नेशनल काउन्सिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश के बच्चे, देशभर में सबसे कमजोर हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य प्रदेश के स्कूलों में छात्र-छात्राएं हर विषय की पढ़ाई से औसत से भी कमजोर हैं।
नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग के नेशनल अचीवमेंट सर्वे में ये पहलू सामने आया है। पहली बार मध्य प्रदेश समेत तमाम राज्यों में ये सर्वे हुआ है, जिसमें राज्यों में पढ़ाई कर रहे बच्चों की वास्तविक स्थिति का जाएजा लिया गया है। इस सर्वे में मध्य प्रदेश के 300 से ज्यादा सरकारी और प्राइवेट स्कूलों को शामिल किया गया है।
ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार बच्चों की पढ़ाई को लेकर गंभीर नहीं है। साल 2011-12 में स्कूल शिक्षा का बजट 10 हजार 43 करोड़ था। वहीं साल 2015-16 में ये 15 हजार 749 करोड़ तक पहुंचा। इस साल यानि सत्र 2016-17 के लिए 20 हजार 939 करोड़ रुपये स्कूल शिक्षा के लिए जारी किए गए। लेकिन नतीजा कुछ सामने नहीं आया। सरकारी स्कूलों की हालत काफी खराब है, परीक्षा परिणाम हर साल गिरता जा रहा है। शिक्षा का स्तर तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं बदल रहा है, लिहाजा हर साल करोड़ों के हिसाब से खर्च होने वाली इस राशि का इस्तेमाल कैसे किया जा रहा है, इस पर भी सवाल खड़ा होता है।
मध्य प्रदेश में कुछ हद तक निजी स्कूलों की स्थिति फिर भी सही नजर आ रही है। लेकिन सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी स्कूलों के बच्चों की हालत औऱ भी ज्यादा खस्ता है। कुछ वर्षों से दसवीं और बारहवीं के नतीजे लगातार गिरते जा रहे हैँ। एक दो साल नतीजों का प्रतिशत कुछ ऊपर भी गया, लेकिन ये भी कुछ खास नहीं था। सरकार इस विषय पर आला अधिकारियों के साथ चर्चा कर चुकी है। नतीजों को और बेहतर करने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षण की भी बात करती आई है। एनसीईआरटी की रिपोर्ट ने सरकार की इन्हीं कोशिशों को बैकफुट पर धकेल दिया है।