पिछले साल 5 अगस्त को धारा 370, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35ए को समाप्त करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने के बाद, सरकार लद्दाख में केंद्रीय कानूनों को लागू कराने और केंद्रशासित जम्मू-कश्मीर के मामले में अन्य कानूनों का पालन कराने में सक्रिय दिख रही है। हालांकि सरकार केंद्रशासित लद्दाख में सावधानी से काम कर रही है और वहां उसने कानून में ऐसा कोई बदलाव नहीं किया है।
मुख्यधारा के राजनीतिक दलों द्वारा मुस्लिम बहुसंख्यक जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकी को बदलने के आरोप और विरोध के बावजूद, सरकार जम्मू-कश्मीर में डोमेसाइल कानून लाई और प्रमाण पत्र जारी करना शुरू कर दिया। डोमेसाइल प्रमाण पत्र उन लोगों को मिल सकेगा, जो 15 साल तक जम्मू और कश्मीर में रहे हों या सात साल की अवधि के लिए वहां अध्ययन किया हो और जम्मू-कश्मीर के किसी शैक्षणिक संस्थान से कक्षा 10वीं, 12वीं की परीक्षा में उपस्थित हुए हों।
कश्मीर के राजनीतिक पर्यवेक्षक रियाज अहमद कहते हैं, “सरकार लद्दाख में सतर्कता बरत रही है। पिछले साल जब लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया गया था, तब चीन ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।” 6 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370, अनुच्छेद 35ए और जम्मू-कश्मीर के दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजन के बाद, चीन लद्दाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश बनाने के सरकार के कदम के स्पष्ट विरोध में था। अधिकारियों के अनुसार, इस साल मार्च में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लिए समवर्ती सूची में 37 केंद्रीय कानूनों की एक गजट अधिसूचना जारी की थी। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख मामलों के विभाग द्वारा राजपत्र अधिसूचना जारी की गई थी। बाद में इस साल अप्रैल में, गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर राज्य के कानूनों में बदलाव का आदेश दिया, जिसे अब जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (राज्य कानूनों का बदलाव) आदेश, 2020 कहा जाता है। 138 राज्य कानूनों में से, 25 को पूरी तरह से निरस्त कर दिया गया है जबकि अन्य कानूनों को विकल्प के साथ अपनाया गया है। अधिसूचना के अनुसार, गृह मंत्रालय ने, जम्मू-कश्मीर सिविल सेवा (विकेंद्रीकरण और भर्ती अधिनियम) में एक ‘डोमेसाइल’ खंड जोड़ा है।
कानून विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, “जम्मू-कश्मीर के मामले में दो बदलाव किए गए हैं लेकिन लद्दाख में ऐसी कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई है।” लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन (एलबीए) के अध्यक्ष पी टी कुंजंग ने आउटलुक से कहा, “मुझे लगता है, लद्दाख में पुरानी व्यवस्था प्रचलन में है। हम पुराने भूमि कानूनों और रोजगार कानूनों द्वारा शासित हैं। हम संवैधानिक सुरक्षा चाहते हैं, चाहे फिर वह लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल होकर मिले या सातवीं में।”
लद्दाख हिल डेवलपमेंट काउंसिल (एलएचडीसी) के वर्तमान अध्यक्ष पी वांग्याल ने आउटलुक को बताया कि केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को अपनी भूमि, संस्कृति और पर्यावरण के बारे में सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, “अगर हमें इन तीन चीजों पर सुरक्षा मिलती है, तो यह बहुत अच्छा होगा।”
पूर्व कांग्रेस नेता और जम्मू-कश्मीर में विभिन्न सरकारों में मंत्री रहे रिग्जिन जोरा आउटलुक को बताते हैं कि पिछले साल केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद से लद्दाख के मामले में भूमि कानूनों और डोमेसाइल कानूनों के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। वह कहते हैं, “लोगों को सरकारी जमीन आवंटित करने का अधिकार एलएचडीसी लेह और एलएचडीसी करगिल के अधिकार क्षेत्र में आ सकता है। लेकिन इस क्षेत्र में निजी भूमि और रोजगार के बारे में क्या? वैसे लद्दाख के लोग छठी अनुसूची के लिए दबाव डाल रहे हैं। एक बार यह मिल गया तो यह नियम लद्दाख के लोगों से जमीन नहीं छीन सकेगा। दो बातों को लेकर स्थानीय लोगों में वास्तव में भय है, पहला जमीन और दूसरा डोमेसाइल।”
रेमन मैग्सेसे अवार्ड विजेता सोनम वांगचुक ने पिछले साल नवंबर में एक वायरल वीडियो में कहा था कि ऐसी अफवाहें हैं कि केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद, क्षेत्र का पर्यावरण, विशिष्ट पहचान और संस्कृति सुरक्षित नहीं रहेगी। वीडियो में वह कहते नजर आ रहे हैं, “यहां के लोगों ने अब यह पूछना भी शुरू कर दिया है कि क्या दूसरे लोगों द्वारा लद्दाख के विशाल संसाधनों का दोहन करने के लिए इसे केंद्रशासित राज्य का दर्जा दिया गया था।” वांगचुक ने केंद्र से लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की अपील की थी। हालांकि, यहां के स्थानीय सांसद जम्यांग त्सेरिंग नामग्याल कहते रहे हैं कि जमीन के बारे में डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद लेह और लद्दाख पहाड़ी विकास परिषद करगिल के अधिकार में है।
हालांकि क्षेत्र के नेता भाजपा पर असमंजस पैदा करने का आरोप लगाते हैं। वे कहते हैं कि पार्टी एलएचडीसी और उसकी शक्तियों के बारे में बात करती है, ताकि लद्दाख के स्वायत्त होने का भ्रम बना रहे। एलएचडीसी के पूर्व चेयरमैन स्पलबर कहते हैं, “आपके पास यहां उप राज्यपाल है। यहां डिविजनल कमिश्नर है। हाल ही में एलएचडीसी को अपनी मांगों के लिए विरोध करना पड़ा। आपने कहीं और देखा है कि सरकार के सामने सरकार को विरोध करना पड़े। अब पहाड़ परिषद के पास कोई ताकत नहीं है।”