शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास शिक्षा पर ही निर्भर करता है। शिक्षा सभी नागरिकों का मौलिक अधिकार है, लेकिन आश्चर्य की बात है की आज भी दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुनियादी शिक्षा के लिए संघर्षशील है। सामान्यतः एक कम शिक्षित या अशिक्षित व्यक्ति अनेक ऐसी समस्याओं से जूझता रहता है जिनका एक साक्षर व्यक्ति आसानी से समाधान तलाश कर लेता है। शिक्षा गरीबी को दूर करने और विश्व में शांति स्थापित करने का एक प्रमुख माध्यम भी है, इसलिए दुनिया को शिक्षा का महत्व समझाने के उद्देश्य से हर साल 24 जनवरी को ‘इंटरनेशनल डे ऑफ एजुकेशन’ के रूप में मनाया जाता है ।
शिक्षा क्यों जरूरी है ?
किसी भी राष्ट्र की समृद्धि और विकास से लेकर वहां की संस्कृति और समाज तक सभी शिक्षा पर निर्भर करते हैं। शिक्षा समानता का पाठ पढ़ाती है, शिक्षा सामाजिक कुरीतियां मिटाती है, शिक्षा भेद-भाव हटाती है। विश्व के सभी महापुरूषों ने शिक्षा पर सबसे अधिक बल दिया है। नोबल पुरस्कार से सम्मानित नेल्सन मंडेला ने शिक्षा को विश्व के उज्जवल भविष्य और शांति के लिए एक महत्वपूर्ण हथियार बताया है। वो कहते थे – “शिक्षा न सिर्फ एक व्यक्ति के स्वर्णिम भविष्य का निर्माण करती है बल्कि, यह सम्पूर्ण विश्व को एक दिशा देते हुए वैश्विक शांति की स्थापना करती है”। इसी तरह नोबल पुरस्कार से सम्मानित मलाला यूसुफजई ने एक सार्वजनिक मंच से कहा था कि ‘एक बच्चा, एक शिक्षक, एक किताब और एक कलम दुनिया बदल सकते हैं। शिक्षा व्यक्ति की क्षमताओं में वृद्धि कर उनके भविष्य को स्वर्णिम बनाती है। हमें एक सभ्य और विकसित समाज के निर्माण के लिए हर वर्ग, समुदाय और जाति के लोगों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के हर संभव प्रयास करेंगे।
क्यों मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस
विश्व शांति और सतत विकास में शिक्षा की भूमिका सुनिश्चित करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 दिसम्बर 2018 को एक संकल्प पारित कर हर साल 24 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। जिसके बाद भारत सहित अन्य सदस्य देशों ने ‘इंटरनेशनल डे ऑफ एजुकेशन’ को मान्यता दी। विश्व में समानता स्थापित करने, नागरिकों को मौलिक अधिकार दिलाने, असहिष्णुता और दूसरों के प्रति द्वेष की भावना को समाप्त करने के लिए शिक्षित समाज की जरूरत है। अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस को दुनिया भर में हर साल एक थीम पर मनाया जाता है, इस वर्ष, यूनेस्को द्वारा शिक्षा दिवस की थीम “चेंजिंग कोर्स, ट्रांसफार्मिंग एजुकेशन” की रखी गई है ।
साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की राष्ट्रीय साक्षरता दर 74 प्रतिशत है। साक्षरता दर को शत-प्रतिशत पहुंचाने के लक्ष्य के साथ केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा निरंतर प्रयास हो रहे हैं। अन्य राज्यों की तुलना में मध्यप्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से अग्रसर राज्य है। मध्यप्रदेश में साक्षरता दर में सबसे ज़्यादा वृद्धि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में दर्ज की गई। मध्यप्रदेश में 2001 में साक्षरता दर 64 प्रतिशत थी जो बढ़कर 2011 में 70.63 प्रतिशत हो गई। मध्यप्रदेश हर बच्चे को को गुणवत्तापूर्ण तथा प्रासंगिक शिक्षा से जोड़ते हुए पूर्ण शिक्षित प्रदेश की दिशा में तेज गति से कदम बढ़ा रहा है । इसके साथ ही युवाओं को रोजगारोन्मुखी तथा कौशल विकास पर आधारित शिक्षा पर भी राज्य सरकार अधिक बल दे रही है।
शिक्षा और शिवराज सरकार की नीतियां
शिक्षा के क्षेत्र में मध्यप्रदेश सरकार की योजनाओं और उनके धरातल पर क्रियान्वयन की बात करें तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्राथमिकता सभी को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की है। शिक्षा को प्रत्येक नागरिक तक पहुंचाने शिवराज सरकार आंगनवाड़ी से लेकर विदेश में शिक्षा तक अनेक योजनाओं का सफल क्रियान्वयन कर रही है। शिवराज सरकार ने पूरे प्रदेश में सरकारी विद्यालयों का जाल बिछाकर शहरी क्षेत्र की आबादी के साथ ही दूर सुदूर के गांवों और जनजातीयों तक शिक्षा की पहुंच को आसान और सुगम किया है। प्रदेश में शिक्षण संस्थानों और कुशल शिक्षकों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ उनकी गुणवत्ता बढ़ाने पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसी क्रम में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण और रोजगार मूलक शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पब्लिक स्कूलों की तर्ज पर सीएम राइज स्कूल खोले जा रहे हैं। इस योजना में प्रदेश भर में 9 हजार 200 सर्वसुविधा संपन्न सीएम राइस स्कूल खोले जाने हैं। इसके प्रथम चरण में 360 स्कूलों का सीएम राइस स्कूलों में उन्नयन किया जा रहा है। जहां एक तरफ प्रदेश के बच्चों को सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो रही है तो वहीं निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के अंतर्गत लाखों बच्चों को निजी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा दिलाने का काम प्रतिबद्धता के साथ राज्य सरकार कर रही है। मध्यप्रदेश के प्रतिभाशाली बच्चों को पैसों की कमी के कारण उच्च शिक्षा से वंचित न रहना पड़े इसलिए मुख्यमंत्री मेधावी छात्र योजना, अच्छे अंको से कक्षा 12वीं परीक्षा उत्तीर्ण करने पर मुफ्त लैपटाप योजना, बेटियों को उच्च शिक्षा हेतु प्रोत्साहन देने हेतु गांव की बेटी और प्रतिभा किरण जैसी प्रभावशाली योजनाओं के माध्यम से छात्र-छात्राओं का भविष्य स्वर्णिम बनाया जा रहा है।
इसके साथ ही प्रदेश के बेटे और बेटियों के लिए समान शिक्षा और संसाधनों का प्रबंध भी किया गया है। मुख्यमंत्री मेधावी छात्र योजना में अब तक लगभग 10 करोड़ रूपए से अधिक की राशि खर्च कर हजारों विद्यार्थीओं को उच्च शिक्षण संस्थआनों में प्रवेश दिलाकर उनकी फीस का भुगतान राज्य सरकार कर रही है। कोरोना महामारी के दौरान भी प्रदेश में किसी भी छात्र की शिक्षा बाधित न हो इस उद्देश्य से राज्य सरकार ने अनेक नवाचारों से छात्रों की पढ़ाई सुनिश्चित की।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : स्वर्णिम भविष्य की आधारशिला
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन में देश को अपनी नई शिक्षा नीति प्राप्त हुई। स्वर्णिम भारत के भविष्य की आधारशिला कही जाने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करने में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रतिबद्धता दिखाई। राज्य सरकार द्वारा मेडिकल के छात्रों के लिए, विशेष रूप से हिंदी भाषा में, पढ़ाई करने का विकल्प उपलब्ध कराना एक सबसे बड़ा उदाहरण बनकर सामने आया है। नई शिक्षा नीति देश में सबसे पहले लागू कर मध्यप्रदेश ने अन्य राज्यों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।
(लेखक सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार में डीन और विभागाध्यक्ष हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)