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कोलकाता रेप मर्डर केस: उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल ने निकाला मशाल जुलूस

बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों, जूनियर डॉक्टरों और प्रशिक्षुओं ने...
कोलकाता रेप मर्डर केस: उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल ने निकाला मशाल जुलूस

बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों, जूनियर डॉक्टरों और प्रशिक्षुओं ने बुधवार रात को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के विरोध में मशाल जुलूस निकाला।

इस बीच, निजी अस्पतालों के डॉक्टरों ने इसी घटना के विरोध में कोलकाता के गंगा घाट पर मिट्टी के दीये जलाए।

इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले में पेशेवरों की सुरक्षा और अन्य मुद्दों पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स से रिपोर्ट मांगी थी।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने आर.जी.कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में हुई घटना से संबंधित स्वप्रेरणा याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया।

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने सुरक्षा और अन्य चिंताओं की जांच करने और लिंग आधारित हिंसा को रोकने तथा इंटर्न, रेजिडेंट और नॉन-रेजिडेंट डॉक्टरों के लिए सम्मानजनक कार्य वातावरण सुनिश्चित करने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने पर विचार करने के लिए एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया था। अदालत ने टास्क फोर्स को एक अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा था।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सीसीटीवी कैमरे लगाने, शौचालयों के निर्माण और बायोमेट्रिक प्रणाली के संबंध में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में पूछताछ की।

न्यायालय ने सवाल किया कि प्रगति इतनी धीमी क्यों रही। पश्चिम बंगाल का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता द्विवेदी ने बताया कि बाढ़ के कारण हुई देरी ने प्रगति में बाधा उत्पन्न की है, लेकिन आश्वासन दिया कि 15 अक्टूबर तक काम पूरा हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल द्वारा प्रस्तुत स्थिति रिपोर्ट पर भी गौर किया, जिसमें चल रहे काम का संकेत दिया गया था।

पीड़िता के माता-पिता की ओर से पेश वकील वृंदा ग्रोवर ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि पीड़िता के नाम और तस्वीरों का खुलासा करने वाले कई सोशल मीडिया पोस्ट अभी भी प्रसारित हो रहे हैं, जो बेहद चिंताजनक है।

इसके बाद, शीर्ष अदालत ने सभी सोशल मीडिया मध्यस्थों को पीड़िता का नाम और पहचान उजागर करने वाले किसी भी पोस्ट को हटाने के अपने निर्देश को दोहराया।

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