दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच अधिकारों की जंग पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने साफ किया है कि दिल्ली सरकार के पास वैसे तो अधिकार सीमित हैं लेकिन दोनों के बीच मतभेद पर अंतिम फैसला राष्ट्रपति का होगा। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने सरकार की शिकायत पर कहा कि एलजी लंबे समय फाइल नहीं रोक सकते। एलजी को तय समय में तर्क के साथ फैसला लेना चाहिए। हालाकि कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार के लिए एलजी की सहमति जरूरी है। बतौर केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली सरकार के अधिकारों की संविधान में व्याख्या की गई है और उसकी सीमाएं तय हैं। एलजी के अधिकार भी चिन्हित किए गए हैं। राष्ट्रपति एलजी के जरिए दिल्ली में प्रशासनिक कार्य करते हैं।
दिल्ली सरकार की ओर से एडवोकेट गोपाल सुब्रम्णयम ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में सुनवाई कर रही पीठ के समक्ष अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने कहा कि दिल्ली को संविधान के अनुच्छेद 239 एए के तहत मिले स्पेशल स्टेट्स को लेकर यह चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली राज्य नहीं है और एलजी ही प्रशासनिक प्रमुख हैं। हाईकोर्ट के फैसले से केजरीवाल सरकार को खासा झटका लगा था। हाईकोर्ट ने कहा था कि 239 एए दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश का स्पेशल स्टेट्स देता है और एलजी दिल्ली सरकार की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है। दिल्ली सरकार के कमेटी बनाने के फैसले भी वैध नहीं हैं।।
हाईकोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले में को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया था। मामले में दिल्ली सरकार ने दलील थी कि यह मसला राजनैतिक और संवैधानिक लिहाज से अहम है क्योंकि इससे दिल्ली के राज्य के दर्जे का भविष्य तय होगा। विधानसभा और सरकार होने के बाद भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है। कानून-व्यवस्था और भूमि के मामले केंद्र के तहत हैं। हाईकोर्ट ने 239 एए लागू होने से पहले केंद्र शासित प्रदेश के बारे में दी गई व्यवस्था को दिल्ली पर लागू कर दिया है।