भिंडरावाले को 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान सेना के जवानों ने मार गिराया  था। छह जून को कुछ सिख संगठन ऑपरेशन ब्लू स्टार को शहीद दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं (कुछ मनाते भी हैं।)। सिखों के लिए अलग देश खालिस्तान की मांग और इसके बाद भारतीय इतिहास में एक नया पन्ना जोड़ने वाले व्यक्ति जरनैल सिंह भिंडरावाले ही थे। भिंडरावाले का जन्म पंजाब के मोगा जिले के रोडे गांव में हुआ। आठ भाई-बहनों में जरनैल सातवें नंबर पर था। जरनैल की शुरूआती पढ़ाई दमदमी टकसाल में हुई। अपने व्यवहार से जरनैल ने टकसाल के प्रमुख करतार सिंह को प्रभावित कर लिया। कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद उन्होने जरनैल को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

 

ऑपरेशन ब्लू स्टार

अलगाववादी गतिविधियों के कारण धीरे-धीरे सरकार और उनके बीच टकराव होने लगा। टकराव के चरम स्तर पर पहुंच जाने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 3 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लू स्टार के आदेश दिए। साथ ही भारतीय सेना को स्वर्ण मंदिर में धावा बोलने का आदेश दिया। पांच दिन चले ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत भिंडरावाले और उसके साथियों के कब्जे से स्वर्ण मंदिर को मुक्त करा लिया गया। इस कार्रवाई में भिंडरावाले की मौत हो गई। .

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