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ममता ने नेशनल हेल्थ स्कीम को नकारा, कहा- हमारे राज्य में पहले से है स्कीम

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्रीय बजट में पेश की गई नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम (एनएचपीएस) को...
ममता ने नेशनल हेल्थ स्कीम को नकारा, कहा- हमारे राज्य में पहले से है स्कीम

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्रीय बजट में पेश की गई नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम (एनएचपीएस) को पश्चिम बंगाल सरकार ने वित्तीय सहायता नहीं देने की घोषणा की। ऐसा करने वाला पश्चिम बंगाल पहला राज्य बन गया है।

इस स्कीम को नकारते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि काफी मेहनत से अर्जित किए अपने संसाधनों को राज्य बरबाद नहीं करेगा। इस स्कीम के लिए 40 फीसदी रकम राज्यों को देनी है। कृष्ण नगर में एक सभा को संबोधित करते हुए ममता ने कहा कि जब राज्य के पास पहले से ये स्कीम है तो दूसरी स्कीम में राज्य पैसा क्यों दे?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस दौरान ममता बनर्जी ने केंद्र पर विभिन्न योजनाओं के लिए पैसा रोकने का आरोप लगाते हुए धमकी दी कि यदि नरेंद्र मोदी नीत सरकार ने अपनी ‘जन विरोधी’ नीतियां नहीं बदलीं तो वह उसके खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करेंगी।

तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ने कहा कि केंद्र सरकार ने एकीकृत बाल विकास सेवाओं सहित किसानों, गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों से संबंधित अन्य विकास कार्यक्रमों के लिए अपना 90 प्रतिशत कोष रोक दिया है। उन्‍होंने कहा, ‘लेकिन हमने एक भी परियोजना को नहीं रोका है और वित्तीय बाधाओं के बावजूद अपने खुद के संसाधनों से पर्याप्त कोष देकर उन्हें बरकरार रखा है।’

इसके अलावा ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर कई सारे फंड को रोकने और जनविरोधी नीतियों को लागू करने का आरोप लगाया है और मोदी सरकार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन करने का आह्वान भी किया है।

क्या है नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट पेश करते हुए नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम की घोषणा की थी, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की हेल्थ स्कीम की तर्ज पर 'मोदी केयर' बताया जा रहा है।

सरकार ने घोषणा की थी कि इसके तहत 10 करोड़ गरीब परिवारों के लिए हर साल 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा दिया जाएगा। सरकार ने इसे विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना बताई थी और इससे करीब 50 करोड़ लोगों को फायदा पहुंचाने का दावा किया गया था।

सरकार ने इस योजना के लिए 2,000 करोड़ रुपये का बजट पेश किया था जबकि अर्थशास्त्रियों के अनुसार इस पर 5,000 से 6,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इसलिए केंद्र सरकार ने राज्यों को 40 फीसदी रकम खर्च करने को कहा था।

 

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