आरटीआई में यह भी खुलासा हुआ है कि वहां अधिकारी 7,000 रुपये रोजाना के किराये पर होटल में ठहरकर राहत व बचाव कार्य देख रहे थे। पूरा ऐशो-आराम था। आरटीआई के जरिये राहत और बचाव कार्य में बड़े वित्तीय घोटाले की बात का खुलासा हुआ है। उत्तराखंड के सूचना आयुक्त अनिल शर्मा ने इस मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश की है।
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार भ्रष्टाचार का आलम यह था कि सिर्फ आधे लीटर दूध के लिए 194 रुपये की कीमत वसूली गई। यही नहीं, धांधली का असली खेल तो ये है कि दो पहिया वाहनों को डीजल की सप्लाई की गई और एक ही व्यक्ति को दो-दो बार राहत दी गई। एक ही दुकान से सिर्फ तीन दिनों में 1800 रेन कोट की खरीद की गई। राहत के काम में लगे हेलिकॉप्टर में ईंधन भरने के लिए 98 लाख रुपये का भुगतान किया गया।
एक टीवी चैनल की खबर के अनुसार केदारनाथ त्रासदी के नाम पर जबरदस्त लूट मची और फर्जी बिलों के जरिये भुगतान कराया गया। हैरानी की बात ये है कि त्रासदी 16 जून 2013 को आई तो जाहिर है राहत कार्य इसके बाद ही शुरू होना चाहिए था, लेकिन पिथौरागढ़ में 22 जनवरी 2013 को यानी करीब 115 दिन पहले ही शुरू हो गयी थी। कई जगहों पर तो उल्टी गंगा बहाते हुए अधिकारियों ने घटना के करीब साढ़े 6 महीने बाद यानी 28 दिसंबर 2013 को राहत व बचाव कार्य शुरू किया और राहत कार्य शुरू होने से 43 दिन पहले ही 16 नवंबर 2013 को पूरा भी कर लिया।
नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस से जुड़े भूपेंद्र कुमार की शिकायत पर उत्तराखंड के सूचना आयुक्त ने 12 पेज के अपने आदेश में कहा है, 'अपीलकर्ता की ओर से पेश रिकॉर्ड को देखकर लगता है कि उनकी शिकायत उत्तराखंड के मुख्य सचिव के पास भेजी जानी चाहिए। साथ ही यह निर्देश दिया जाता है कि मुख्यमंत्री को इस बारे में जानकारी दी जाए, ताकि वे सीबीआई जांच करवाने को लेकर फैसला ले सकें।'
गौरतलब है कि उत्तराखंड में 16 जून, 2013 को आई भीषण बाढ़ में 3000 से ज्यादा लोग मारे गए थे और हजारों लापता हो गए थे। कई लोगों के बारे में तो आज तक भी पता नहीं चल पाया है।